यह जो है पाकिस्तान
शिवेंद्र कुमार सिंह
भारतीय ज्ञानपीठ,
लोदी रोड, नई दिल्ली-3,
कीमत: 140 रु.
sales@jnanpith.net
इस किताब के शुरुआती पन्नों में ही द्विराष्ट्र सिद्धांत के संबंध में बहुत ही कलात्मक और भौतिक ढंग से उन तथ्यों को उजागर किया गया है जो आठवीं शताब्दी के इतिहास ने हमें दिए हैं. इस प्रारंभिक लेकिन बहुत महत्वपूर्ण नोट के बाद पुस्तक क्रिकेट के बहाने पाकिस्तानी समाज के कई रूपों को उद्घाटित करती है. अगर यह किताब केवल क्रिकेट के बारे में होती तो शायद इसका वह महत्व नहीं होता, जो अब है. वैसे पाठक शुरू में चकमा खा जाता है कि यह किताब क्रिकेट की ही एक व्यापक कमेंट्री है. लेकिन जैसे-जैसे लेखक को पाकिस्तानी समाज में रजा भाई, जाहिद भाई और फैयाज भाई पात्र मिलते हैं, वैसे-वैसे तथ्य उजागर होता जाता है कि यह किताब दोनों देशों के उन नाजुक रिश्तों के बारे में है, जिसके बारे में दोनों देशों के लेखक और कलाकार लगातार बात करते रहे हैं.
किताब के संदर्भ में उल्लेखनीय है कि यह खेल के उन दार्शनिक पक्षों की ओर संकेत करती है, जिनकी आजकल अक्सर उपेक्षा की जाती है. मसलन, किताब खेल को अच्छे मानव संबंधों का आधार बताती है. इसके माध्यम से हम खेल के पीछे छिपी उस मानवीय शक्ति को पहचानते हैं, जो दोनों देशों में लगातार मौजूद रही है और समय-समय पर सामने आती रही है.
ऐसा भी नहीं है कि लेखक पाकिस्तानी समाज की धर्मांधता को दरगुजर यानी 'बाइपास’ करता है. कहीं-कहीं बहुत बारीक ढंग से पाकिस्तान की धर्मांधता हमारे सामने आती है, जो वहां के समाज का एक पक्ष है. लेकिन ऐसा भी नहीं कि वही वास्तविकता हो. अगर कहीं वास्तविकता होती तो पाकिस्तान में राजनैतिक दलों का अस्तित्व समाप्त हो गया होता.
बहुत रोचक और संवेदनशील विवरणों से गुजरती यह पुस्तक कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें भी सामने लाती है, जिनको समझ्ने का प्रयास करना पड़ता है. पूरी किताब पढऩे के बाद पाठक के मन में यह सवाल पैदा होता है कि क्या पाकिस्तान की जनता, वहां के लोगों और पाकिस्तानी सत्ता के बीच फर्क करने की जरूरत है? पाकिस्तान की सत्ता आज भी द्विराष्ट्र सिद्धांत के आधार पर टिकी हुई है, जबकि यह सिद्धांत पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बनने के बाद निरस्त हो चुका है.
एक समय था जब पाकिस्तान से आए लोग अक्सर भारत और पाकिस्तान की तुलना किया करते थे और यह साबित करने की कोशिश करते थे कि पाकिस्तान में नागरिक और सामाजिक जीवन भारत की तुलना में बहुत अच्छा है और पाकिस्तान भारत से अच्छा देश है. लेकिन आठवें दशक में यह स्पष्ट हो गया था कि धर्म के आधार पर बनाया गया देश अचानक निराशा के दौर में प्रवेश कर चुका है और अब पाकिस्तान के लिए भारत केवल एक पड़ोसी देश ही नहीं है बल्कि लोकतंत्र की प्रेरणा का स्रोत भी है.
यही वजह है कि आज भारत से गया हर व्यक्ति पाकिस्तान के लिए आशा का संदेश होता है. यही आशा शिवेंद्र की किताब यह जो है पाकिस्तान में जगह-जगह झलकती दिखाई देती है. शिवेंद्र ने पाकिस्तान के सामान्य लोगों की ही आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं बल्कि बड़े क्रिकेट खिलाडिय़ों, प्रशंसकों और कलाकारों के साथ जो संवाद स्थापित किया है, वह मैत्री और सद्भावों का संदेश है.
किताब से जुड़ा एक अन्य अहम मुद्दा यह है कि उपमहाद्वीप में अब भारत की क्या भूमिका हो सकती है? न केवल क्रिकेट या खेल बल्कि मीडिया और संचार तक के क्षेत्रों में पाकिस्तान भारत के बिना अधूरा है. दोनों देशों के बीच भावनात्मक संबंधों के अलावा सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंधों की जरूरत भी शिवेंद्र की किताब पढ़कर महसूस की जा सकती है.
आज जरूरत इस बात की है कि हम ताजा ढंग से सोचना शुरू करें. दोनों देशों के रिश्तों पर फिर से विचार करने और उन्हें मानवीय बनाने के लिए खेल क्या भूमिका निभा सकते हैं, यह शिवेंद्र ने सामने रखा है. दोनों देशों को करीब लाने के लिए क्रिकेट ने अहम भूमिका निभाई है, जिसका प्रमाण शिवेंद्र की यह किताब है.
असगर वजाहत