चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और यहां दुनिया के सबसे ज्यादा अरबपति बसते हैं. इसके बावजूद, चीन विकासशील देशों की सूची में शामिल है. चीन को वही सुविधाएं और विशेषाधिकार हासिल हैं जो पापुआ न्यू गिनी और जिम्बॉब्वे जैसे देशों को मिले हुए हैं.
अमेरिका-चीन के ट्रेड वॉर के बीच जुलाई महीने में डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट कर एक नई बहस छेड़ दी थी. ट्रंप ने ट्वीट किया था, "दुनिया के तमाम समृद्ध हो चुके देश विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों से बचने और विशेष तरजीह पाने के लिए विकासशील देश होने का दावा कर रहे हैं. बस, अब ये और नहीं होगा! मैंने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि को इसके खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया है ताकि अमेरिका की कीमत पर तमाम देश सिस्टम को धोखा ना दे सकें."
ट्रंप ने एक अन्य ट्वीट में लिखा था, "चीन जो कि एक आर्थिक महाशक्ति है, उसे विश्व व्यापार संगठन में विकासशील देश का दर्जा हासिल है. इसीलिए अमेरिका की कीमत पर चीन तमाम लाभ उठाता है. विश्व व्यापार संगठन अमेरिका के साथ अन्याय कर रहा है."
ट्रंप ने WTO की व्यवस्था में बदलाव के लिए सभी साधनों का इस्तेमाल करने का निर्देश दिया था. इस पहल में ऑस्ट्रेलिया भी कूद पड़ा था. अमेरिका के दौरे में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने चीन को 'नई विकसित अर्थव्यवस्था' कहा और ट्रंप का समर्थन किया. उन्होंने कहा कि जो देश तरक्की कर चुके हैं, उनके लिए नियमों में भी बदलाव होना चाहिए.
बीजिंग का कहना है कि उसके पास विश्व व्यापार संगठन (WTO) में विकासशील देश का स्वघोषित दर्जा और उसकी सुविधाओं को छोड़ने की कोई वजह नहीं है. चीन कहता है कि विकासशील देश के तहत मिलने वाली सुविधाएं उसका मूल अधिकार है. चीन के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता गाओ फेंग ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि चीन दुनिया की सबसे बड़ी विकासशील अर्थव्यवस्था है जबकि एशियन सुपरपावर चीन की जीडीपी 14.2 ट्रिलियन डॉलर की है और विकसित देशों में शामिल ऑस्ट्रेलिया की जीडीपी सिर्फ 1.5 ट्रिलियन की ही है.
लेकिन चीन इतनी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और तरक्की के बावजूद भी कैसे खुद को विकासशील देश की श्रेणी में शामिल किए हुए हैं और इसके फायदे कैसे उठा रहा है? आखिर चीन कब ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की तरह विकसित देश बन जाएगा? ये सारे ऐसे सवाल हैं जो जब-तब उठते रहते हैं.
कैसे तय होता है विकासशील और विकसित देशों का तमगा?
दरअसल, विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में विकासशील या विकसित देश की कोई परिभाषा तय नहीं की गई है और ना ही सदस्य देशों के लिए कोई मानक तय किए गए हैं. यह पूरी तरह से किसी देश पर निर्भर करता है कि वह खुद को किस श्रेणी में रखना चाहता है. डब्ल्यूटीओ संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किए गए अल्प विकसित देशों को भी मान्यता देता है.
हालांकि, वर्ल्ड बैंक ने उच्च आय वाले देश या विकसित देशों की परिभाषा के लिए 12,055 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) का पैमाना तय कर रखा है.
चीन की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 2017 में 8690 अमेरिकी डॉलर थी जो
वर्ल्ड बैंक के पैमाने से थोड़ा कम है. इसी के तहत चीन अपने विकासशील दर्जे
का बचाव कर सकता है. अन्य देशों की बात करें तो 2017 में मलेशिया की प्रति
व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 9650 डॉलर थी जबकि रूस की प्रति व्यक्ति जीएनआई 9230 डॉलर ही
थी. वहीं, भारत की प्रति व्यक्ति जीएनआई इसी वक्त में 1830 डॉलर ही थी.
हालांकि, विश्व व्यापार संगठन में यह परिभाषा आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं की गई है. इस संगठन में बढ़ती जीडीपी या किसी अन्य पैमाने को लेकर भी कोई तय सीमा नहीं दी गई है. विश्व व्यापार संगठन के मुताबिक, इसके 164 सदस्य देशों में से दो-तिहाई देश खुद को विकासशील देश मानते हैं जिसमें भारत और चीन भी शामिल हैं. विश्व व्यापार संगठन के नियमों के मुताबिक, विकासशील देशों के लिए कुछ खास प्रावधान हैं जिसके तहत दुनिया भर में व्यापार के अवसर बढ़ाने के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए उन्हें लंबा वक्त दिया जाता है.
अमेरिका की तरफ से मांग की गई है कि वैश्विक व्यापार में 0.5 फीसदी से भी ज्यादा की हिस्सेदारी रखने वाले देशों और वर्ल्ड बैंक द्वारा तय किए गए उच्च आय वाले देशों को मिलने वाली छूट और सुविधाओं में कटौती की जानी चाहिए. हालांकि, चीन के साथ भारत, वेनेजुएला और दक्षिण अफ्रीका ने भी अमेरिका के इस प्रस्ताव को खारिज किया है. विश्लेषकों का कहना है कि अगर यह लागू भी हो जाता है तो भी चीन को विशेष तरजीह मिलती रहेगी क्योंकि वह अब भी निम्न आय वाले देशों की श्रेणी में ही आता है.
यानी खुद से दिए जाने वाले दर्जे को रोकने का कोई भी तरीका नहीं है. वॉशिंगटन में केटो इंस्टिट्यूट में हर्बर्ट स्टिफेल सेंटर फॉर ट्रेड पॉलिसी स्टडीज के एसोसिएट डायरेक्टर सिमन लेस्टर कहते हैं, विकासशील और विकसित का दर्जा सद्भावना के विवादित तरीके पर आधारित है यानी कि जब सदस्य देशों को लगेगा कि वे विकसित हो गए हैं, तब वे खुद को विकसित देश घोषित कर लेंगे.
तो ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका भी खुद को विकासशील क्यों नहीं घोषित कर लेते?
लेस्टर
इसके जवाब में कहते हैं, ये बहुत ही अजीब होगा और अगर अमेरिका जैसे देश भी खुद को विकासशील देश घोषित करना शुरू
कर देंगे तो व्यवस्था को कोई मतलब
नहीं रह जाएगा. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश वहां फिट नहीं बैठ सकते हैं. अगर कोई देश स्पष्ट तौर पर गरीब नहीं है, जैसे कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया और वे ऐसा दावा करते हैं तो इस व्यवस्था का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
लेस्टर
कहते हैं कि भले ही डब्ल्यूटीओ का कोई परिभाषित दायरा नहीं है लेकिन अगर
एक निश्चित आय स्तर से ऊपर कोई देश खुद को विकासशील देश घोषित करता है तो
वह हास्यास्पद होगा. किसी देश की आय का अंदाजा लगाने के लिए उसके
प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े भी देखे जा सकते हैं.
कुछ देश हैं जो इस दायरे के आस-पास होने का फायदा उठाते हैं. लेस्टर कहते हैं, कोई इस बात को चुनौती नहीं दे रहा है कि हैती विकासशील देश है लेकिन लेकिन जो देश आर्थिक प्रगति की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं जैसे कि दक्षिण कोरिया या चीन, उनका खुद को विकासशील देश घोषित करना विवादित जरूर है. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में ऑस्ट्रेलियन सेंटर ऑन चाइना के कार्यकारी निदेशक जेन गोले कहती हैं, समस्या ये है कि जब आप एक ऐसे देश को देखते हैं जहां सबसे ज्यादा अरबपति हैं तो सवाल उठता है कि वह विकासशील देश कैसे हो सकता है?
विश्लेषकों को चिंता है कि चीन पर बढ़ता कर्ज वैश्विक बाजार के लिए गंभीर नतीजे ला सकता है. चीन विकसित होने से पहले ही ताकतवर देश बन गया है जोकि अजीब स्थिति है. 1980 और 1990 में चीन गरीब हुआ करता था लेकिन अब विकसित हो चुका है. अब चीन औद्योगिक पावरहाउस बन चुका है तो हैती जैसे देशों को मिलने वाली खास छूट की उसे जरूरत नहीं है. लेस्टर कहते हैं, आप खुद को उस श्रेणी में नहीं रख सकते हैं जिससे आप ऊपर उठ चुके हैं. मुझे लगता है कि एक बीच की कैटेगरी होनी चाहिए ताकि चीन अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करें और विकासशील देशों के लिए बने खास नियमों का हर सेक्टर में फायदा ना उठा सके. जैसे-जैसे कोई देश विकासशील दर्जा से ऊपर उठे तो कोई ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए जिससे इन देशों की असली आर्थिक स्थिति का आकलन किया जा सके.
यूएस ने पिछली जुलाई में डब्ल्यूटीओ की परिषद को एक दस्तावेज सौंपा था जिसमें उसने चीन को विकासशील देश का दर्जा ना दिए जाने को लेकर दलीलें दी थीं. अमेरिका ने चीन की अभूतपूर्व आर्थिक वृद्धि, तकनीक और रक्षा क्षेत्र में प्रगति का हवाला दिया. चीन का भारी-भरकम विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और उच्च खरीद क्षमता को लेकर भी उसके डिवलपिंग कंट्री के स्टेटस को लेकर सवाल खड़े किए गए. यहीं नहीं, चीन दुनिया की 100 सबसे बड़ी कंपनियों में से 12 का घर है.
तो क्या चीन कभी अपना ये दर्जा छोड़ेगा?
कुछ देशों ने खुद आगे बढ़कर विकासशील देशों के तमगे को छोड़ दिया है और संगठन की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए तैयार हैं. फरवरी महीने में अमेरिका ने एक प्रस्ताव भी पेश किया था जिसके तहत विकासशील और विकसित देशों के लिए एक स्पष्ट दायरा तय किया गया था हालांकि इस प्रस्ताव को कभी अपनाया जाएगा, ये स्पष्ट नहीं है. दूसरी तरफ, अमेरिका ने ब्राजील को विकासशील दर्जे को छोड़ने के लिए तैयार कर लिया क्योंकि वह इकोनॉमिक कोऑपरेशन ऐड डिवलेपमेंट (OECD) के तहत काम करता है यानी औपचारिक तौर पर मान्यता मिलने से पहले ही अमेरिका अपने प्रस्ताव पर अमल कराने लग गया है.
पीटरसन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के सदस्य एनाबेल गोंजालेज एबीसी न्यूज से कहते हैं, जब भी इस दिशा में कोई प्रयास होता है तो विकासशील देश एकजुट होकर इसका विरोध करने लगते हैं. दूसरी तरफ, सदस्य देशों के बीच इतनी विविधता है कि कोई स्पष्ट पैमाना तय करना मुश्किल है. ऐसे में चीन कब खुद को विकसित देश घोषित करता है, ये पूरी तरह से उसके विवेक पर ही निर्भर करता है.