विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "फरजाद-बी गैस फील्ड समझौते को लेकर भी कई खबरें चल रही हैं. इसमें एक्सप्लोरेशन स्टेज में भारत की ओएनजीसी (ऑयल एंड नैचुरेल गैस कॉर्पोरेशन) कंपनी भी शामिल थी. हालांकि, ईरान की तरफ से नीतिगत बदलाव के चलते द्विपक्षीय सहयोग पर असर पड़ा है. जनवरी 2020 में हमें बताया गया था कि भविष्य में ईरान अपने आप इस गैसफील्ड का विकास करेगा और वह बाद के चरण में भारत की मौजूदगी चाहता है. इस मामले पर चर्चा जारी है."
भारत साल 2009 से ही गैस फील्ड का कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए कोशिशें कर रहा था. फरजाद-बी ब्लॉक में 21.6 ट्रिलियन क्यूबिक फीट का गैस भंडार है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, फरजाद-बी ब्लॉक डिवलेपमेंट जो पहले ईरान और ओएनजीसी विदेश का जॉइंट प्रोजेक्ट था, अब उसे एक स्थानीय कंपनी को सौंपा जा सकता है. अमेरिका ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते को खत्म करते हुए उस पर तमाम तरह के प्रतिबंध लागू कर दिए थे जिसका असर ईरान में भारत की परियोजनाओं पर भी पड़ा.
यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब ईरान और चीन 25 सालों के लिए 400 अरब डॉलर की रणनीतिक और आर्थिक समझौते को अंतिम रूप दे रहे हैं. ईरान-चीन की रणनीतिक साझेदारी पर ईरान की संसद की मुहर का इंतजार है.
चाबहार बंदरगाह और चाबहार जाहेदन रेलवे प्रोजेक्ट से भारत के बाहर होने की खबरों को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कयास बताया. हालांकि, उन्होंने यह कहकर गेंद ईरान के पाले में डाल दी कि परियोजनाओं को लेकर ईरान के जवाब का इंतजार है.
रिपोर्ट्स में कहा जा रहा था कि चाबहार-जाहेदन रेलवे प्रोजेक्ट में फंडिंग में देरी का हवाला देते हुए ईरान ने इससे भारत को बाहर कर दिया है. विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत को अभी इन परियोजनाओं को लेकर ईरान की तरफ से आधिकारिक मंजूरी का इंतजार है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, दिसंबर 2019 में भारत-ईरान जॉइंट कमीशन मीटिंग के दौरान इन मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई थी. ईरान की तरफ से तकनीकी और आर्थिक मुद्दों पर अंतिम फैसला करने के लिए एक आधिकारिक दल को नामांकित किया जाना था. इस पर अभी तक इंतजार जारी है.
हाल ही में, ईरान के उप-राष्ट्रपति एस्हाह जहांगीरी ने कहा था कि सरकार ने रेलवे लिंक के निर्माण के लिए नेशनल डिवलपमेंट फंड से 300 मिलियन डॉलर खर्च करने को मंजूरी दे दी है.
भारत और ईरान के समझौते की क्या स्थिति है? इस सवाल के जवाब में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, जहां तक चाबहार रेलवे प्रोजेक्ट की बात है, भारत सरकार की तरफ से परियोजना की व्यावहारिकता का मूल्यांकन करने के लिए इरकॉन (IRCON) को नियुक्त किया गया था. इरकॉन ईरान के रेल मंत्रालय की सीडीटीआईसी कंपनी के साथ मिलकर काम कर रही थी. इरकॉन ने साइट का मुआयना कर लिया था और इसे लेकर कई रिपोर्ट तैयार कर ली थी. इसके बाद, परियोजना के अन्य पहलुओं को लेकर भी विस्तार से चर्चा हुई. इन बैठकों में ईरान की आर्थिक मुश्किलों और चुनौतियों को लेकर भी बातचीत हुई.
चाबहार परियोजना भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. इस परियोजना के तहत भारत-ईरान और अफगानिस्तान के बीच कई प्रोजेक्ट को लेकर सहमति बनी थी. 628 रेलवे लाइन सिस्तान और बलूचिस्तान से होते हुए जाहेदन को चाबहार से जोड़ेगा. चाबहार ओमान की खाड़ी में ईरान का इकलौता समुद्री बंदरगाह है.
विदेश मंत्रालय ने कहा, 2003 से ही भारत चाबहार प्रोजेक्ट को लेकर प्रतिबद्ध रहा है और 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे में ये बंदरगाह आखिरकार ऑपरेशनल हुआ. उसके बाद से ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद बंदरगाह परियोजना पर अच्छी-खासी प्रगति हुई है. 2018 से एक भारतीय कंपनी चाबहार बंदरगाह को ऑपरेट कर रही है और बंदरगाह पर जहाजों की आवाजाही तेजी से बढ़ी है. यहां तक कि कोरोना वायरस महामारी के वक्त में भी चाबहार बंदरगाह व्यस्त रहता है.
दिसंबर 2018 से अब तक 82 समुद्री जहाजों की देखरेख बंदरगाह पर की जा चुकी है जिसमें से पिछले 12 महीने में ही 52 जहाज आए हैं. बंदरगाह ने 12 लाख टन के कार्गो और 8200 कंटेनर को संभाला. अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया के लिए चाबहार बंदरगाह की उपयोगिता बढ़ाने के लिए लगातार कदम उठाए जा रहे हैं. ईरान की सरकार के सूत्रों ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, जहां तक चाबहार बंदरगाह की बात है, ईरान क्षेत्र में शांति, स्थिरता और आर्थिक प्रगति लाने के लिए इस बंदरगाह को लेकर भारत के साथ अपनी साझेदारी को लेकर प्रतिबद्ध रहा है. हमें इस बात की खुशी है कि कोरोना महामारी के वक्त में भी चाबहार बंदरगाह से माल की आवाजाही बनी हुई है. भारत की देखरेख में चाबहार बंदरगाह दिन पर दिन फल-फूल रहा है.