Aprajita Flower Farming: अपराजिता के फूलों से बनती है चाय, इसकी खेती कर कमाएं तीन गुना ज्यादा मुनाफा

Asian pigeonwings: अपराजिता की फसल गर्मी से लेकर सूखे जैसी स्थितियों में भी बढ़िया तरीके से विकास करती है. मिट्टी और जलवायु का इसपर कोई खास असर नहीं पड़ता है. इसके-मटर और फलियां जहां भोजन बनाने में काम आती हैं. वहीं, इसके फूलों से ब्लू टी यानी नीली चाय बनाई जाती है. इस नीली चाय को डायबिटीज जैसी बीमारियों के खिलाफ फायदेमंद है.

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Aprajita Flower Farming Aprajita Flower Farming

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST

Aprajita Flower Farming: देश में किसानों के बीच औषधीय फसलों की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है. सरकार भी एरोमा मिशन के तहत इन फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है. अपराजिता भी कुछ इसी तरह की फसल है, इसे तितली मटर भी कहते हैं. इसकी गिनती दलहनी और चारे वाली फसलों में भी होती है.

कई रोगों के खिलाफ फायदेमंद

इसके-मटर और फलियां जहां भोजन बनाने में काम आती हैं. वहीं, इसके फूलों से ब्लू टी यानी नीली चाय बनाई जाती है. इस नीली चाय को डायबिटीज जैसी बीमारियों के खिलाफ फायदेमंद है. वहीं, इस पौधे के बाकी बचे भाग को आप पशु चारे के तौर पर उपयोग कर सकते हैं. यानी एक फसल तीन काम और तीन गुना ज्यादा मुनाफा. 

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ऐसे करें खेती

अपराजिता की फसल गर्मी से लेकर सूखे जैसी स्थितियों में भी बढ़िया तरीके से विकास करती हैं. मिट्टी और जलवायु का इसपर कोई खास असर नहीं पड़ता है. इसकी खेती से पहले बीजों का उपचार कर लेना चाहिये. विशेषज्ञों के अनुसार, बुवाई 20 से  25 × 08 या 10 सेमी की दूरी एवं ढ़ाई से तीन सेमी की गहराई पर करनी चाहिए.

इतना उत्पादन हासिल कर सकते हैं

इसकी फलियों की तुड़ाई वक्त रहते कर लें, वरना इसकी फलियां जमीन पर गिरकर खराब हो जाती हैं. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, अगर आप एक हेक्टेयर में इसकी खेती करते हैं तो आराम से 1 से 3 टन सूखा चारा और 100 से 150 किलो बीज प्रति हेक्टेयर का उत्पादन हासिल कर सकते हैं. वहीं, सिंचाई वाले इलाकों में इसके उत्पादन में 8 से 10 टन सूखा चारा और 500 से 600 किलो बीजों का उत्पादन लिया जा सकता है.

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कई देशों में इसके फूलों और प्रोडक्ट की निर्यात भी किया जाता है. ऐसे में किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा हासिल कर सकता है. बता दें कि भारत के अलावा इसकी खेती अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और चीन जैसे देशों में बड़े पैमाने पर की जाती है. 

 

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