भारत की 197 भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर, 10 भाषाओं के बचे सिर्फ 100 जानकार

पूरी दुनिया ने शुक्रवार को देसी भाषाओं का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया. दुनिया भर में करीब 7,000 भाषाएं हैं. भारत में अभी लगभग 450 जीवित भाषाएं हैं. देश की यह समृद्ध भाषाई विरासत गर्व करने लायक है. लेकिन चिंता की बात है कि हमारे देश की 10 भाषाएं ऐसी हैं जिसके जानकार 100 से भी कम लोग बचे हैं.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 12:16 AM IST

पूरी दुनिया ने शुक्रवार को देसी भाषाओं का अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया. भाषा किसी भी संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विलुप्त होती भाषाओं को लेकर जागरूकता के प्रयास जरूरी हैं. दुनिया भर में करीब 7,000 भाषाएं हैं.

भारत में अभी लगभग 450 जीवित भाषाएं हैं. देश की यह समृद्ध भाषाई विरासत गर्व करने लायक है. लेकिन चिंता की बात है कि हमारे देश की 10 भाषाएं ऐसी हैं जिसके जानकार 100 से भी कम लोग बचे हैं. इन भाषाओं में ज्यादातर भाषाएं मूल निवासियों द्वारा बोली जाती हैं, लेकिन ये भाषाएं खतरनाक ढंग से विलुप्त होती जा रही हैं.

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वहीं 81 भारतीय भाषाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. जिसमें मणिपुरी, बोडो, गढ़वाली, लद्दाखी, मिजो, शेरपा और स्पिति शामिल हैं. लेकिन ये सभी भाषाएं अभी 'कमजोर' की श्रेणी में हैं. इनको बचाए रखने के लिए संगठित प्रयास करने की जरूरत है.

दुनिया की खतरे में पड़ी भाषाओं के यूनेस्को एटलस के ऑनलाइन चैप्टर के मुताबिक भारत की 197 भाषाएं ऐसी हैं जो असुरक्षित, लुप्तप्राय या विलुप्त हो चुकी हैं.

विलुप्त हो रही भाषाओं में अहोम, एंड्रो, रंगकास, सेंगमई, तोलचा व अन्य शामिल हैं. ये सभी भाषाएं हिमालयन बेल्ट में बोलीं जाती हैं.

वहीं यूनेस्को के मुताबिक दुनिया की करीब 97 फीसदी आबादी इनमें से सिर्फ 4 फीसदी भाषाओं की जानकारी रखती है, जबकि दुनिया के केवल 3 फीसदी लोग बाकी के 96 फीसदी भाषाओं की जानकारी रखते हैं.

मूल निवासियों द्वारा बोली जानेवाली हजारों भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं. इंटरनेशनल ईयर ऑफ इंडिजीनियस लैंग्वेज (आईवाईआईएल) यानी देसी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर विशेषज्ञों ने कहा कि हमें सदियों पुरानी भाषाओं को विलुप्त होने से रोकने की जरूरत है.

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