क्रिसमस का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. सड़कों और बाजारों पर सजावट है. मॉल्स में सेंटा क्लॉज के ड्रेस पहने वेंडर्स और कलाकार दिखाई दे रहे हैं. कुल मिलाकर फेस्टिव वाइब है हर ओर. इस बीच खबरों में देखें तो भारत में क्रिसमस को लेकर विरोध के सुर भी सुनाई दे जाते हैं. वजह है स्थानीयता की पहचान और पश्चिमी असर का विरोध. लेकिन क्या आप विश्वास करेंगे कि एक समय इसी क्रिसमस पर ब्रिटेन और अमेरिका ने ही प्रतिबंध लगा दिया था. ये सत्रहवीं सदी वाले दौर की बात है.
अधार्मिक और अनैतिक क्यों कहा गया था क्रिसमस
आज क्रिसमस को रोशनी, सजावट, गीत-संगीत और उल्लास का पर्व माना जाता है. लेकिन इतिहास का एक दौर ऐसा भी रहा है जब ब्रिटेन और अमेरिका में रहने वाले ईसाइयों ने ही क्रिसमस को 'अधार्मिक' और 'अनैतिक' बताया और इस पर पूरी तरह रोक लगा दी. उस दौर में प्रोटेस्टेंट धर्म (ईसाई) को मानने वाले लोग ये मानने लगे थे कि दिसंबर आते-आते समाज नैतिक पतन की ओर बढ़ जाता है. शराबखाने भर जाते थे, व्यापार ठप पड़ जाते थे, लोग नाच-गाने और दावतों में डूब जाते थे और चर्च की जगह उत्सव ज़्यादा अहम हो जाता था. उनके अनुसार यह सब ईसाई जीवनशैली के खिलाफ था.
बाइबिल में नहीं है क्रिसमस का जिक्र
1644 में इंग्लैंड की सत्ता में आए अति धर्मनिष्ठ प्रोटेस्टेंट शासकों, जिन्हें प्यूरिटन कहा जाता है, उन्होंने क्रिसमस मनाने की परंपरा पर रोक लगाने का फैसला किया. प्यूरिटन मानते थे कि क्रिसमस बाइबल पर बेस्ड फेस्टिवल नहीं है क्योंकि बाइबल में कहीं भी यह नहीं लिखा कि यीशु मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था. उनकी नजर में क्रिसमस एक रोमन, यानी पैगन (मूर्तिपूजक) परंपरा से निकला उत्सव था, जिसे ईसाई धर्म में जबरन शामिल कर लिया गया था. इसलिए उन्होंने इसे गैर-ईसाई गतिविधि घोषित कर दिया.
आखिर वापस लिए गए क्रिसमस विरोधी कानून
1640 के दशक से लेकर 1660 तक इंग्लैंड में क्रिसमस से जुड़ी सभी एक्टिविटी पर रोक रहीं. 25 दिसंबर को जबरन दुकानों और बाजारों को खुला रखा जाता था. कई चर्चों ने अपने दरवाजे बंद कर लिए. यहां तक की क्रिसमस की विशेष प्रार्थना सभाएं आयोजित करना भी गैरकानूनी था. हालांकि आम लोगों ने इस प्रतिबंध को आसानी से स्वीकार नहीं किया. जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए. लोगों ने पीने, गाने और जश्न मनाने की आज़ादी के लिए आवाज उठाई. आखिरकार 1660 में जब चार्ल्स द्वितीय इंग्लैंड के राजा बने, तब क्रिसमस विरोधी कानूनों को वापस लिया गया.
क्रिसमस के खिलाफ यह कट्टरता सिर्फ इंग्लैंड तक सीमित नहीं थी. अमेरिका में भी प्यूरिटन प्रभाव वाले इलाकों में क्रिसमस पर प्रतिबंध लगाया गया. मैसाच्यूसट्स में 1659 से 1681 तक क्रिसमस मनाना कानूनन अपराध था. वजह वही थी- बाइबल में तारीख़ का उल्लेख नहीं और पैगन परंपराओं से जुड़ाव. कानून हटने के बाद भी कई अति धर्मनिष्ठ ईसाई दिसंबर के त्योहारी माहौल को ‘घृणित’ और ‘गैर-ईसाई’ मानते रहे.
25 दिसंबर की तारीख पर भी मतभेद
यीशु मसीह के जन्म की तारीख को लेकर आज भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं. कुछ मानते हैं कि उनका जन्म वसंत ऋतु में हुआ होगा, क्योंकि बाइबल में ऐसा दर्ज हहै कि उस समय गड़रिये खुले मैदानों में अपने झुंडों की देखभाल कर रहे थे. दिसंबर की ठंड में ऐसा संभव नहीं लगता. कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि अगर भेड़ों का प्रजनन काल चल रहा होता, तो यह पतझड़ का समय हो सकता है. लेकिन सच यह है कि बाइबल में यीशु के जन्म की कोई निश्चित तारीख नहीं बताई गई है.
इतिहासकारों के अनुसार, रोमन साम्राज्य में दिसंबर के आखिरी दिनों में फसल कटाई के बाद जमकर उत्सव मनाया जाता था. उपहार बांटे जाते थे. घर सजाए जाते थे. खूब भोजन और शराब के साथ पार्टियां होती थीं.
क्रिसमस फेस्टिवल और पैगन परंपराएं
जब रोमन समाज ने धीरे-धीरे ईसाई धर्म अपनाया, तो ये पैगन परंपराएं पूरी तरह खत्म नहीं हुईं. बल्कि वे ईसाई कैलेंडर में शामिल होती चली गईं. चौथी सदी के अंत तक पैगन और ईसाई परंपराएं दिसंबर के करीब दो हफ्तों तक साथ-साथ चलती रहीं. 17वीं सदी में प्यूरिटनों ने क्रिसमस के खिलाफ जो अभियान छेड़ा था, वह उनके लिए पैगन परंपराओं के खिलाफ एक धार्मिक युद्ध था. लेकिन समय के साथ उनकी यह लड़ाई हार में बदल गई.
आज क्रिसमस पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाता है. सजे हुए पेड़, उपहार, दावतें और संगीत, ये सब क्रिसमस की पहचान बन चुके हैं. क्या इन्हें देखकर कोई यकीन करेगा कि जश्न और उल्लास का ये फेस्ट कभी प्रतिबंध के दायरे में रहा होगा? शायद कोई नहीं.
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