जानें, भजन-कीर्तन में अंतर और इसकी महिमा

भजन और कीर्तन से मन की अवस्था बहुत तेजी से उन्नत हो जाती है. इसके बाद अगर ध्यान किया जाए या प्रार्थना कि जाए तो वह तुरंत पूरी होती है.

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प्रतीकात्मक फोटो प्रतीकात्मक फोटो

प्रज्ञा बाजपेयी

  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2018,
  • अपडेटेड 4:00 PM IST

व्यक्ति के जीवन में एक ही अवलंब होता है और वो है ईश्वर. व्यक्ति ज्ञान, कर्म और भक्ति के कई मार्गों से ईश्वर को पाने का प्रयास करता है. भक्ति सर्वश्रेष्ठ मार्ग है और भक्ति से ईश्वर को पाना सबसे सरल होता है.

भक्ति और एकाग्रता के लिए भजन, कीर्तन और स्मरण जैसी तमाम चीज़ों का सहारा लिया जाता है. भजन और कीर्तन से मन की अवस्था बहुत तेजी से उन्नत हो जाती है. इसके बाद अगर ध्यान किया जाए या प्रार्थना कि जाए तो वह तुरंत पूरी होती है. भजन और कीर्तन के सही प्रयोग से व्यक्ति को रोगों तथा मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है.

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भजन और कीर्तन में क्या अंतर है ?

- भजन में व्यक्ति, ईश्वर का नाम जपता है, इसका प्रभाव सामान्य होता है.

- जबकि कीर्तन में व्यक्ति ईश्वर के नाम का मंत्र जपता है और इसका प्रभाव अद्भुत होता है.

- भजन के बाद उपासना की आवश्यक नहीं होती, जबकि कीर्तन के बाद उपासना जरूरी होती है.

- भजन एक गीत की तरह है, जबकि कीर्तन किसी मंत्र विशेष का उच्चारण है.

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क्या है भजन-कीर्तन की महिमा ?

- कीर्तन जितने ज्यादा लोगों के साथ किया जाए और जितने लम्बे समय तक किया जाए उतना ज्यादा प्रभावशाली होता है.

- कीर्तन अगर नृत्य के साथ किया जाए तो रोगों से मुक्ति मिल सकती है.

- शिव जी ने और पार्वती ने नृत्य के साथ कीर्तन का आविष्कार किया था. जिससे हर प्रकार के रोगों और तनावों से मुक्ति मिल सकती है.

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- जहां भी कीर्तन होता है, ईश्वर वहां अवश्य ही रहते हैं.

- किसी घर या स्थान में नियमित रूप से कीर्तन करने से घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है.

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कैसे करें कीर्तन ताकि मानसिक और आत्मिक लाभ हो ?

- नियमित रूप से पूजा उपासना के पूर्व कीर्तन करें.

- कीर्तन करते समय दोनों हाथ ऊपर की और रखें और भगवान् का स्मरण करते हुए कीर्तन करते रहें.

- कीर्तन के बाद अपनी साधना या आराधना शुरू करें.

- जिस भी मंत्र या पंक्ति के साथ कीर्तन करें,उसका प्रयोग गा गाकर करें.

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