सैटेलाइट तस्वीरों से सामने आया उइगर मुसलमानों को लेकर चीन का क्रूर चेहरा

चीन इन सेंटर्स को री-एजुकेशन कैम्प्स का नाम देता है. इन कैम्प्स ने तब अस्तित्व में आना शुरू किया जब शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव पद संभाला और 2012 में सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन बने.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 11:16 PM IST

  • हिटलर-स्टालिन के यातना शिविरों की तर्ज पर चीन के कैंप
  • चीन इन सेंटर्स को री-एजुकेशन कैम्प्स का नाम देता है

नाजी जर्मनी ने यहूदियों की बड़े पैमाने पर हत्याओं के लिए ऐसे शिविरों का इस्तेमाल किया. सोवियत रूस ने लाखों बुद्धिजीवियों, असंतुष्टों, लेखकों आदि के उत्पीड़न के लिए इनका सहारा लिया. 2020 की बात की जाए तो शी जिनपिंग के तहत चीन ने ऐसी दमनकारी लेकिन हाईटेक सुविधाओं का निर्माण कर रखा है, जिन्हें एडॉल्फ हिटलर के कंसंट्रेशन कैम्पों और जोसेफ स्टालिन के कुख्यात गूलाग (यातना शिविर) के मॉडल्स पर तैयार किया गया है.

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सैटेलाइट तस्वीरों के माध्यम से आजतक/इंडिया टुडे चीन के इन नजरबंदी सेंटरों का काला सच आप तक पहुंचा रहा है. ये तस्वीरें चीन के मुस्लिम अल्पसंख्यकों के क्रूर दमन का सबूत हैं.

चीनी गूलाग

चीन इन सेंटर्स को री-एजुकेशन कैम्प्स का नाम देता है. इन कैम्प्स ने तब अस्तित्व में आना शुरू किया जब शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) का महासचिव पद संभाला और 2012 में सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के चेयरमैन बने.

अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक जातीय उइगर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यक समूहों के लोग बड़ी संख्या में चीन में हिरासत में हैं. इन्हें सुदूर पश्चिमी क्षेत्र में नजरबंदी कैम्पों के फैले हुए बड़े जाल में रखा गया है. अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने बीजिंग की ओर से उइगरों के साथ किए जा रहे बर्ताव को "सदी का दाग" कहा है.

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इस तरह के नजरबंदी कैम्पों के विस्तार ने तब रफ्तार पकड़ी, जब शी जिनपिंग ने इस इलाके की कमान चेन कुआनगुओ नाम के अति उत्साही राजनेता को सौंपी. उइगर इस क्षेत्र को पूर्वी तुर्केस्तान कहते हैं. वहीं बीजिंग ने इसे शिंजियांग का नाम दिया है.

अगस्त 2016 में, चेन ने इस हिस्से में पार्टी सचिव का पदभार संभाला और जातीय अल्पसंख्यकों के दमन के लिए क्रूर तरीकों को अपनाया. इनमें सख्त कारावास, जबरन नसबंदी, शारीरिक और मानसिक यातनाओं के अलावा और भी खराब बहुत कुछ था .

गूलाग तस्वीरों का विश्लेषण

50 से अधिक सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण उन अमानवीय तरीकों को दिखाता है, जिनमें लोगों को तथाकथित री-एजुकेशन सुविधाओं में ठूंसा गया है और इनसे मजदूर कैम्पों की तरह भी काम लिया जा रहा है.

सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि गूलागों के बाहर लंबी ऊंची दीवारें खड़ी की गई हैं. साथ ही सभी कोनों पर बाह्य पहरेदार तैनात हैं, जो हर वक्त कैदियों पर कड़ी नजर रखते हैं. कैदियों के लिए बनाई गई इमारतें आम तौर पर चार-या पांच मंजिला होती हैं, हर मंजिल पर बीच के गलियारे के साथ दोनों तरफ छोटे छोटे कमरे बने हैं.

यहां फिर गेट के साथ 15 फीट ऊंची तारों की ग्रिल हैं. असल में, हर इमारत के लिए किसी भी दिशा में तीन स्तर वाली सुरक्षा बाड़ है. साथ ही ये हाई-टेक सर्विलांस सिस्टम से लैस हैं.

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2018 और 2019 में वायर-ग्रिल बाड़ को हटाए जाते देखा गया. संभवतः अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की ओर से चीन के दमनकारी तरीकों के खिलाफ आवाज उठाने के बाद ऐसा किया गया.

लाल छतों के साथ सिंगल स्टोरी वाली बैरकों को आमतौर पर जबरन मजदूर कैम्पों की तरह इस्तेमाल किया जाता है. यहां सरकारी संस्थानों के लिए इलेक्ट्रोनिक कलपुर्जों का निर्माण कराया जाता है जिससे कि ऐसी वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाया जा सके.

PLA की निगरानी में निर्माण

इस तरह के नजरबंदी कैम्पों के निर्माण के दौरान चीनी सेना यानी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की मौजूदगी भी आसपास देखी गई. इससे संकेत मिलता है कि इन कैम्पों का निर्माण PLA की देखरेख में ही हुआ.

विश्लेषण से संकेत मिलता है कि इन कैम्पों का निर्माण मॉडयूलर तरीके से किया गया है. जहां स्टील के ब्रेसेज को पहले खड़ा किया गया फिर मॉड्यूलर ब्लॉक्स को फिट कर दिया गया. इससे निर्माण का समय एक साल से घटकर दो महीने पर आ गया.

लोकेशन से पता चलता है कि चीनी गूलागों को शहर और कस्बों से बाहर बनाया गया है जिससे कि आम जनता की वहां तक आसानी से पहुंच न हो सके.

मुस्लिम परिवारों को अलग करना

लगता है कि चेन कुआनगुओ और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने उइगर की परिवार इकाइयों को उनके सदस्यों को अलग कर निशाना बनाया.

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विभिन्न रिपोर्टों से पता चलता है कि बच्चों और उनके माता-पिता को अलग-अलग उठाया जाता है और उन्हें अलग-अलग हिरासत केंद्रों में रखा जाता है. फिर उन्हें करीबियों से बहुत दूर स्थित गूलागों में पहुंचा दिया जाता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आतंकी गतिविधियों में शामिल होने जैसे झूठे बयानों पर हस्ताक्षर करने के लिए उइगर लोगों को जबरन मजबूर किया जाता है.

राजनीतिक माइंडवॉश

गूलागों में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के निर्देशों के तहत सभी कैदियों में दैनिक आधार पर राजनीतिक विचारधारा भरने की कोशिश की जाती है. कक्षाएं हर स्तर पर राजनीतिक कमिसार (सरकारी विभागाध्यक्ष) संचालित करते हैं. ये सभी कमिसार चीन के बहुसंख्यक हान समुदाय से होते हैं.

जो लोग CCP के राजनीतिक नजरिए को अपनाने के लिए तैयार होते हैं, उन्हें लेबर कैम्प में पहुंचा दिया जाता है और छोटी वस्तुओं के उत्पादन में लगाया जाता है. जो लोग पार्टी के निर्देश को स्वीकार नहीं करते, उन्हें जेलों में भेजकर अंतहीन याचनाएं दी जाती हैं. ऐसा तब तक किया जाता है जब तक वो झुक नहीं जाते.

CCP का क्रूर रिकॉर्ड

CCP ने हमेशा निर्मम और कठोर शासन करने में विश्वास किया है. द्वितीय विश्व युद्ध के तत्काल बाद चीन के तथाकथित ‘मुक्ति युद्ध’ के दौरान माओत्से तुंग की सेना ने कुओमिन्तांग (KMT) की राष्ट्रीय शक्तियों को समाप्त करने के लिए आक्रामक रुख अपनाया. माओत्से तुंग ने 1 अक्टूबर, 1949 को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना का ऐलान किया.

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KMT शक्तियों का सफाया करने के बाद चीन के कम्युनिस्ट शासन ने निहत्थे तिब्बत पर कब्जे की ओर कदम बढ़ाया. भारत के साथ बातचीत जारी रखने के दौरान भी चीन के नए हुक्मरान ने पूर्वी लद्दाख, जिसे अक्साई चिन भी कहा जाता है, के जरिए मामूली हथियारों वाले पूर्वी तुर्केस्तान को भी हथिया लिया.

इस प्रकार, 1950 के दशक के मध्य तक, चीन के सभी उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर उसका कब्जा हो गया था, जैसा कि जनवरी 2015 में CCP की ओर से जारी नक्शे में दिखाया गया.

तिब्बती और तुर्क लोग उस हान समाज में धार्मिक अल्पसंख्यक बन गए जो ताओवाद को जीवन का रास्ता मानता है. ताओ धर्म बौद्ध धर्म से नया होने के कारण न तो तिब्बत के लोगों को प्रभावित कर सका और न ही तुर्क, किर्गिज़ और कज़ाख मुसलमानों को.

चीनी पूर्वी तुर्केस्तान इलाके का नाम बदल कर शिंजियांग करने से यहां के जातीय मुसलमानों पर नियंत्रण नहीं कर सका. जातीय अल्पसंख्यकों को समझ में आया कि सड़क और रेलवे का जो बुनियादी ढांचा बिछाया गया वो दरअसल उनके क्षेत्र से खनिज संपदा को निकाल कर ले जाने के लिए था.

चीन ने आंतरिक असंतोष को आतंकवाद और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों का नाम दिया. फिर क्रूर और दमनकारी तरीकों से इस आंतरिक असंतोष को दबाना शुरू किया. इसमें न्याय से इतर उइगरों की हत्याएं और यातना शिविर शामिल थे.

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(कर्नल विनायक भट (रिटायर्ड) इंडिया टुडे के एक सलाहकार हैं, जो सैटेलाइट तस्वीरों के विशेषज्ञ हैं, उन्होंने 33 वर्ष भारतीय सेना में सेवा की है)

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