अपने समय के रूमानी और क्रांतिकारी शायर मजाज लखनवी की 69वीं बरसी के अवसर पर एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन लखनऊ और मजाज मेमोरियल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में निशातगंज कब्रिस्तान, पेपर मिल कॉलोनी स्थित उनकी कब्र पर फातिहा का आयोजन किया गया. एसोसिएशन के अध्यक्ष एसएम शोएब ने इस अवसर पर मौजूद अलीग समुदाय और अन्य उर्दू प्रेमियों को संबोधित करते हुए कहा कि असरारुल हक, जो मजाज लखनवी के नाम से मशहूर हैं, एक प्रमुख अलीग थे, जिनकी सन् 1933 में नज्र-ए-अलीगढ़ नामक लिखी गई कविता 1954 में एएमयू का प्रसिद्ध कुलगीत बन गई.
उन्होंने कहा कि उर्दू के कीट्स कहे जाने वाले मजाज प्रगतिशील लेखकों के आंदोलन से सम्बंधित थे. उनका जन्म 19 अक्टूबर 1911 को वर्तमान अयोध्या जिले के रुदौली कस्बा में हुआ था और 5 दिसंबर 1955 को मात्र 44 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई. उन्हें लखनऊ के निशातगंज कब्रिस्तान में दफनाया गया.
कार्यक्रम की शुरुआत अनवर हबीब अल्वी द्वारा पवित्र कुरान की तिलावत से मजाज की फातिहा ख़्वानी की गई. इस मौके पर एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव आतिफ हनीफ ने कहा कि मजाज को किसी एक क्षेत्र अथवा वर्ग तक सीमित रखना अनुचित होगा. उर्दू साहित्य से प्रेम करने वाला हर व्यक्ति उनका प्रशंसक है, हालांकि पिछले कई वर्षों से एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन, लखनऊ द्वारा उनकी बरसी पर फातिहा ख़्वानी की शुरुआत की गई है, लेकिन आज मौजूद अधिकांश लोग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से सम्बंधित नहीं हैं, जो उर्दू अदब और मजाज की मुहब्बत का इजहार है.
इस दौरान परवेज मलिकज़ादा ने कहा कि मजाज़ को किसी एक काल या युग तक सीमित नहीं किया जा सकता. उनकी कविता की सार्थकता आज भी उतनी ही है जो साठ सत्तर साल पहले थी. जीवन ने उनसे वफ़ा नहीं की, अन्यथा बहुत संभव था कि वे इस शताब्दी के महानतम उर्दू कवि सिद्ध होते.
अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज के निदेशक डॉ. एहतिशाम खान ने कहा कि एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन लखनऊ द्वारा शुरू की गई स्वागत योग्य पहल को और बढ़ावा देने की ज़रूरत है और यह खुशी की बात है कि अन्य लोग भी अमूबा की पहल का अनुसरण कर रहे हैं एवं प्रयास से प्रेरित हो रहे हैं और मजाज़ मेमोरियल ट्रस्ट का गठन एक अच्छा कदम है.
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