भेड़ पालन ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए बेहद फायदेमंद व्यवसाय बनता जा रहा है. भेड़ों का इस्तेमाल मांस के व्यापार के अलावा ऊन, खाद, दूध, चमड़ा जैसे कई सारे उत्पाद बनाने में किया जाता है. भारत में फिलहाल मालपुरा, जैसलमेरी, मंडियां, मारवाड़ी, बीकानेरी, मैरिनो, कोरिडायल रामबुतु ,छोटा नागपुरी शहाबाबाद प्रजाति के भेड़ों के पालन का चलन ज्यादा है.
बताते चलें कि कई किसान भेड़ पालन में सही मुनाफा नहीं होने की शिकायत करते हैं. उन किसानों के साथ ऐसा सिर्फ सतही जानकारी होने के चलते होता है. ऐसे में किसानों के लिए सही भेड़ों की नस्लों का चुनाव करना बेहद जरूरी हो जाता है. यहां हम आपको से भेड़ों की कुछ मुख्य नस्लों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे पशुपालक अधिकतम लाभ कमा सकते हैं
मेरिनो
ये भेड़ मुख्य रूप से स्पेन की है. भारत में ये भेड़ बड़े पैमाने पर पाई जाती है. ये विपरीत जलवायु में जीवन यापन कर लेती है. मेरिनो नस्ल के नर भेड़ में घुमावदार सींग होते हैं तो वहीं मादा भेड़ों में सींग नहीं होते हैं. अधिक ऊन उत्पादन के लिए ये सबसे बेहतर नस्ल मानी जाती है. इस नस्ल के एक भेड़ से प्रतिवर्ष 5 से 9 किलोग्राम ऊन प्राप्त होती है.
चौकला
राजस्थान के चुरू, झुंझनू और सीकर जिलों में ये भेड़ बड़े पैमाने पर पाई जाती है. सफेद रंग की इस भेड़ के चेहरे का रंग भूरा या काला होता है. यह भेड़ सींग रहित होती है. इस नस्ल की मादा का भार 22 से 32 किलोग्राम तथा नर का भार 30 से 40 किलोग्राम होता है. इस भेड़ से प्रतिवर्ष 1.5 से 2.5 किलोग्राम ऊन प्राप्त होती है.
अविवस्त्र
ये भेड़ मेरिनो तथा राजस्थान की चौकला नस्ल की भेड़ के वर्ण संकरण से विकसित की गई है. इस भेड़ से 2 से 4 किलोग्राम ऊन प्रति भेड़ प्राप्त होती है. इनका वजन 6 माह की उम्र पर 12 किलो तथा एक वर्ष की उम्र पर 23 किलो तक पहुंच जाता है.
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