मंटो, राजकपूर और राग दरबारी... LTG ऑडिटोरियम में चलेंगे दास्तानों के दौर, जीवंत होंगे कई किरदार

महमूद फारूकी और उनकी 20-सदस्यीय टीम "दास्तानगोई कलेक्टिव" ने इस कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. टीम में सात महिलाएं दास्तानगो भी शामिल हैं. उनकी प्रस्तुतियों में कहानियां कई बार जानी-पहचानी होती हैं, लेकिन उनका अंदाज हर बार नया होता है. ऐसा लगता है जैसे ये किस्से साहस, ज्ञान और कल्पना की एक रहस्यमयी दुनिया से खींच लाए गए हों.

Advertisement
दास्तान-ए-राजकपूर की प्रस्तुति देते दास्तानगो, यह दास्तान काफी चर्चित रही है दास्तान-ए-राजकपूर की प्रस्तुति देते दास्तानगो, यह दास्तान काफी चर्चित रही है

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 4:45 PM IST

कभी जमाना था जब एक दास्तानगो को महज किस्सागो नहीं, बल्कि बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी होना पड़ता था, बोलने में निपुण, तलवार चलाने में निपुण, और जरूरत पड़ने पर राजनयिक और सैनिक भी. अकबर के दरबार में नियुक्त दरबार ख़ान जैसे दास्तानगो ऐसे ही होते थे, जो एक रात कहानी सुना रहे होते और अगले दिन दुश्मनों से कूटनीतिक बातचीत कर रहे होते, और अगर ये बातचीत किसी तरह से विफल हुई तो दास्तानगो का तलवार थामना भी आम था...

Advertisement

बदला है दास्तानगोई का रूप
लेकिन दिल्ली में पिछले दो दशकों में, हमने दास्तानगोई को दो लोगों के बीच की एक कला के रूप में देखा.मंच पर मौजूद दो लोगों के जरिए जो रोजमर्रा की जिंदगी की बोली में कविता बोलते हैं, उसे रंगमंचीय मंच पर उतारते हैं. इस आधुनिक दास्तानगोई को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है अभिनेता, लेखक और निर्देशक महमूद फारूकी और उर्दू साहित्य के पुरोधा शम्सुर रहमान फारूकी को. इसकी शुरुआत 2005 में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) में हुए एक प्रदर्शन से हुई थी.

महमूद फारूकी और उनकी 20-सदस्यीय टीम "दास्तानगोई कलेक्टिव" ने इस कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. टीम में सात महिलाएं दास्तानगो भी शामिल हैं. उनकी प्रस्तुतियों में कहानियां कई बार जानी-पहचानी होती हैं, लेकिन उनका अंदाज हर बार नया होता है. ऐसा लगता है जैसे ये किस्से साहस, ज्ञान और कल्पना की एक रहस्यमयी दुनिया से खींच लाए गए हों.

Advertisement

हर बार जब मंच की बत्तियां बुझती हैं और केवल दो दास्तानगो गद्दे पर बैठते हैं, तो वे अकेले केंद्र बन जाते हैं. कभी नायक, कभी पौराणिक पात्र, कभी इतिहास, कभी मिथक को जीते हुए. विजयदान देथा की कहानियों को, और लेखक सआदत हसन मंटो पर आधारित दास्तान को बार-बार प्रस्तुत किया गया है. 

LTG ऑडिटोरियम में जारी है दास्तानों का दौर
अब 18 जुलाई से मंडी हाउस में प्रस्तुत होने जा रही हैं चार चर्चित दास्तानें —
दास्तान एलीस की, दास्तान-ए-मंटो, दास्तान-ए-राज कपूर, और दास्तान-ए-राग दरबारी.

18, 19, 20 जुलाई | शाम 7 बजे से

18 जुलाई – दास्तान-ए-राग दरबारी
19 जुलाई – दास्तान-ए-एलिस और दास्तान-ए-मनॊियत
20 जुलाई – दास्तान-ए-राज कपूर

क्या है दास्तानगोई की खासियत?
इस दास्तानगोई के प्रदर्शनों और प्रस्तुति लेकर दास्तानगो महमूद फारूकी कई तरह की खास बातें सामने रखते हैं. वह कहते हैं कि, इस विधा के साथ कठिनता ये थी कि इसके बारे में सुना और पढ़ा तो था, लेकिन हम में से किसी ने भी असल दास्तानगोई का मंचन नहीं देखा था. मेरी कल्पना यह थी कि दो लोग मिलकर इसे प्रस्तुत करें. हमने इसे मंच की प्रस्तुति के अनुसार गढ़ा और अपने रंगमंचीय अनुभव से इसे आधुनिक ढांचे में संवारा. इस तरह यह परंपरा और आधुनिकता का खूबसूरत मिश्रण बनकर सामने आया.

Advertisement

मंच पर तख़्त, कटोरे, विशेष पोशाकें और एक खास पायजामा-टोपी के पहनावे को अपानाया और फिर थोड़ी रोशनी की मिलावट की, थोड़ा साउंड सिस्टम की कलाबाजियां जोड़ीं, और यह जो रूप निखर आया है दास्तानों का यह थिएयटर नहीं हैं, उनसे कहीं ज्यादा हैं. पहला शो 4 मई 2005 को दिल्ली के IIC में हुआ था और उसे लोगों का जो प्यार मिला उसने और भी दास्तानों को लिखने-बनाने के लिए जरूरी ताकत और हौसला दिया.

चर्चित रही है दास्तान-ए-राज कपूर
वह कहते हैं कि राज कपूर की ज़िंदगी महाकाव्यात्मक है, पर उससे भी अधिक उनके पिता पृथ्वीराज कपूर की कहानी महत्वपूर्ण है, जिन्होंने थिएटर को अपना जीवन समर्पित किया.
विभाजन के समय वे ‘दीवार’ और ‘Pathan’ जैसे नाटक भारत भर में मंचित कर रहे थे, जो सौहार्द, प्रेम और एकता के संदेश देते थे. राज कपूर की दास्तान भारतीय स्वतंत्रता, स्टूडियो प्रणाली, शैलेन्द्र जैसे महान गीतकारों, और भारत सबका है जैसे विचारों की कहानी है. यह एक तरह से भारत के महान सपने की पुनर्कथा है. यह दास्तान सिर्फ किस्सा नहीं, बल्कि हमारी साझी विरासत और सामूहिक स्मृति का मंच है.

दास्तानगोई के कद्रदान और शौकीन 18 जुलाई शुक्रवार से से मंडी हाउस में मौजूद LTG ऑडिटोरियम में अपनी पसंदीदा दास्तान सुन सकते हैं. इनमें  दास्तान-ए-मंटो, दास्तान-ए-राज कपूर तो काफी चर्चित दास्तानें रही हैं.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement