रात को सपना आता है कि आपको एक मंदिर बनाना है और सुबह उठकर आप सड़क के बीच में मंदिर बनाने में जुट जाते हैं. यह शायद सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन पिछले दिनों झारखंड के रामगढ़ में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला. इससे न सिर्फ विकास का आधार माने जाने वाली सड़क के बीचोबीच धर्म का स्पीडब्रेकर खड़ा कर दिया गया बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द भी खतरे में पड़ गया है. धर्म की रक्षा करने वाले लोग कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं और प्रशासन से टकराव की स्थिति बन गई है.
वाकया बहुत दिलचस्प है. रामगढ़ के लोग बताते हैं कि यहां एक स्थानीय महिला भक्त है, जो पूजा-पाठ कराने का काम करती है. उसे करीब हफ्ते भर से सपना आ रहा था कि अगर कांकेबार में बन रहे नेशनल हाइवे-33 पर जल्द ही काली मंदिर की स्थापना नहीं की गई तो लोगों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट सकता है. नेशनल हाइवे बनाने की वजह से वहां मौजूद दक्षिणेश्वर काली मंदिर को हटा दिया गया था. उसने अपने सपने के बारे में स्थानीय लोगों को बताया तो 19 जनवरी को भारी भीड़ जुट गई और सड़क के बीचोबीच मंदिर बनाना शुरू कर दिया. लोगों ने मंदिर के लिए आठ फुट की दीवार खड़ी कर दी. प्रशासनिक अमला जब निर्माण का काम रोकने पहुंचा तो भीड़ उससे उलझ पड़ी और पुलिस देखती रह गई.
लेकिन बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं हुई. इस मामले की पृष्ठभूमि तीन साल पहले ही तैयार हो गई थी, जब रामगढ़ शहर के बाहरी छोर से नेशनल हाइवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआइ) की ओर से राजमार्ग के मैप के लिए सर्वे किया जा रहा था. झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) के पूर्व जिलाध्यक्ष दामोदर महतो कहते हैं, ''जब 10 जुलाई, 2012 को दक्षिणेश्वर काली मंदिर को हटाकर माया तुंगरी पर स्थापित किया जा रहा था, तब तत्कालीन एसडीओ दीपक कुमार और डीएसपी धनंजय कुमार ने हफ्ते भर में वहां स्थित मस्जिद को भी हटाने की बात कही थी. लेकिन मंदिर को हटा दिया गया और मस्जिद को सुरक्षित कर लिया गया है. यह ग्रामीणों के साथ धोखा है. ''
एनएच-33 लगभग 352 किलोमीटर लंबा है. रामगढ़ शहर के बाहर कांकेबार में बन रहे फोर-लेन के विवाद की ताजा शुरुआत 16 जनवरी को नए मैप पर हुई. नए मैप को लेकर एनएचएआइ के अधिकारी साइट पर पहुंचे थे, जिन्होंने लोगों को बताया कि वहां की नूरी मस्जिद को बचा लिया गया है. इस सूचना के बाद मंदिर समर्थकों के बीच तेजी से संदेश गया कि उनके साथ धोखा हुआ है. पुराने मैप के मुताबिक, दक्षिणेश्वर काली मंदिर को हटा दिया गया जबकि मस्जिद को बचाने के लिए नया मैप बनाया गया है.
लिहाजा, अगले ही दिन प्रशासन के खिलाफ माहौल बन गया. 19 जनवरी को ही ग्रामीणों से बातचीत के लिए एसडीओ कार्यालय में बैठक आयोजित की गई. उसी दौरान एसडीओ दफ्तर से करीब दो दर्जन महिला-पुरुषों के खिलाफ धारा 107 का नोटिस जारी कर दिया गया. इस कार्रवाई ने ग्रामीणों के आक्रोश को भड़का दिया. बैठक में शामिल लोगों को इसकी सूचना मिलते ही बातचीत नाकाम हो गई. लोगों ने आक्रोश में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में मंदिर बनाना शुरू कर दिया और शाम तक आठ फुट ऊंची दीवार खड़ी कर दी. वाराणसी से दह्निणेश्वर काली की प्रतिमा मंगाई गई और उसे स्थापित कर पूजा पाठ शुरू हो गया.
बात धर्म की हो और विवाद भी मौजूद हो तो राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले भी आ ही जाते हैं. यहां विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के अंतरराष्ट्रीय महासचिव प्रवीण तोगिडय़ा पहुंच गए और सैकड़ों वीएचपी कार्यकर्ताओं के साथ मोटरसाइकिल जुलूस भी निकाला. उन्होंने कहा, ''पहले यहां मंदिर था बाद में सड़क बनी. इसलिए मंदिर यहीं बनेगा. ''
इसके अगले दिन हजारीबाग के सांसद और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा भी वहां पहुंच गए और प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया, ''सांसद होने के नाते मैं एनएचएआइ के संपर्क में रहता था. उस समय तय हुआ था कि मंदिर और मस्जिद, दोनों हटाए जाएंगे. पिछले साल 3 दिसंबर को डीसी कार्यालय में बैठक में कहा गया था कि 30 दिसंबर तक मस्जिद हटा ली जाएगी. फिर अचानक यह बदलाव कैसे हो गया? '' उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए 25,000 रु. भी दे दिए. उन्होंने कहा, ''बीजेपी तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करती. सेकुलरिज्म का मतलब अल्पसंख्यक तुष्टीकरण नहीं है. वह ऐसी राजनीति का विरोध करेगी. ''
उधर, दामोदर महतो कहते हैं, ''जब मस्जिद बचाना संभव था तो मंदिर बचाने के लिए पहल क्यों नहीं की गई जबकि ग्रामीणों ने प्रशासन से मंदिर को बचाने का अनुरोध भी किया था. तब तत्कालीन उपायुक्त अमिताभ कौशल ने कहा था कि एनएचएआइ के मैप में बदलाव संभव नहीं है. लिहाजा, मंदिर के अलावा प्राइमरी स्कूल और करीब डेढ़ दर्जन करवाली आदिवासी परिवार भी बेदखल कर दिए गए. ''
उबाल यहीं तक सीमित नहीं है. ऑल झारखंड स्टुडेंट्स यूनियन (आजसू) के जिला सचिव मनोज महतो भी जिला प्रशासन और सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हैं. मनोज कहते हैं, ''हमारा विरोध मस्जिद से नहीं है और न ही हम विकास विरोधी हैं. विरोध की वजह सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों का विश्वासघाती रवैया है, जिन्होंने पारदर्शी कदम उठाने की बजाए नए मैप की दिशा में पहल कर विवाद का बीज बो दिया. नए मैप में मस्जिद के प्रारूप को सौंदर्यीकरण का मॉडल बना दिया गया जबकि पुराने मैप के अनुसार काली मंदिर और स्कूल हटा दिए गए. ''
रामगढ़ के कांग्रेस नेता शहजादा अनवर भी सरकार, प्रशासन और एनएचएआइ अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ''प्रशासन के अदूरदर्शी कदम ने दो समुदायों में नफरत की स्थिति पैदा कर दी है. प्रशासन हर मोर्चे पर विफल रहा है. इस मसले पर सरकार और विपक्ष की भूमिका भी असंवेदनशील है, जिससे भ्रम की स्थिति कायम है. ''
हालांकि रामगढ़ के उपायुक्त डॉ. सुनील कुमार सिंह हफ्ते भर में मस्जिद को हटाए जाने जैसे किसी भी तरह के आश्वासन को खारिज करते हैं. उन्होंने कहा कि जिसे मंदिर की जमीन बताया जा रहा है, वह निजी परिसर (डॉ. ललिता का आवासीय परिसर) था. इसके लिए उन्हें मुआवजा भी दे दिया गया है. यही नहीं, उपायुक्त ने अपनी किसी भी तरह की प्रशासनिक लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी को खारिज किया. उन्होंने कहा, ''मंदिर निर्माण के दौरान मैं छुट्टी पर बाहर था. मुझे इस घटना की जानकारी नहीं थी. '' वहीं इस मामले के बाद जिला प्रशासन ने स्थानीय बीजेपी नेता धनंजय कुमार का शस्त्र लाइसेंस रद्द कर दिया.
राज्य सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई. वीएचपी के दक्षिण बिहार क्षेत्र के संगठन मंत्री राजेंद्र कहते हैं, ''देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून है. लेकिन केंद्र के नकारात्मक रवैये की वजह से भेदभावपूर्ण नीति अपनाई जा रही है. '' हालांकि मुरराम कला पंचायत की मुखिया अर्चना महतो कहती हैं, ''पिछले तीन साल में तीन तरह के मैप की बात सामने आई. मौजूदा स्थल से 300 मीटर दूरी की परिधि में एनएच के लिए जमीन उपलब्ध करा दी जाती तो ऐसे हालात नहीं पैदा होते. ''
लोगों का कहना है कि मस्जिद हटाए जाने की संभावना पर मुस्लिम समुदाय ने एतराज जताते हुए जिला प्रशासन से मैप में बदलाव का अनुरोध किया था. दिसंबर में प्रशासन ने इसके लिए एनएचएआइ से आग्रह किया, जिस आधार पर नया मैप तैयार हुआ. लेकिन कोई भी अधिकारी इस बात की पुष्टि नहीं कर रहा है. पुलिस अधीक्षक रंजीत प्रसाद ने कहा कि हर स्थिति पर नजर रखी जा रही है. लेकिन धर्म की सियासत में एनएच निर्माण बंद है और नवनिर्मित मंदिर में पूजा-पाठ जारी है.
अशोक कुमार प्रियदर्शी