लखनऊ: अधर में लटका ओवरब्रिज प्रोजेक्ट, 5 लाख से ज्यादा लोग हो रहे परेशान, जानें पूरा मामला

उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के अनुसार, निर्माण के तय संरेखण में एक पहले से निर्मित भवन आ रहा है जो ग्रीन बेल्ट के अंतर्गत दर्ज है. इस भवन को ध्वस्त करना प्रस्तावित है, लेकिन जिस भूमि पर यह बना है, वहां के कास्तकारों ने अधिग्रहण को लेकर सहमति नहीं दी है.

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लखनऊ में अधर में लटका ओवरब्रिज प्रोजेक्ट लखनऊ में अधर में लटका ओवरब्रिज प्रोजेक्ट

अंकित मिश्रा

  • लखनऊ,
  • 19 जून 2025,
  • अपडेटेड 10:26 PM IST

लखनऊ के कृष्णानगर और केसरीखेड़ा को जोड़ने वाला दो लेन का रेल ओवरब्रिज अब अधर में लटका हुआ है. यह ओवरब्रिज लखनऊ-कानपुर रेल सेक्शन की क्रॉसिंग संख्या 4 पर बनना प्रस्तावित है, जहां हर दिन हजारों वाहन रेल फाटक पर फंस जाते हैं और स्थानीय लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 1 फरवरी 2024 को हुई थी, जिसे उत्तर प्रदेश राज्य योजना के तहत 74.48 करोड़ रुपये की लागत से मंजूरी मिली थी. लेकिन बाद में बढ़ी लागत के कारण यह अब करीब 84 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है.

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ओवरब्रिज का निर्माण कार्य कुछ हद तक शुरू भी हो गया था और दीवारों तक काम पहुंच चुका था, लेकिन अब यह एक कॉम्प्लेक्स और भूमि अधिग्रहण की कानूनी पेचीदगियों में फंसकर ठप हो गया है. उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के अनुसार, निर्माण के तय संरेखण में एक पहले से निर्मित भवन आ रहा है जो ग्रीन बेल्ट के अंतर्गत दर्ज है. इस भवन को ध्वस्त करना प्रस्तावित है, लेकिन जिस भूमि पर यह बना है, वहां के कास्तकारों ने अधिग्रहण को लेकर सहमति नहीं दी है.

अब यह मामला भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन संबंधी उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 की प्रक्रिया में उलझा हुआ है. बिना भूमि मालिकों की स्वीकृति और मुआवजा प्रक्रिया के पूरा हुए, कार्य को आगे बढ़ाना संभव नहीं है.

इस परियोजना की देरी का सीधा असर क्षेत्र की करीब पांच लाख की आबादी पर पड़ रहा है. महाराजापुरम, गंगाखेड़ा, पंडितखेड़ा जैसे इलाकों के लोगों के लिए ट्रैफिक जाम अब रोज़ की मुसीबत बन गया है. जब एक साथ दो-तीन ट्रेनें आती हैं, तो रेलकर्मी तक परेशानी में आ जाते हैं और आमजन जीवन जोखिम में डालकर फाटक पार करने को मजबूर होते हैं.

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स्थानीय लोग इसे अधूरा सपना कह रहे हैं, जो हर दिन उनकी जिंदगी में रुकावट बनकर सामने आता है. अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या प्रशासन और सरकार समय रहते सभी पक्षों से संवाद कर इसका समाधान निकाल पाएंगे? या फिर यह पुल ऐसे ही अधूरा खड़ा रहेगा, और लोगों की परेशानी हर दिन बढ़ती जाएगी?

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