कोरोना से जंग हारे लोगों के हीरो हैं विष्णु, वायरस से मरने वाले 64 लोगों का किया दाह संस्कार

जयपुर का सवाई मानसिंह अस्पताल राजस्थान का कोरोना वायरस के इलाज का सबसे बड़ा सेंटर बना हुआ है. कोरोना से राजस्थान में बुधवार तक 125 लोगों की मौत हुई है. इनमें से 64 जयपुर में हुईं हैं. सभी का अंतिम संस्कार विष्णु और उनके साथियों पंकज, मनीष, मंगल, अर्जुन, सूरज ने किए हैं.

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विष्णु और उनकी टीम पूरी मुस्तैदी से करती है काम विष्णु और उनकी टीम पूरी मुस्तैदी से करती है काम

शरत कुमार

  • जयपुर,
  • 15 मई 2020,
  • अपडेटेड 9:02 PM IST
  • कोरोना से राजस्थान में बुधवार तक 125 लोगों की हुई मौत
  • कोरोना से मरने वालों का दाह संस्कार करते हैं विष्णु

कोरोना पॉजिटिव मरीज अगर आपके घर के आसपास हैं तो ये सुनकर आप डर जाते हैं लेकिन राजस्थान में एक ऐसा हीरो भी है जो अपनी जान हथेली पर रख कोरोना पॉजिटिव होकर मरने वाले लोगों का अंतिम संस्कार करता है और सुपुर्द ऐ ख़ाक भी. राजस्थान के जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल मुर्दाघर के सुपरवाइजर विष्णु, जो कोरोना संक्रमण के इस दौर से पहले कभी कब्रिस्तान नहीं गया था लेकिन आज इस दौर में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इन्होंने 2 महीनों से अपने परिवारजनों का चेहरा मोबाइल पर ही देखा है.

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जयपुर का सवाई मानसिंह अस्पताल राजस्थान का कोरोना वायरस के इलाज का सबसे बड़ा सेंटर बना हुआ है. कोरोना से राजस्थान में बुधवार तक 125 लोगों की मौत हुई है. इनमें से 64 जयपुर में हुईं हैं. सभी का अंतिम संस्कार विष्णु और उनके साथियों पंकज, मनीष, मंगल, अर्जुन, सूरज ने किए हैं. कोरोना महामारी ने उन्हें एक ऐसा काम करने की जिम्मेदारी सौंप दी, जो शायद आमतौर पर कोई नहीं करना चाहता है लेकिन विष्णु और उनकी टीम पूरी मुस्तैदी से यह काम करते हैं. विष्णु और उनके साथी अस्पताल के पास ही बनी एक धर्मशाला में रह रहे हैं और अपने घर भी नहीं जाते हैं.

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सवाई मानसिंह अस्पताल में मुर्दाघर के सुपरवाइजर विष्णु कहते हैं, 'हमने 64 मृतकों में से 26 मुस्लिम मित्रों को कब्रिस्तान में ले जाकर सुपुर्द-ए-खाक भी किया है. इससे पहले नहीं जानता था कि मुस्लिम रीति रिवाज से कैसे अंतिम संस्कार होता है और ना ही कभी कब्रिस्तान गया था.' लोगों का कहना है कि ये कोरोना के असली योद्धा हैं जो जोखिम भरा और मानवता का सबसे बड़ा और प्रशंसनीय काम कर रहे हैं. ये उन 64 लोगों के सबसे करीबी रिश्तेदार बन गए हैं, जिनके भरेपूरे परिवार होने के बावजूद कोरोना के डर ने उन्हें अंतिम समय में अपनों से दूर कर दिया.

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विष्णु के घर उसका तीन साल का बेटा और छह महीने की बेटी भी है जिससे वो पिछले 2 महीने से मोबाइल पर वीडियो कॉल के जरिए ही बात करते हैं. विष्णु बताते हैं कि कोरोना पॉजिटिव मरीजों का अंतिम संस्कार उनके परिवार वाले नहीं कर सकते. कुछ तो डर के चलते आते भी नहीं हैं. उन्होंने बताया कि 13 अंतिम संस्कार ऐसे किए हैं, जिनमें मृतक के परिवार का कोई सदस्य नहीं था. सारा काम हमने खुद किया.

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विष्णु ने बताया कि अभी भी मुर्दाघर में 13 से 14 कोरोना पॉजिटिव मरीजों की अस्थियां उन्होंने निशान लगाकर, मृतकों के नाम लिखकर रखी हैं लेकिन परिवार के सदस्य कोरोना के डर से अस्थि लेने नहीं आये. विष्णु बताते हैं कि 7 साल से मुर्दाघर में काम कर रहे हैं. मगर जब पहली बार अंतिम संस्कार का काम करने गए तो काफी डर लगा, पर अब सारा डर निकल गया है. रोज पीपीई किट पहनने से पहले थर्मल स्कैनिंग होती है. विष्णु और उनके साथियों की कोरोना रिपोर्ट अभी तक निगेटिव ही आयी है.

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