तपती धूप में झूमती गगरियां... सिर पर संतुलन, पांव में लय से सजता है राजस्थान का चरी नृत्य

राजस्थान की रंग-बिरंगी सांस्कृतिक विरासत में, जहां हर रंग वीरता, परंपरा और उत्सव की कहानी बयां करता है, चरी नृत्य एक चमकता रत्न है. सिर पर पीतल की गगरियों की ऊंची मीनार और तपती धूप एक रूपक हो गए, जिसकी जगह ले ली आग ने. चरी नृत्य राजस्थानी परंपरा में प्रस्तुत पारंपरिक लोक नृत्य कौशल, धैर्य और लालित्य का अद्भुत प्रदर्शन है.

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उदयपुर स्थित बागोर की हवेली में हर शाम होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में चरी नृत्य भी शामिल है, ये प्रस्तुति 'धरोहर' संस्था की ओर से होती है उदयपुर स्थित बागोर की हवेली में हर शाम होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में चरी नृत्य भी शामिल है, ये प्रस्तुति 'धरोहर' संस्था की ओर से होती है

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2025,
  • अपडेटेड 1:01 PM IST

रोज की जरूरत और पानी की तलाश. ऐसा भी नहीं कि जहां डेरा हो पानी वहां मिल ही जाए. फिर यह भी नहीं है कि एक गगरी और मटकी से काम चलेगा. पानी भी ज्यादा चाहिए. तो एक के ऊपर एक कई गगरियां रखकर पनिहारिन पानी भरने चलती हैं. पीतल और कांसे की गगरी, सिर पर चढ़ता जाता सूरज और तपिश से तपती गगरियां. फिर भारी-भारी पानी भरी गगरियां लेकर मीलों चलना.

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इस दृश्य को सोचेंगे तो ये बड़ा कष्टप्रद लगेगा, लेकिन राजस्थान की बीरनियां इसीलिए तो दुनिया भर में जानी जाती हैं, जहां उनका कष्ट भी संगीत बन जाता है, मनोरंजन रच देता है. तपती धूप में पानी भरी गगरियों को भी ये बिरनियां झूमते-गाते अपने घरों तक ले आती हैं और आगे चलकर यह झूमना ही बन गया 'चरी नृत्य' 

रंग-बिरंगी सांस्कृतिक विरासत और चरी नृत्य
राजस्थान की रंग-बिरंगी सांस्कृतिक विरासत में, जहां हर रंग वीरता, परंपरा और उत्सव की कहानी बयां करता है, चरी नृत्य एक चमकता रत्न है. सिर पर पीतल की गगरियों की ऊंची मीनार और तपती धूप एक रूपक हो गए, जिसकी जगह ले ली आग ने. चरी नृत्य राजस्थानी परंपरा में प्रस्तुत पारंपरिक लोक नृत्य कौशल, धैर्य और लालित्य का अद्भुत प्रदर्शन है. सिर पर मिट्टी या पीतल के मटके संतुलित करते हुए, जिनमें जलता हुआ दीया या तेल में डूबा कपास का बीज होता है, नर्तकियां एक सम्मोहक कहानी बुनती हैं. चरी नृत्य केवल एक नृत्य नहीं है; यह जीवन, समुदाय और राजस्थानी महिलाओं की अटूट भावना का उत्सव है, जो विवाह, पुत्र जन्म या बड़े त्योहारों जैसे हर्षोल्लास के अवसरों पर किया जाता है.

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जादुई अहसास है चरी नृत्य
चरी नृत्य का सार इसके शाब्दिक और आलंकारिक संतुलन में निहित है. रंग-बिरंगे राजस्थानी परिधानों, घूमते लहंगों और भारी-भारी गहनों से सजी-धजी नृत्यांगनाएं अपने सिर पर चरी (मटका) संतुलित करती हैं, जिसमें अक्सर एक जलता हुआ दीया होता है. दीये की टिमटिमाती रोशनी उनकी गतियों को रोशन करती है, जो एक कोमल, अलौकिक चमक पैदा करती है.  यही विशेषताएं असल में नृत्य की भी खासियत हैं. इस प्रदर्शन को वास्तव में विस्मयकारी बनाने वाली बात नृत्यांगनाओं की सुंदर घुमाव, कुशल घुटनों के मोड़ और लयबद्ध कदमों को पूर्ण संतुलन के साथ निष्पादित करने की क्षमता है. एक साथ चलती इन महिलाओं का दृश्य, जिनके मटके स्थिर रहते हैं और दीये चमकते हैं, वास्तव में जादुई है.

ढोलक-हारमोनियम पर सजता है चरी नृत्य
चरी नृत्य राजस्थानी लोक संगीत की मधुर धुनों के साथ होता है, जिसमें ढोलक और हारमोनियम जैसे वाद्ययंत्र एक उत्साहपूर्ण लय बनाते हैं. संगीत नर्तकियों की गति को तेजी देता है और हर एक कदम वर्षों की कठिन मेहनत और नृत्य के प्रति समर्पण का प्रमाण देता है. यह नृत्य कलाकारों की रोजमर्रा के काम यानी पानी के मटके ढोने को कला के रूप में बदलने की क्षमता को सामने रखता है, जो दुनिया भर के दर्शकों को मोहित करता है.

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चरी नृत्य का मूल राजस्थान की महिलाओं, विशेष रूप से ग्रामीण समुदायों की महिलाओं के जीवन में गहराई से निहित है. राजस्थान में, जहां पानी एक कीमती संसाधन है, महिलाएं अक्सर अपने परिवार के लिए मीलों दूर से पानी लाती हैं, सिर पर भारी मटके संतुलित करते हुए. चरी नृत्य इस मेहनत को खुशी और उत्सव में बदल देता है. 

किशनगढ़ क्षेत्र से जुड़ा है चरी नृत्य
यह नृत्य विशेष रूप से राजस्थान के किशनगढ़ क्षेत्र से जुड़ा हुआ है, जो कुछ बेहतरीन चरी नृत्यांगनाओं को जन्म देने के लिए प्रसिद्ध है. यहां, छोटी उम्र से ही लड़कियां प्रशिक्षण शुरू कर देती हैं, पहले चरी को संतुलित करने की कला में महारत हासिल करती हैं, फिर जलते दीये के साथ नृत्य करने की चुनौतीपूर्ण उपलब्धि तक पहुंचती हैं. इस यात्रा में  धैर्य, अनुशासन और अभ्यास की जरूरत होती है, जो कि खैर राजस्थान की मूल ताकत भी है, इसके साथ ही नृत्यांगनाओं को मटके को गिरने या दीये को बुझने से बचाने के लिए सटीकता के साथ चलना पड़ता है तो यह इसमें उनके लिए प्लस प्वाइंट लेकर आता है. कई जगहों पर दीये की जगह तेल में डूबे कपास के बीज का उपयोग किया जाता है, इससे साहस और जोखिम थोड़ा और बढ़ जाता है, क्योंकि नृत्यांगनाओं को जलने से बचना होता है.

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चरी एक सामूहिक नृत्य है, जिसमें महिलाएं पूर्ण सामंजस्य के साथ चलती हैं. उनके साथ उठते कदम, हाथों-अंगुलियों के भाव और कमर की लचक बिल्कुल एक साथ एक लय में होते हैं. जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है. कांच के काम, कढ़ाई और चटकीले रंगों से सजे परिधान जब दीये की कोमल रोशनी में चमकते-दमकते हैं तो चरी नृत्य और खिलता है. यह नृत्य कोई तमाशा या खेल नहीं है यह सामुदायिक भावना का अनुभव है, जो कलाकारों और दर्शकों को एक उत्सवी माहौल में ले जाता है. 

हाल के वर्षों में, चरी नृत्य ने राजस्थान की सीमाओं को पार कर लिया है और वैश्विक मंचों पर भी इसकी प्रशंसा हुई है. इसकी कला, संतुलन और सांस्कृतिक महत्व का अनूठा मिश्रण इसे अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक उत्सवों में पसंदीदा बनाता है, फिर भी, अपनी वैश्विक अपील के बावजूद, यह नृत्य अपनी जड़ों में गहराई से जुड़ा हुआ है. यह एक जीवंत परंपरा बनी हुई है, जो पीढ़ियों से महिलाओं द्वारा संरक्षित की जाती है, जो इस कला को बनाए रखने के लिए समर्पित हैं. 

कहां देख सकते हैं चरी नृत्य?
उदयपुर की बागोर की हवेली में हर शाम राजस्थानी लोक शैली की कलाओं की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां होती हैं. इसे 'धरोहर' नाम की एक संस्था कराती है, जिसका निर्देशन और देखरेख लोक कलाकार दीपिक दीक्षित करते हैं. दीपक बताते हैं कि चरी नृत्य, कुलीन घराने की महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है. इसे वह समूह में करती हैं और गीत के बोल के बजाय वाद्य की धुन अधिक महत्वपूर्ण होती हैं. नृत्य उसी धुन से लय पाता है और उसमें गति आती है. 

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यह एक ऐसा नृत्य है, जो प्रत्येक प्रदर्शन के साथ खिलता है, राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत के बगीचे में एक चमकता फूल, जो आने वाली पीढ़ियों को मोहित करने के लिए अपनी परंपरा में सजा-धजा है.

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