दलितों और मुस्लिमों के साथ दिल्ली-NCR के शहरी इलाकों में मकान किराए पर देने या बेचने में किस तरह का भेदभाव किया जाता है इसको लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है. EPW (इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली) द्वारा किए गए इस रिसर्च के नतीजे चौंकाने वाले हैं.
प्रोफेसर एसके थ्रोट (चेयरमैन इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च), अनुराधा बनर्जी और विनोद मिश्रा की टीम ने इस रिसर्च को अंजाम दिया. रिसर्च के दौरान फोन पर किराए पर मकान दिलाने वाले तमाम एजेंटों से बात की गई. 1,479 लोगों के नाम से घर ढूंढा गया. इनमें ऊंची जातियों के हिंदू नाम, दलित और मुस्लिमों के नाम शामिल थे. हैरानी की बात है कि 493 सवर्ण हिंदूओं के नाम पर एजेंटों की तरफ से सकारात्मक जवाब आए जबिक लगभग 18 फीसदी दलितों और 31 फीसदी मुस्लिमों को एजेंटों ने मकान दिलाने से इनकार कर दिया.
इस रिसर्च में 198 लोगों को सीधे एजेंटों के पास ले जाया गया. इनमें 66 सवर्ण हिंदूओं के अलावा सभी दलित और मुस्लिम थे. लगभग 97 फीसदी सवर्ण हिंदुओं के मामले में एजेंटों ने सकारात्मक जवाब दिए जबकि 44 फीसदी दलितों और 61 फीसदी मुस्लिमों के मामले में एजेंटों ने मकान देने से साफ इनकार कर दिया. दलितों के मामले में लगभग 51 फीसदी को शर्तों के साथ एजेंट घर देने को तैयार थे जबकि मुस्लिमों में यह आंकड़ा 71 फीसदी तक था.
थ्रोट ने कहा, 'यह साफ तौर पर बाजार की असफलता को दिखाता है जहां एक संपन्न दलित-मुस्लिम भी अच्छे इलाकों में घर पाने में मुश्किलों का सामना कर रहा है. इस रिसर्च से यह भी पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर में घर पाने में मुस्लिमों की स्थिति दलितों से ज्यादा बुरी है.' प्रवासियों के लिए बेहतर जगह माने जाने वाले दिल्ली-एनसीआर में लगभग 18 फीसदी दलितों को सवर्ण मकानमालिकों द्वारा साफ तौर पर मकान देने से इनकार कर दिया गया.
दलितों के मामले में लगभग 23 फीसदी उन्हें किराए पर मकान देने को तो तैयार थे लेकिन कई शर्तों के साथ जिनमें अधिक किराया और कई चीजों की मनाही शामिल थी. मुस्लिमों के मामले में लगभग एक तिहाई को तो सिर्फ धर्म के कारण साफ तौर पर घर देने से इनकार कर दिया गया और लगभग 35 फीसदी को शर्तों के साथ ही मकान देन की बात पर सहमती बन पाई.
फोन पर मकान देने से मना किया गया
सवर्ण हिंदू 0%
दलित 18%
मुस्लिम 31%
मुलाकात के बाद मकान देने से मना किया गया
सवर्ण हिंदू 3%
दलित 44%
मुस्लिम 61%
aajtak.in