ब्रिटेन से भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मूर्ति लंदन के पार्लियामेंट स्क्वॉयर में लगी है. इसका उद्घाटन दिवंगत अरुण जेटली के हाथों 2015 में हुआ था. लंदन के मेयर सादिक खान के दफ्तर के आदेशों पर मूर्ति को कवर किया गया है. ये कदम ‘’ब्लैक लाइफ मैटर्स” (BLM) मूवमेंट के प्रदर्शनकारियों से मूर्ति को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए उठाया गया है.
मेयर खान के दफ्तर ने इंडिया टुडे को लिखित जवाब में बताया, “विंस्टन चर्चिल, नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी की मूर्तियों को अस्थायी रूप से उनकी सुरक्षा के लिए कवर किया जा रहा है. पार्लियामेंट स्क्वॉयर और ट्राफलगर स्क्वॉयर में अन्य सभी मूर्तियों की समीक्षा की जा रही है और जरूरत पड़ी तो उन्हें भी कवर किया जाएगा."
बापू की मूर्ति को ढके जाने पर गांधी मेमोरियल स्टैच्यू ट्रस्ट के चेयरमैन लॉर्ड देसाई ने कहा, "यह अफ़सोस और शर्म की बात है कि पार्लियामेंट स्क्वायर में गांधी की मूर्ति को BLM रैली से पहले कवर किया जा रहा है. गांधी के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है. वह साम्राज्यवाद और नस्लवाद के खिलाफ संघर्ष के अग्रणी रहे हैं, जिन्होंने डॉ. मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला को प्रेरित किया.”
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सोफिया और माटेओ लंदन में रहते हैं लेकिन इनके मूल देश दूसरे हैं. उन्होंने महात्मा गांधी की मूर्ति की फोटो खींचने के दौरान इंडिया टुडे से कहा, "हम उनकी (मूर्ति की) रक्षा की बात समझते हैं लेकिन गांधी तो शांति के दूत थे."
सोफिया ने कहा, "अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रदर्शन करना ठीक है लेकिन तोड़फोड़ ठीक नहीं है. यह इतिहास का एक हिस्सा है और बेहतर होगा कि पूरे इतिहास की जानकारी रखी जाए.”
ऐसी तर्कपूर्ण बातों को कई लोगों ने साझा किया है. लीसेस्टर में गांधी की मूर्ति को हटाने की एक अन्य कोशिश में डर्बी स्थित केरी पैंगुलियर ने एक याचिका शुरू की है. गांधी को ‘नस्लवादी और फासीवादी’ बताने वाली इस याचिका पर 6000 से अधिक लोग अब तक दस्तखत कर चुके हैं.
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इस कोशिश का विरोध करने के लिए लीसेस्टर ईस्ट के पूर्व सांसद कीथ वाज सामने आए हैं. भारतीय मूल के वाज ने लीसेस्टर के कुछ निवासियों और पार्षदों के साथ मुखौटे पहन कर गांधी की प्रतिमा को घेरा और वहां रेलिंग पर सफेद रिबन बांधे. ऐसा करते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया.
वाज ने कहा “यह शर्मनाक है कि लोगों ने इस मूर्ति के लिए धमकी दी है और इसे हटाने के लिए याचिका शुरू की है. यह हमारे शहर में एक प्रतिष्ठित स्मारक है. महात्मा गांधी मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के लिए एक प्रेरणा थे. वह एक शांतिदूत थे और उन्होंने लाखों लोगों के जीवन को बदला. उन पर पर नस्लवाद का आरोप लगाना बेहूदा और निंदनीय है. जो लोग मूर्ति को कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं, जैसे कि अन्यत्र हुआ, तो उन्हें क़ानून का पूरी ताकत से सामना करना पड़ेगा.”
दरअसल, गांधी के दक्षिण अफ्रीका में शुरुआती दिनों को लेकर कई तरह की टिप्पणियां वक्त वक्त पर सामने आती रहती हैं. गांधी 23 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे थे. बिना किसी सत्यापन ऐसे उद्धरण दिए जाते हैं कि गांधी ने अफ्रीकियों के लिए ‘काफिर’ शब्द का इस्तेमाल किया. ये आरोप लगाया जाता है कि गांधी भारतीयों को अफ्रीकियों से ऊपर समझते थे. ऐसा बहुत कुछ विवादित किताब ‘द साउथ अफ्रीकन गांधी: स्ट्रेचर-बियरर ऑफ एम्पायर’ से लिया गया है जिसे देसाई और वाहेद ने लिखा. इस किताब में गांधी के 1893 से 1914 तक बिताए समय का उल्लेख है.
गांधी हमेशा खुद को विचारों के मायने में विकसित करने वाले व्यक्ति थे. यही दक्षिण अफ्रीका को छोड़ते वक्त तक उनके साथ हुआ.
दिसंबर 1999 में टाइम पत्रिका के लिए लिखे एक आर्टिकल में नेल्सन मंडेला ने कहा, “भारत गांधी का जन्म स्थान है; दक्षिण अफ्रीका को उन्होंने अंगीकृत किया. वो भारतीय और दक्षिण अफ्रीकी नागरिक, दोनों थे. दोनों देशों ने उनकी बौद्धिक और नैतिक विलक्षणता में योगदान दिया. उन्होंने दोनों कॉलोनियल थिएटर्स में स्वतंत्रता आंदोलनों को आकार दिया.”
विडंबना यह है कि BLM मूवमेंट, जो कि अमेरिका में शुरू हुआ, के समर्थक गांधी की मूर्ति को निशाना बना रहे हैं. उस शख्स की मूर्ति, जिसने अमेरिका में नागरिक अधिकारो के सबसे ताकतवर नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर को प्रेरित किया. हालांकि मार्टिन गांधी से जीवनकाल में कभी नहीं मिले, लेकिन उन्होंने गांधी के लिए कहा था, "अहिंसक सामाजिक बदलाव की हमारी तकनीक को दिशा दिखाने वाले प्रकाश-पुंज”
लवीना टंडन