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अब बांग्लादेश भी जा रहा PAK-चीन के करीब, भारत के लिए टेंशन

aajtak.in
  • 20 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 9:23 AM IST
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जब भारत लद्दाख में चीन के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद विवाद सुलझाने में व्यस्त है तो पाकिस्तान इसे बांग्लादेश में मौके के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है. पिछले दिनों ढाका में एक ऐसी बैठक हुई जिसे लेकर कहा जा रहा है कि यह भारत की पूर्वी सीमा पर बनी यथास्थिति को बदलने की क्षमता रखती है.

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ढाका में पाकिस्तान के उच्चायुक्त इमरान अहमद सिद्दीकी ने दो सप्ताह पहले बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए. के. अब्दुल मोमेन से मुलाकात की. पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच इस तरह की बैठक होना सामान्य बात नहीं है. ढाका के एक वरिष्ठ पत्रकार ने तुर्की की एनाडोलु न्यूज एजेंसी से कहा कि पहले पाकिस्तानी राजदूत कुछ मौकों पर ही हमारे वरिष्ठ अधिकारियों से मिलते थे और वो भी तब जब बांग्लादेश किसी मुद्दे पर विरोध दर्ज कराने के लिए उन्हें समन करता था.

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बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने इस मुलाकात को लेकर कोई बयान जारी नहीं किया है. वहीं, पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने ट्विटर पर एक तस्वीर शेयर की और कहा कि उन्हें दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की उम्मीद है. वहीं, बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने एनाडोलु एजेंसी से कहा कि ये एक सामान्य मुलाकात थी. पाकिस्तान के उच्चायुक्त काफी लंबे वक्त से इस बैठक की मांग कर रहे थे.

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हालांकि, पाकिस्तान-बांग्लादेश के बीच जिस वक्त में ये बैठक हुई है, वो बिल्कुल भी सामान्य नहीं है. एक तरफ, भारत कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ, चीन, श्रीलंका और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के साथ संबंध तनावपूर्ण चल रहे हैं. शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश भारत के लिए भरोसेमंद दोस्त रहा है लेकिन चीन और पाकिस्तान यहां भी खामोशी से अपने कदम आगे बढ़ाने की फिराक में हैं.

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पिछले कुछ महीनों से ढाका और बीजिंग की भी नजदीकियां बढ़ी हैं. चीन ने बांग्लादेशी उत्पादों को ड्यूटी फ्री कर दिया और वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर के कई प्रोजेक्ट में भी निवेश कर रहा है. चीन बांग्लादेश को कोरोना वायरस की लड़ाई में भी मेडिकल आपूर्ति के जरिए मदद कर रहा है. बांग्लादेश चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड में भी शामिल हो चुका है जबकि भारत इसका विरोध करता रहा है. यहां तक कि भारत और चीन के बीच जब लद्दाख में हिंसक झड़प हुई तो बांग्लादेश की तरफ से कोई बयान जारी नहीं किया गया. बांग्लादेश ने हिंसक संघर्ष में मारे गए भारतीय जवानों को लेकर संवेदना तक नहीं जताई थी.

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कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अब पाकिस्तान भी बांग्लादेश में कूटनीतिक तौर पर ज्यादा सक्रिय नजर आ रहा है और ढाका में चीजें तेजी से बदलती नजर आ रही हैं. जनवरी महीने में सिद्दीकी बांग्लादेश में पाकिस्तानी उच्चायुक्त के पद पर नियुक्त हुए थे. यह पद करीब 20 महीनों तक खाली ही पड़ा था क्योंकि बांग्लादेश प्रशासन ने पाकिस्तान की ओर से नामित किए गए सैयद सैकलिन की नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी थी. सिद्दीकी बांग्लादेश में पहले भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. हालांकि, कुछ सूत्रों का कहना है कि बांग्लादेश को सिद्दीकी के नाम पर सहमति देना भी हैरान करने वाला ही था. सिद्दीकी जब से उच्चायुक्त बने हैं, तब से बांग्लादेश में पाकिस्तान ज्यादा सक्रिय हो गया है.

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पाकिस्तान और बांग्लादेश के संबंध कई सालों से तनावपूर्ण रहे हैं. दोनों देश आज भी 1971 के युद्ध की कड़वी यादों से बाहर नहीं निकल पाए हैं. 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान टूटकर एक नए देश बांग्लादेश का निर्माण हुआ था. इसमें भारत ने अहम भूमिका निभाई थी.

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हालांकि, पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों में तब और खटास आ गई जब कुछ साल पहले शेख हसीना की सरकार ने 1971 में युद्ध अपराध करने के आरोप में बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के कई नेताओं को फांसी पर चढ़ाने का फैसला किया. पाकिस्तान ने इसे लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी और इसे भारत-बांग्लादेश-पाकिस्तान के बीच 1974 में हुए त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन करार दिया था. बांग्लादेश ने इस्लामाबाद के तीन अधिकारियों पर इस्लामिक चरमपंथियों से जुड़े होने का आरोप लगाते हुए उन्हें पाकिस्तान लौटने के लिए भी मजबूर कर दिया था.

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कहा जा रहा है कि क्षेत्र में नए घटनाक्रमों ने पाकिस्तान को बांग्लादेश के साथ अपने संबंध सुधारने का एक मौका दिया है. पाकिस्तानी उच्चायुक्त की बांग्लादेश के विदेश मंत्री के साथ हुई मुलाकात को लेकर पाकिस्तानी मीडिया में भी चर्चा हो रही है. पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने एक अधिकारी के हवाले से लिखा है, इस बैठक को लेकर इसलिए ज्यादा शोर नहीं मचाया जा रहा है क्योंकि कुछ बाहरी ताकतें पाकिस्तान की बांग्लादेश के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिशों में खलल डाल सकती हैं.

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कई सालों से बांग्लादेश में पाकिस्तान को दुश्मन की तरह देखा जाता रहा है लेकिन वहां भी कुछ ऐसे समूह हैं जो इतिहास और धर्म का हवाला देते हुए पाकिस्तान के प्रति वफादार हैं और उसके लिए सहानुभूति रखते हैं. पाकिस्तान समर्थक इस लॉबी ने बांग्लादेश की विदेश नीति को प्रभावित करने की तमाम कोशिशें की हैं और भारत के बजाय पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंध मजबूत करने पर जोर देती रही है. हालांकि, चिंता की बात ये है कि ये लॉबी आजकल बहुत ज्यादा सक्रिय हो गई है. कुछ भारतीय विश्लेषकों का कहना है कि बांग्लादेश में बदलते राजनीतिक परिदृश्य में यह बैठक काफी अहमियत रखती है. एक सूत्र ने कहा, पाकिस्तान समर्थक इस समूह की मौजूदगी के बारे में हर किसी को पता है लेकिन अब इसने राजनीतिक ताकत भी जुटा ली है और नीति बदलने में भी सक्षम हो गई है.

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ढाका के कुछ सूत्रों का कहना है कि एक कारोबारी के नेतृत्व वाले इस पाकिस्तान समर्थक लॉबी को शेख हसीना का भी भरोसा हासिल है और इनकी पहुंच सीधे प्रधानमंत्री तक है. इस समूह ने सत्तारूढ़ पार्टी अवामी लीग के एक धड़े पर भी अपना प्रभाव बना लिया है जिसमें नई पीढ़ी के नेता शामिल हैं.

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दूसरी तरफ, भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में कुछ मुद्दों को लेकर दूरियां बढ़ी हैं. भारत ने पिछले साल नागरिकता (संशोधन) कानून पास किया जिसका बांग्लादेश ने खूब विरोध किया था. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बांग्लादेश का दौरा भी रद्द करना पड़ा था. नागरिकता कानून के तहत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के आरोप पर विदेश मंत्री मोमेन ने कहा था, ''जो वे हिंदुओं के उत्पीड़न की बात कह रहे हैं, वो गैर-जरूरी और झूठ है. पूरी दुनिया में ऐसे देश कम ही हैं जहां बांग्लादेश जैसा सांप्रदायिक सौहार्द है. हमारे यहां कोई अल्पसंख्यक नहीं है. हम सब बराबर हैं. एक पड़ोसी देश के नाते, हमें उम्मीद है कि भारत ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे हमारे दोस्ताना संबंध खराब हों."

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मोमेन ने कहा था कि धर्म के आधार पर नागरिकता के इस कानून से भारत का सेक्युलर पक्ष कमजोर होगा. मोमेन ने कहा था, ''बांग्लादेश में हमारी सरकार में अल्पसंख्यकों का कई उत्पीड़न नहीं हुआ. हां, ये सही है कि सैन्य शासन और अन्य सरकारों के कार्यकाल में अल्पसंख्यकों का छोटे स्तर पर उत्पीड़न हुआ है. 2001 में अल्पसंख्यकों के साथ हमारी पार्टी के कार्यकर्ताओं का भी उत्पीड़न हुआ है.'' विदेश मंत्री मोमेन ने यह भी कहा था कि भारत की कुछ राजनीतिक पार्टियां अपने हित के लिए एनआरसी में बांग्लादेश का नाम ले रही हैं.

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एनआरसी और नागरिकता कानून ने भारत-बांग्लादेश के संबंधों पर बुरा असर डाला है, वहीं पाकिस्तान और चीन से बांग्लादेश की नजदीकी भी चिंताजनक है. ढाका के एक सूत्र ने कहा, अगर इसी रफ्तार से चीजें नया आकार लेती रहीं तो हमारे देश में बहुत कुछ बदल जाएगा. निश्चित तौर पर इसका असर भारत के साथ हमारे संबंधों पर भी पड़ेगा.

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