मंच पर महाभारत... केंद्र डांस फेस्टिवल में नृत्य नाटिका कर्ण का मार्मिक मंचन, टुल्लू मुर्मू के अभिनय ने जीता दिल

श्रीराम भारतीय कला केंद्र की ओर से आयोजित केंद्र डांस फेस्टिवल-2025 का गुरुवार को आखिरी दिन रहा. इस आखिरी दिन कमानी ऑडिटोरियम में 'नृत्य नाटिका कर्ण' की प्रस्तुति दी गई. मयूरभंज छऊ पर आधारित इस नृत्य नाटिका का सबसे प्रधान आकर्षण था कि इसमें जरूरी भाव गढ़ने के लिए सिर्फ पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ ही संगीत दिया गया था.

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कमानी सभागार में मंच पर जीवंत हुई कर्ण की महागाथा कमानी सभागार में मंच पर जीवंत हुई कर्ण की महागाथा

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 30 मई 2025,
  • अपडेटेड 5:49 PM IST

महाभारत की महागाथा में कर्ण एक ऐसा पात्र है, जो शत्रु और खलनायकों के समूह में रहने के बावजूद अपने लिए दिल के किसी कोने में अलग जगह बना जाता है. वह अकेला ऐसा पात्र है, जो बड़ी-बड़ी बहसों को जन्म दे सकता है और आज लगभग 5000 साल बाद भी वह इतनी क्षमता रखता है कि कुरुक्षेत्र में हुए जिस महासमर को धर्मयुद्ध कहा जाता है, कर्ण के वध का प्रसंग उस धर्मयुद्ध की साख पर बट्टा लगा दे.

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कर्ण के जीवन के मार्मिक पलों ने किया भावुक 
कर्ण का जीवन जिस तरह के द्वंद्व और संघर्ष में गुजरा, उसे ही नृत्य नाटिका का विषय बनाकर कमानी सभागार में प्रस्तुत किया गया तो न तो दर्शकों की तालियां बंद हुईं और न ही आंखों के कोर भिगा देने वाले आंसू. खासतौर पर जब कर्ण के जीवन के निर्णायक मौके पर यह पता चलता है कि महारानी कुंती उसकी असली मां है तो वह एक साथ प्रेम, क्षोभ, गु्स्सा, घृणा, निराशा और आश्चर्य के ऐसे मिले-जुले भावों से घिर जाता है कि इस जीवंत दृश्य को सिर्फ सभागार में बैठे लोग ही साक्षी भाव के साथ समझ सकते थे. बहुत लिखकर भी इस दृश्य का वर्णन नहीं किया जा सकता. श्रीराम भारतीय कला केंद्र के प्रशिक्षित कलाकार टुल्लू मुर्मू  (कर्ण की भूमिका में) और ऋतुपर्णा दास होता (कुंती के किरदार में) ने 8 मिनट के इस जरूरी को सीन को मंच पर बड़ी खूबसूरती के साथ जिया. 

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आज भी प्रासंगिक है कर्ण और नाट्य मंचन
न कोई स्लो मोशन, न कोई स्पेशल इफेक्ट और न ही कोई वीएफएक्स... ये बात इसलिए लिखी जा रही है क्योंकि बीते साल बहुत बड़े बजट से रामायण पर आधारित एक फिल्म ने रामकथा का ऐसा बिगड़ा स्वरूप सामने रखा था कि इस सिनेमा को पचा पाना मुश्किल हो गया था. इसके उलट नाट्य मंच आज भी 3200 साल पुरानी भरत मुनि के नाट्य शास्त्र की विधा पर चलते हुए कहानियों का मंचन कर रहे हैं, जिसका रूप हर बार पहले से अधिक निखरा हुआ ही नजर आता है. 

कर्ण की भूमिका में श्रीराम भारतीय कला केंद्र के कलाकार टुल्लू मुर्मू

केंद्र डांस फेस्टिवल में कर्ण नृत्य नाटिका की प्रस्तुति
श्रीराम भारतीय कला केंद्र की ओर से आयोजित केंद्र डांस फेस्टिवल-2025 का गुरुवार को आखिरी दिन रहा. इस आखिरी दिन कमानी ऑडिटोरियम में 'नृत्य नाटिका कर्ण' की प्रस्तुति दी गई. मयूरभंज छऊ पर आधारित इस नृत्य नाटिका का सबसे प्रधान आकर्षण था कि इसमें जरूरी भाव गढ़ने के लिए सिर्फ पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ ही संगीत दिया गया था. जैसे युद्ध के दृश्य रहे हों, रथ दौड़ाने का सीन रहा हो, या फिर शस्त्र विद्या के प्रदर्शन का सीन रहा हो ये सभी दृश्य वाद्ययंत्रों के साथ ही गढ़े गए. जरूरत के अनुसार सिर्फ उनकी रिदम को बदला गया.

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कभी ढोल, कभी धुमसा, कहीं खरका, तो कहीं मोहुरी की उतार-चढ़ाव भरी आवाज से बिल्कुल क्लियर हो जाता था कि मंच पर क्या और किस तरह का प्रसंग छिड़ा हुआ है. इन सबके साथ लाइटिंग की भूमिका भी एक अबोले किरदार की ही तरह थे. दुख भरे सीन में अंधेरा, क्रोध के समय लाल रोशनी, वरदान और आशीर्वाद के भावों में नीला दैवीय प्रकाश, इन सभी ने नृत्य नाटिका को भावपूर्ण बना दिया.

रश्मिरथी कविता के भाव हुए जीवंत
पूरी नाटिका में परस्पर संवाद कहीं-कहीं ही थे. सिर्फ उतने ही, जहां बातों को कहा जाना जरूरी था. इसके अलावा कहीं कोई गीत नहीं, कविवर रामधारी सिंह दिनकर की काव्यकृति 'रश्मिरथी' के सहारे नाटिका आगे बढ़ती है और गंभीर प्रसंगों पर कविता के उसी भाव को मंच पर जागृत कर देती है.  

कर्ण का जीवन महाभारत में एक अनूठा अध्याय है. लेखिका शोभा दीपक सिंह के अनुसार, कर्ण का चरित्र मानव और उसकी नियति, प्रकृति और पोषण, तथा धर्म और सत्य के बीच जटिल संबंधों का प्रतीक है. कर्ण के जीवन में परिस्थितियाँ हमेशा प्रतिकूल रहीं, फिर भी उन्होंने अपने आदर्शों—मित्रता, दानशीलता और धर्म—को कभी नहीं छोड़ा. उनकी मृत्यु के समय भगवान श्रीकृष्ण ने भी उनकी प्रशंसा करते हुए कहा था, “धर्म का पालन करने, शत्रुओं के प्रति दया और मित्रता के गुणों के लिए कर्ण को हमेशा सम्मान दिया जाएगा.”

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नाटिका की शुरुआत कुंती के साथ होती है, जो ऋषि दुर्वासा से वरदान प्राप्त करती हैं और सूर्यदेव को आमंत्रित कर कर्ण को जन्म देती हैं. अविवाहित होने के कारण कुंती कर्ण को एक पेटी में नदी में बहा देती हैं. कर्ण का पालन-पोषण एक रथवान और उनकी पत्नी राधा द्वारा होता है. कर्ण अपनी मेहनत और लगन से धनुर्विद्या में निपुण हो जाते हैं, लेकिन द्रोणाचार्य उन्हें उनकी निम्न जाति के कारण प्रशिक्षण देने से इंकार कर देते हैं. तब कर्ण सूर्य को अपना गुरु मानकर अभ्यास करते हैं.

देवराज इंद्र को कवच-कुंडल का दान करने के बाद महाभारत के युद्ध में शामिल कर्ण

कर्ण के जीवन के जरिए समाज से सवाल
नाटिका में कर्ण के जीवन के कई महत्वपूर्ण क्षण दिखाए गए हैं, जैसे द्रौपदी स्वयंवर में उनकी अपमानजनक अस्वीकृति, इंद्र द्वारा उनकी कवच-कुंडल की मांग, और परशुराम द्वारा ब्रह्मास्त्र सिखाने के बाद मिला शाप. द्यूत क्रीड़ा में द्रौपदी के चीरहरण के दौरान कर्ण द्वारा उनकी मर्यादा की रक्षा और कुरुक्षेत्र युद्ध में उनकी वीरता और बलिदान को भी प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया गया है. कर्ण का जीवन कई गहरे प्रश्न उठाता है: क्या अपनी पत्नी को जुए में दांव पर लगाना धर्म है? क्या निश्चित हार के बावजूद जुआ खेलना उचित है? क्या जाति और पंथ के आधार पर किसी को अयोग्य ठहराना धर्म है? क्या युद्ध में असमान परिस्थितियों में शत्रु को मारना उचित है? ये प्रश्न आज भी समाज में प्रासंगिक हैं.

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इस नृत्य नाटिका में कर्ण की भूमिका टुल्लू मुर्मू ने निभाई, जबकि सूर्य और श्रीकृष्ण की भूमिका राज कुमार शर्मा ने, कुंती की ऋतुपर्णा दास होता ने, और द्रौपदी की भूमिका में अनुशुआ चौधरी ने निभाई. दुर्योधन के रूप में स्वपन मजुमदार और परशुराम के रूप में अंजुराग झा ने भी शानदार प्रदर्शन किया.

योग्य होने के बावजूद अवसर से वंचित लोगों के अगुआ हैं कर्ण
शिवाजी सामंत की पुस्तक मृत्युंजय और रामधारी सिंह दिनकर की कविता रश्मि रथी में कर्ण को एक ऐसे नायक के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपनी नियति पर नियंत्रण न रख सका, लेकिन अपने आदर्शों के लिए अंत तक लड़ता रहा. कर्ण का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चाई और धर्म का मार्ग अपनाने वाला व्यक्ति अपनी मृत्यु में भी विजय प्राप्त करता है. यह नृत्य नाटिका न केवल कर्ण की कहानी को जीवंत करती है, बल्कि उनके जीवन से प्रेरणा लेकर समाज में समानता और न्याय की स्थापना का संदेश भी देती है.

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