समकालीन मार्क्सवाद के प्रतीक पुरुष ई.एम.एस. नंबूदिरीपाद

ईएम.एस. नम्बूदिरीपाद की तारीफ करने के लिए किसी व्यक्ति को उन दो चुनौतियों के बारे में मालूम होना चाहिए जिससे वे जूझे और जिनका इतिहास में शायद कोई सानी नहीं मिलता.

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ई.एम.एस नंबूदिरीपाद ई.एम.एस नंबूदिरीपाद

मंजीत ठाकुर

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  • 25 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 3:06 PM IST

आधुनिक भारत के निर्माता/ गणतंत्र दिवस विशेष

ईएम.एस. नम्बूदिरीपाद की तारीफ करने के लिए किसी व्यक्ति को उन दो चुनौतियों के बारे में मालूम होना चाहिए जिससे वे जूझे और जिनका इतिहास में शायद कोई सानी नहीं मिलता. पहली, एक लोकतांत्रिक संस्थागत क्षेत्र में क्रांतिकारी एजेंडे और हिंसक तरीके अपनाने की प्रवृत्ति वाली पार्टी को एकजुट करके उसका नेतृत्व करना.

दूसरी, असह्य परिस्थितियों वाले एक ऐसे गरीब, पिछड़े, सामंतवादी, कृषक समाज में लोकतंत्र को विस्तार देना और बढ़ाना जहां बहुत कम औद्योगीकरण था. इन सबसे बढ़कर यह सब बेहद अनिश्चितकालीन परिस्थितियों में हुआ, जिसमें उनकी पार्टी ने झटपट बदलाव किया और आगे के रास्ते के बारे में उसे यकीनी तौर पर मालूम नहीं था.

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(लेखक हैदराबाद यूनिवर्सिटी के राजनीतिशास्त्र विभाग से जुड़े हैं)

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