विभाजन... भारतीय इतिहास का वह शोकग्रस्त अध्याय, जब सिर्फ जमीने ही नहीं बंटी, बल्कि कागज पर खींची गई एक काल्पनिक रेखा ने न जाने कितने परिवारों को उजाड़ दिया. कितनों के लिए अकाल मौत का कारण बन गया. कितने ही परिवार बर्बाद हो गए और इस दौरान भड़के दंगों ने दिलों में नफरत की जो आग भड़काई, उसे कभी बुझाया न जा सका. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, रंगमंडल ने अपनी नई नाट्य प्रस्तुति के जरिए इस इतिहास को मंच पर उकेरा.
रंगमंडल ने ‘विभाजन विभीषिका तमस’ की प्रस्तुति देकर 14 अगस्त 1947 के उस दौर को सामने रखा, जिसके बार में सोचकर भी कलेजा चाक हो जाता है. अभिनेता और साहित्यकार भीष्म साहनी द्वारा लिखित, साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित उपन्यास तमस पर आधारित इस नाटक में अखण्ड राष्ट्र भारत के विभाजन की त्रासदियों को सामने रखा गया. जहां अनगिनत मासूम जिंदगियां दंगे की भेंट चढ़ गई.
नाटक का मंचन अभिमंच सभागार,में शाम 7:00 बजे और 15 से 17 अगस्त, 2025 तक हुआ. एनएसडी के निदेशक चित्तरंजन त्रिपाठी ने इस नाट्य प्रस्तुति को लेकर कहा कि यह मंचन देश की विभाजन विभीषिका पर लगे हुए घाव का दुखद संस्मरण है. वह दंश जिसने एक देश को दो भागों में विभाजित कर दिया. यह नाट्य प्रस्तुति अंतहीन दर्द का चित्रण है. यह भारत के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास के सबसे अंधेरे हिस्से की अभिव्यक्ति है.
सन् 1947 का विभाजन केवल सीमाओं का बंटवारा भर नहीं था. यह भारत देश की आत्मा का अलगाव था. यह सिर्फ देश की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी, बल्कि स्वतंत्रता दर्द में भिगोई गई थी. स्वतंत्रता दिवस के उत्सव के पीछे एक विशाल मानवीय त्रासदी : करोड़ों विस्थापित लोग, लाखों का वध, अनगिनत महिलाओं का चीड़-हरण किया गया और लाखों लोगों को अपनी पैतृक भूमि से मिटा दिया गया.
दशकों तक, इन भयावहता को छुपाया गया, सेंसर किया गया, या ‘धर्मनिरपेक्ष सद्भाव’ की बयानबाजी के नीचे दफन किया गया. स्कूली पुस्तकों में, विभाजन एक पैराग्राफ बन गया. पर यह आज भी लाखों परिवारों के लिए पीड़ा बना हुआ है.
भीष्म साहनी का मूल उपन्यास ‘तमस’ उस अंधेरे में भी घूरता है. यह सहज नायकों और खलनायकों की कहानी मात्र नहीं है - यह एक सभ्यता के पतन की शारीरिक रचना है, जो तुष्टिकरण की राजनीति द्वारा विभाजित और शासन की ब्रिटिश नीति द्वारा सृजित है. यह बताता है कि कैसे प्रचार, झूठ और राजनीतिक महत्वाकांक्षा दोस्त को दुश्मन, पड़ोसी को हत्यारे में बदल सकती है.
‘विभाजन विभीषिका तमस’ सिर्फ एक नाटक नहीं है. यह विभाजन के अनगिनत पीड़ितों के लिए समर्पित है, विशेष रूप से उन लोगों को जिनकी पीड़ा ‘भावनाओं को नुकसान नहीं पहुंचाने’ के नाम पर मिटा दी गई थी. यह एक चेतावनी भी है; वही हथियार जो एक बार हमें अलग करता है - धार्मिक भ्रम, सांस्कृतिक व्युत्पत्ति, और राजनीतिक तुष्टिकरण - अभी भी, आज भी हमारे बीच किसी न किसी रूप में मौजूद है.
नाटक में संत कबीर दास के दोहे, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, स्वानंद किरकिरे के गीतों और फैज अहमद फैज़ की नज्मों को भी शामिल किया गया है, जो नाटक के संदेश को आगे बढ़ाते हैं. चित्तरंजन त्रिपाठी और आसिफ अली ने ही उपन्यास का नाटकीय रूपांतरण किया है. राजेश सिंह (एनएसडी रेपर्टरी प्रमुख) नाटक की दृश्य परिकल्पना की है. सौती चक्रवर्ती ने प्रकाश व्यवस्था कृति वी. शर्मा ने उस दौर को रंग-ढंग देने के लिए वैसे ही कॉस्ट्यूम डिजाइन किए जो आज के वर्तमान से उठाकर दर्शकों को आजादी से एक दिन पहले के दौर में ले जाते हैं.
उपन्यास के लेखक, भीष्म साहनी, खुद भी विभाजन विभीषिका के गवाह थे, इसलिए भी वह उस दौर को कलमबद्ध कर बहुत करीने से कागज पर उतार पाए. उन्होंने भारत के विभाजन के अपने दुखी कर देने वाले अनुभवों और पाकिस्तान के निर्माण को साझा किया, नाटक मानव संबंधों की कई परतों की खोज करता है साथ ही ब्रिटिशों की असंवेदनशील भूमिका को भी सामने रखता है.
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