टीचर्स डे पर आपने अच्छे शिक्षकों की दर्जनों कहानियां सुनी होंगी. लेकिन असल जिंदगी में सारे अच्छे टीचर्स ही मिलें, ऐसा नहीं होता. तो सबसे बुरे टीचर्स कैसे होते हैं? आज हम आपको सबसे बुरे टीचर्स की कुछ सच्ची कहानियां पढ़ा रहे हैं...
टीचर ने पीटा तो रातभर चीटियां काटती रहीं
बात ग्वालियर की है. मैं प्राइवेट स्कूल में 7वीं में पढ़ता था. एक बार राकेश लिखार नाम के टीचर ने मेरी इतनी धुनाई की कि मुझे पता ही नहीं चला कि मुझे कितनी चोट लगी है. मैं तब रात में पापा के साथ सोता था. मैंने उन्हें रातभर सोने नहीं दिया और कहा कि मुझे चीटियां काट रही हैं. पापा को कहीं चीटियां नहीं मिली. लेकिन सुबह उन्हें दिखा कि मेरी पीठ में पीटने के निशान हैं. उस टीचर ने मुझे इसलिए मारा था क्योंकि मेरे जुड़वां भाई को मैथ्स में मुझसे अधिक नंबर आए थे और मुझे कम. उनका कहना था कि तुम क्यों नहीं उतने नंबर ला सकते तो. - विजय रावत
पढ़ाने से ज्यादा पीटने में आनंद लेते थे वो
मेरे साइंस के टीचर एक थे जिन्हें स्टूडेंट को पढ़ाने से ज्यादा पीटने में आनंद आता था. वे कई बार बच्चों को मुर्गा बनाकर पीठ पर बैग रखते थे और दूसरी क्लासेस में भेजते थे. ये मुझे बेहद अपमानजनक लगता था. कई बच्चों पर इसका दिमागी रूप से नकारात्मक असर पड़ा. बच्चों के माता-पिता ने इस बारे में कई बार शिकायत की, लेकिन टीचर पर कोई असर नहीं हुआ. आखिरकार, जब दो बच्चों ने अपना नाम स्कूल से कटा लिया, तो स्कूल प्रशासन हरकत में आ गया. अंतत: उस टीचर को ही स्कूल से बर्खास्त कर दिया गया. - महेंद्र गुप्ता
उसके परिवार सेे टीचर की थी नजदीकी, इसलिए मुझे टॉपर नहीं बनाया
कक्षा 11वीं में मैंने क्लास में पहला रैंक हासिल किया था. मुझे रिपोर्ट कार्ड भी इसी रैंक के साथ मिली. पर जब अवॉर्ड सेरेमनी थी, तब प्रिंसिपल को जो लिस्ट दी गई उसमें मेरा रैंक दूसरे नंबर पर था और दूसरे रैंक वाले का पहले नंबर पर. जब मैंने क्लास टीचर से बात की तो उन्होंने कहा कि ऐसा दूसरी लड़की के मोरल बूस्ट करने के लिए किया गया है. क्लास के बच्चों से बाद में मुझे पता चला कि टीचर के उस लड़की के परिवार से नजदीकी संबंध थे. -आरती मिश्राउस टीचर को 40 में से सिर्फ 2 बच्चे थे पसंद
स्कूल जाना हालांकि मुझे कभी पसंद नहीं था लेकिन जब 7वीं क्लास में आकर हमारे कोर्स में नया सब्जेक्ट 'संस्कृत' जुड़ा. उसके बाद से तो मुझे स्कूल नाम से जैसे नफरत हो गई थी. स्कूल में शुरू की 4 क्लास अच्छी होती थीं लेकिन लंच ब्रेक के बाद 5वीं क्लास होती थी 'संस्कृत' की. हमारी संस्कृत की टीचर कुछ अलग ही थीं. जैसे ही वो क्लास में आती तो सब बच्चे उन्हें विश करने के लिए खड़े होते लेकिन उनमें गिने चुने ही बच्चे होते थे जो सीट पर वापस बैठ पाते थे. क्योंकि वो आते ही बच्चों को क्लास रूम में पीछे भेज दिया करती थीं. आपने आई-कार्ड नहीं पहना पीछे चले जाइए, आपके रिबन नहीं हैं आप भी पीछे जाएं, आपकी बेल्ट गायब है आप भी पीछे निकल जाइए, अब जिनका होमवर्क पूरा नहीं है वो और जो बुक्स नहीं लाए वो पीछे जाएं बाकी सब बैठ जाएं. उनकी क्लास में 40 में शायद 2 या 3 बच्चे ही बैठे होते थे. मुझे याद है कि मैं उनकी क्लास में सिर्फ एक ही दिन बैठी थी. -परमीता शर्मा
मेरी बहन स्कूल से गई तो प्रिंसिपल ने मेरा नाम भी काट दिया
मैं 9वीं कक्षा में था. मेरे साथ स्कूल में मेरे छोटे भाई-बहन भी पढ़ते थे. लेकिन पिता जी ने बहनों का दाखिला छत्तीसगढ़ के एक छोटे से शहर मनेंद्रगढ़ के सरकारी स्कूल में करा दिया था. वहां पढ़ाई बढ़िया होती थी. बहनों के दूसरे स्कूल में दाखिले से प्राइवेट स्कूल के प्रिंसिपल चिढ़ गए. उनका चिढ़ना भी लाजिमी था क्योंकि मेरी बहनों के जाने से अलग-अलग कक्षाओं से 40-50 बच्चे अपना नाम कटवाकर दूसरे स्कूलों में चले गए थे. इससे खिन्न होकर प्रिंसिपल ने मेरा नाम भी स्कूल से काट दिया था. उन्होंने यह भी कहा था कि तुम्हारी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. मध्यप्रदेश बोर्ड ने उसी साल एक नियम निकाला था, जिसमें कहा गया था कि जिस स्कूल से 9 वीं पढ़ा है 10वीं बोर्ड एग्जाम भी उसी स्कूल से देना होगा. बाद में मुश्किल से मेरा एडमिशन कहीं और हुआ -ददन विश्वकर्मा
The Teacher, I hate you
मुझे पहले ही मैथ्स से बेइंतहा नफरत थी और ऊपर से वो बुरे टीचर. मेरी दिलचस्पी बिलकुल ही जीरो हो गई थी. नाम था मियां अनवर खान. कॉमेडी करते हुए बच्चों को जितनी बेरहमी से वो पीटता था समझ नहीं आता था कि हंसे या रोएं. पूरी क्लास उसे जल्लाद बताती थी और सच मानिए तो स्टूडेंट्स अकसर भगवान से उसकी मौत और एक्सीडेंट हो जाए इस तरह की दुआ करते नजर आते थे. वह उर्दू भी पढ़ाते थे लेकिन उनके गुस्सैल व्यवहार के चलते ज्यादतर बच्चे उर्दू और संस्कृत में ऑप्शन के चलते संस्कृत को ही चुनते थे. उनका ना ही कोई फेवरेट स्टूडेंट था और ना ही वो किसी स्टूडेंट के फेवरेट थे. -पूजा बजाज
वो डरावने टीचर
बचपन में एक टीचर थे जिनसे मुझे बहुत डर लगता था. डर का कारण उनके पीटने का तरीका था. उनके पीटने का स्टाइल ऐसा था कि जब भी बच्चे उनके किसी सवाल का जवाब नहीं दे पाते थे या फिर गलत देते, वे पेन को अगुंलियों के बीच में फंसा कर उसे जोर से दबा देते थे. ऐसा वो तब तक करते थे जब तक की बच्चे रोने ना लगे. - मोनिका गुप्ता
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अभिषेक आनंद