भारत आई एक बहादुर यज़ीदी लड़की से सुनिए ISIS की बर्बरता की खौफनाक कहानी

दुनिया को यह लगता है कि आईएसआईएस खत्म हो रहा है, लेकिन इन महिलाओं के पास आईएसआईएस द्वारा अभी भी किए जा रहे भयानक नरसंहार की रीढ़ कंपा देने वाली कहानियां हैं.

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आईएस के चंगुल से छूटी लड़कियां (फाइल फोटो) आईएस के चंगुल से छूटी लड़कियां (फाइल फोटो)

विद्या / दिनेश अग्रहरि

  • मुंबई ,
  • 05 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 1:35 PM IST

आईएसआईएस के आतंकियों की बर्बरता और क्रूरता के किस्से दुनिया भर में आम हो चुके हैं. लेकिन हाल में ईराक से मुंबई आई एक बहादुर यजीदी युवती ने महिलाओं के साथ इनकी बर्बरता की जो कहानी बयां की है उसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ऐसी दो युवतियां इराक के यजीदी समुदाय की महिलाओं के अधिकारों पर ध्यान आकर्ष‍ित करने के लिए खासकर भारत आई हैं.

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दुनिया को यह लगता है कि आईएसआईएस खत्म हो रहा है, लेकिन इन महिलाओं के पास आईएसआईएस द्वारा अभी भी किए जा रहे भयानक नरसंहार की रीढ़ कंपा देने वाली कहानियां हैं.

गौरतलब है कि यज़ीदी इराक के कुर्दी लोगों का एक उपसमुदाय है जिनका अपना अलग यज़ीदी धर्म है. इस धर्म में वह पारसी धर्म के बहुत से तत्व, इस्लामी सूफ़ी मान्यताओं और कुछ ईसाई विश्वासों के मिश्रण को मानते हैं.

चार साल में बदल गई दुनिया

इराक से मुंबई आईं 30 वर्षीय हनीफा अब्बास खलाफ ने बताया कि साल 2014 में इराक में आईएसआईस के आने से पहले उनका एक खुशहाल जीवन था. वह अपने मां-बाप की शादी के सात साल बाद पैदा हुई थीं. हनीफा इराक के कटानिया नामक गांव में अपने मां-बाप और दस भाई-बहनों के साथ रहती थीं. अगस्त 2014 में वह दुर्भायशाली दिन आया, जब उन्होंने जिंदगी में पहली बार गोलियों की तड़तड़ाहट सुनी. यजीदियों के गांव पर हमला हो चुका था, इसलिए उन्हें अपने परिवार के साथ वहां से भागना पड़ा. सफीना ने बताया कि आईएसआईएस  के आतंकी गोलियों के साथ ग्रेनेड भी फेंक रहे थे.

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इस्लाम के नाम पर कत्लेआम

आईएसआईएस के लोग गांव से 60 महिलाओं को कारों में भरकर अपहृत कर ले गए जिनमें हनीफा की पांच जवान बहनें भी थीं. उन्होंने सभी मर्दों से इस्लाम कु‍बूल करने को कहा और जिसने विरोध किया, उसको मौत के घाट उतार दिया. हनीफा ने बताया कि उसने देखा कि विरोध करने वाले ऐसे ही एक व्यक्ति को पहले कई बार गोली मारी गई, फिर गला काट दिया गया. आसपास खून ही खून दिख रहा था.

आईएसआईएस से जान बचाकर भागे लोगों को पहाड़ों में छुपना पड़ा था, जहां न तो खाने को कुछ था और न ही पानी. वे नीचे नहीं जा सकते थे, क्योंकि वह आईएसआईएस के आतंकी खड़े थे. कई लोग भूख से मर गए और उनकी लाशें ऐसे ही सड़ती रहीं. हनीफा और उनके परिवार के बचे लोग किसी तरह से भागकर सीरिया गए और वहां से फिर उत्तरी इराक में प्रवेश किया.

औरतों को कैद और सामूहिक बलात्कार

कुछ दिनों के बाद हनीफा की बहनों ने किसी तरह से उनसे संपर्क किया और उन्होंने बताया कि आईएसआईएस के आतंकियों ने हजारों यजीदी महिलाओं को कैद कर रखा है और उनके साथ अकल्पनीय अत्याचार किए जा रहे हैं. आईएसआईएस के बर्बर आतंकी जवान लड़कियों को अलग-अलग मर्दों को सौंपते रहे हैं और उनका जमकर यौन शोषण किया जाता है.

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जानवरों की तरह बिक्री

कुछ दिनों के बाद खुद हनीफा की बहन ने फोन कर बताया कि उसके साथ भी आईएसआईस के कई आतंकियों ने बलात्कार किए हैं. इसकी वजह से कुछ दिनों के बाद हनीफा की बहन की मौत हो गई. इस सदमे से कुछ दिनों के बाद हनीफा के पिता की भी मौत हो गई. हनीफा ने अपने पिता को वचन दिया था कि वह अपने भाई-बहनों को कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगी.

हनीफा किसी तरह अपनी दो बहनों को वापस पा गईं. उनकी एक बहन से जबरन आईएसआईएस के एक आतंकी के बेटे से शादी कर दी गई थी, लेकिन वह शादी के दो दिन बाद ही किसी तरह से वहां से निकल भागी. उसने एक बार हाथ की नस काटकर आत्महत्या की भी कोशिश की, लेकिन बच गई. इसके बाद एक बार फिर उसने एक इमारत से कूदकर जान देने की कोशिश की. अब उसका जर्मनी में उपचार हो रहा है.

हनीफा की एक 17 वर्षीय दूसरी बहन का भी पता चल गया है. उसे आईएसआईएस के अपहर्ता 16,000 डॉलर में बेचने की कोशिश कर रहे थे.

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