गली-नुक्कड़, मॉल, बाजार चौराहे और तो और जो लोग धार्मिक तौर पर क्रिश्चियन नहीं भी हैं, उनके घरों में भी क्रिसमस ट्री सजे-धजे दिख जाते हैं. गमले में उगा हुए शंकु आकार का एक सजावटी पौधा चमकदार लाइटों और तमाम खिलौनों से सजा हुआ चमकता दिखता है. जिसके इर्द-गिर्द क्रिसमस का बधाई संदेश 'मैरी क्रिसमस' भी लिखा होता है.
फेंगशुई और वास्तु में क्रिसमस ट्री
बीते दो दशकों में बाजार के जरिए क्रिसमस भारतीय गली-मोहल्लों तक भी पहुंचा है और इसके प्रतीकवाद को सजावटी तौर पर ही सही लेकिन धीरे-धीरे जगह भी मिलने लगी है. जापानी वास्तु फेंगशुई में भी क्रिसमस ट्री को हैपिनेस यानी खुशी का पौधा कहा जाता है तो वहीं वास्तु में भी इसका हरा रंग समृद्धि और सकारात्मकता से जोड़कर देखा जाता है.
हिंदू परंपरा में भी अहमियत रखते हैं देवदार के पेड़
क्रिसमस ट्री के तौर सबसे अधिक प्रयोग किए जाने वाले Pine Tree यानी देवदार के वृक्षों की अहमियत हिंदू परंपरा में भी है, क्योंकि इसे देवताओं का वृक्ष कहते हैं और भारत के उत्तरी पहाड़ी इलाकों में इन वृक्षों को वनदेवता का घर भी माना जाता है. तो क्रिसमस के तौर पर न भी देखें तो भी देवदार के पेड़ हमारी पूजनीय वृक्ष परंपरा का हिस्सा रहे हैं.
बाइबिल में नहीं है क्रिसमस ट्री का जिक्र
खैर, क्रिसमस ट्री को लेकर बात करें तो इस मामले में पहला ही तथ्य जो आश्चर्य में डाल सकता है, वह ये है कि ईसाई धर्म के पवित्र ग्रंथ बाइबिल में इसका जिक्र तक नहीं है. हालांकि बाइबिल के Jeremiah (यर्मियाह-10:3-4) में दर्ज पवित्र वचन में जंगल से काटे गए पेड़ और उसे तराश कर सजाने का जिक्र है, लेकिन वह क्रिसमट ट्री के अर्थ में नहीं है. इसका अर्थ प्राचीन मूर्ति पूजा की व्याख्या में है.
क्रिसमस ट्रीः लोककथाओं से लेकर बाजारवाद तक
वहीं आदम और हेवा की कथा में जिस पैराडाइज ट्री (स्वर्ग का इच्छापूर्ति पेड़) का जिक्र है, वह भी क्रिसमस ट्री नहीं है. वह एक फल वाला पेड़ है, जिसे सेब कहा जाता है, लेकिन क्रिसमस ट्री के तौर पर फलवाले पेड़ का इस्तेमाल नहीं होता है. आज जो क्रिसमस ट्री हमें दिखाई देता है, उसमें धर्म, लोककथाएं, मौसम, राजनीति, सुधार आंदोलन और आधुनिक उपभोक्तावाद, सब एक साथ गूंथे हुए हैं. इसकी जड़ें सैकड़ों साल पीछे जाती हैं और ईसाई धर्म से भी पहले के समय तक फैली हुई हैं.
यूरोप की सर्दियां और क्रिसमस का प्रतीकवाद
असल में यूरोप की सर्दियां सिर्फ ठंड नहीं लाती थीं, वे 'अंधकार और अनिश्चितता' भी लाती थीं. दिन छोटे होते थे, रातें लंबी, फसल कट चुकी होती थी और प्रकृति मानो मर-सी गई होती थी. ऐसे समय में 'सदाबहार पेड़' जो सर्दी में भी हरे रहते हैं, लोगों के लिए जीवन का प्रतीक बन गए. ये पेड़ यह भरोसा देते थे कि जीवन खत्म नहीं हुआ है, वह बस ठहरा हुआ है.
यही कारण है कि ईसाई धर्म से पहले भी यूरोप की समृद्ध पगान संस्कृति में सदाबहार पेड़ों को घरों में लाया जाता था, इन्हें दरवाजों पर टांगा जाता था और नए साल के मौके पर सजाया जाता था. इसका मकसद एक ही था'बुरी शक्तियों को दूर रखना और पॉजिटिवटी का स्वागत करना'.
जर्मन प्रभाव से शुरू होकर आजतक
इतिहास की मानें तो जिस रूप में हम आज जिस क्रिसमस ट्री को जानते हैं, उसकी शुरुआत 'मध्य यूरोप' में हुई. यानी यह जर्मनी से शुरू होकर एस्टोनिया और फिर लातविया तक में पनपा और फिर 15वीं और 16वीं सदी में यहां के 'प्रोटेस्टेंट ईसाई समाज' में इस परंपरा के उभरने के साथ यह दुनियाभर में वैसे ही फैला जैसे पेड़ों की शाखाएं तने से उभार लेकर जड़ों से दूर तक फैलती हैं.
शुरुआत में क्रिसमस ट्री घरों में नहीं, बल्कि 'गिल्ड हॉल्स'यानी व्यापारिक संगठनों के सामुदायिक भवनों—में लगाए जाते थे. इन पेड़ों पर सेब, मेवे, मिठाइयां, रंगीन कागज़ के फूल लटकाए जाते थे, ताकि त्योहार के दिन बच्चे और युवा उन्हें तोड़ सकें. यह उत्सव, सामुदायिकता और साझेदारी का प्रतीक था.
क्रिसमस ट्री के इतिहास में एक नाम बार-बार सामने आता है 'मार्टिन लूथर'. लोककथा कहती है कि एक सर्द रात वे जंगल से गुजर रहे थे. आसमान में तारे चमक रहे थे और उनकी रोशनी पेड़ों के बीच से छनकर आ रही थी. इस से प्रभावित होकर उन्होंने घर आकर एक सदाबहार पेड़ पर 'मोमबत्तियां जला दीं'. इस तरह पहला क्रिसमस ट्री या ऐसा कह लें कि ट्री सजाने का तरीका सामने आया. यानी 'पेड़ों को रोशनी से सजाने की परंपरा' जर्मन प्रोटेस्टेंट समाज में यहीं से लोकप्रिय हुई. बाद में बिजली आई, और मोमबत्तियों की जगह 'इलेक्ट्रिक लाइट्स' ने ले ली.
‘पैराडाइज़ ट्री’: क्रिसमस ट्री से पहले की कहानी
क्रिसमस ट्री को समझने के लिए हमें चर्च से बाहर निकलकर 'मध्ययुगीन धार्मिक नाटकों और कहानियों को भी पलटकर' देखना चाहिए. 24 दिसंबर को, जिसे आदम और हेवा का पर्व माना जाता था, यानी क्रिसमस से एक दिन पहले की पूर्व संध्या. इस दिन यूरोप में ‘पैराडाइज़ प्ले’ आयोजित होते थे. इन नाटकों में एक खास पेड़ होता था, जिस पर सेब लगे होते थे. यह सेब ज्ञान के वृक्ष और मूल पाप का प्रतीक थे. इसके साथ ही इसमें सफेद गोल वेफर होते थे जो मोक्ष का संकेत थे.
इस पेड़ को कहा जाता था- 'पैराडाइज़ ट्री'. ये नाटक बाइबिल की धार्मिक कथा से प्रेरित थे और इन नाटकों के प्रचार के लिए जिस तरह के पोस्टर्स पेंट किए जाते थे, 'ज्ञान का पेड़' उसका खास हिस्सा होता था. समय के साथ नाटक तो बंद हो गए, लेकिन वह सजावटी पेड़ लोगों के बीच फेमस हो गया और गिरजाघरों व ऑडिटोरियम के स्टेज से निकलकर बाजारों और फिर वहां से 'लोगों के घरों में पहुंच गया'. यहीं से आधुनिक क्रिसमस ट्री की नींव पड़ी.
अलग-अलग प्राचीन परंपराएं और मिथक
ईसाई धर्म के फैलने से पहले यूरोप में 'वृक्ष-पूजा' आम थी. नॉर्स मिथकों में 'यग्द्रसिल' नाम के विशाल वृक्ष को पूरे ब्रह्मांड का आधार माना जाता था. वाइकिंग और सैक्सन समाज की संस्कृति में भी पेड़ सिर्फ प्रकृति नहीं, बल्कि देवताओं से जोड़ने वाला माध्यम थे. 8वीं सदी में संत बोनिफेस द्वारा डोनार के ओक वृक्ष को काटने की कथा
इसी सांस्कृतिक टकराव का प्रतीक है. बाद की लोककथाओं में कहा गया कि उस ओक की जगह एक सदाबहार पेड़ उगा, जिसकी त्रिकोणीय आकृति ईसाई चिह्न का संकेत देती है. इस तरह पगान प्रतीक ईसाई अर्थों से जुड़ते चले गए.
क्रिसमस ट्री हमेशा निजी उत्सव नहीं रहा. बाल्टिक देशों में यह 'सार्वजनिक उत्सव' का केंद्र भी बना. 16वीं सदी में टॉलिन और रीगा जैसे शहरों में व्यापारी संगठन 'ब्रदरहुड ऑफ ब्लैकहेड्स' शहर के चौराहों पर क्रिसमस ट्री खड़ा करते थे. लोग उसके चारों ओर गाते, नाचते और उत्सव मनाते थे. कई बार उत्सव के अंत में पेड़ को जला भी दिया जाता था, जो उस दौर के प्रतीकात्मक अनुष्ठानों का हिस्सा था. यह कुछ ऐसा ही था कि पुराने को खत्म कर नए का स्वागत किया जाए.
लंबे समय तक क्रिसमस ट्री मुख्य रूप से 'प्रोटेस्टेंट समाज' तक सीमित रहा. कैथोलिक चर्च का जोर यीशु के जन्म दृश्य यानी 'क्रिसमस क्रिब' पर था. लेकिन 18वीं–19वीं सदी में यह परंपरा धीरे-धीरे कैथोलिक समाज में भी शामिल हो गई. खास बात यह कि ईसाई धर्म के सबसे पवित्र शहर 'वेटिकन में भी पहला आधिकारिक क्रिसमस ट्री 1982 में लगाया गया'.
19वीं सदी में क्रिसमस ट्री ने 'राजसी परंपरा' के साथ एक नया रूप ले लिया और ऑस्ट्रिया, फ्रांस, डेनमार्क व रूस के शाही दरबारों के जरिये लोकप्रिय हुआ. डेनमार्क में हांस क्रिश्चियन एंडरसन की कहानी ‘द फर ट्री’ ने इसे भावनात्मक और साहित्यिक पहचान दी.
आम तौर पर आप क्रिसमस ट्री को जमीन पर लगा हुआ और ऊपर की ओर कोन की आकृति बनाता हुआ देखते हैं, लेकिन पोलैंड की परंपरा इस मामले में अलग रही. यहां में सदियों तक अलग परंपरा रही. देवदार या फर की शाखा छत से उल्टी लटकाई जाती थी. सेब, नट्स, भूसे के सितारे और कागज़ की कटिंग इसकी सजावट का हिस्सा थे जो कि समृद्धि, सुरक्षा और अच्छी फसल का प्रतीक थे.
क्रिसमस ट्री की सजावट में क्या-क्या शामिल?
क्रिसमस ट्री पर लगी हर सजावट का अपना एक अर्थ है.
'स्टार': बेथलेहम का तारा
'एंजेल': ईश-दूत गैब्रियल
'लाल बॉल': सेब और मूल पाप
'लाइट्स': मसीह का प्रकाश
'मिठाइयां': उत्सव और खुशी
आज क्रिसमस ट्री धार्मिक प्रतीक से आगे बढ़कर 'ग्लोबल कल्चर' बन चुका है. सिर्फ असली पेड़ ही नहीं, कृत्रिम पेड़ भी मार्केट में इस परंपरा के साथ जुड़ चुके हैं. एलईडी लाइट्स, थीम-बेस्ड डेकोरेशन और हर साल नए कल्चर के साथ नया बदलाव, क्रिसमट ट्री की सजावट का हिस्सा बन जाते हैं.
विकास पोरवाल