भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) कर्ज लेने वालों के लिए कुछ अच्छी खबर लेकर आया है. इसने बैंकों को निर्देश दिया है कि वे 1 अक्तूबर से खुदरा और छोटे व्यापारों के लिए बाहरी बेंचमार्क दरों को ध्यान में रखकर फ्लोटिंग दरों पर कर्ज दें. उम्मीद की जा रही है कि इससे घर और कार पर कर्ज समेत फ्लोटिंग दरों वाले सभी कर्जों पर ब्याज का बोझ कम हो जाएगा.
कैसे काम करता है यह
बैंकों को कर्ज देने की अपनी दरों को एक बाहरी बेंचमार्क—जैसे कि रेपो रेट, तीन-और-छह-महीने के ट्रेजरी बिल की यील्ड (मिलने वाला रिटर्न) या आरबीआइ से मान्यता प्राप्त एक स्वतंत्र बेंचमार्क प्रशासक फाइनेंशियल बेंचमार्क ऑफ इंडिया की ओर से प्रकाशित किसी अन्य बेंचमार्क—से जोडऩे का निर्देश दिया गया है. बैंक इस दर पर अपनी लागत और देनदारी के अंतर (स्प्रेड) के हिसाब से ब्याज चार्ज करने के लिए स्वतंत्र हैं.
यह दर कम से कम तीन साल के लिए फिक्स्ड रहने वाली है बशर्ते बैंकों की संचालन लागत में कोई बड़ा परिवर्तन न आ जाए. अगर ग्राहक की जोखिम प्रोफाइल में कोई बड़ा परिवर्तन आता है तब भी इन दरों में बदलाव हो सकता है.
कुल मिलाकर कर्ज लेने वालों के लिए ब्याज दर बाहरी बेंचमार्क दर और साथ ही लागत व देनदारी के अंतर और क्रेडिट रिस्क प्रीमियम पर आधारित होगा.
आपको कैसे मिलेगा लाभ
कर्ज की दरें जब बेंचमार्क से सीधे जोड़ दी जाएंगी तो बेंचमार्क में किसी भी तरह के बदलाव से कर्ज की दर स्वत: ही बदल जाएगी. उदाहरण के लिए, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कर्ज की अपनी दरों को रेपो रेट से जोड़ दिया है, इसलिए आरबीआइ जब भी अपने रेपो रेट में कटौती करता है तो एसबीआइ के कर्ज की दर भी अगले महीने के पहले दिन से स्वत: ही कम हो जाती है. कर्ज की दरों को बाहरी बेंचमार्क से जोडऩे से कर्जों का मानकीकरण हो जाएगा और कर्ज लेने वालों के लिए तुलना करना आसान हो जाएगा.
मौजूदा ऋणधारकों पर क्या असर?
आरबीआइ ने मौजूदा ऋणधारकों को नई बेंचमार्क आधारित कर्ज की दरों को फायदा लेने की इजाजत दे दी है, हालांकि इसके लिए कुछ पैसे देने पड़ेंगे. मौजूदा ऋणधारक प्रशासकीय और कानूनी खर्च देने के बाद नई व्यवस्था का लाभ उठा सकते हैं. हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इन खर्चों में क्या-क्या शामिल होगा.
आरबीआइ का सर्कुलर कहता है, ''बाहरी बेंचमार्क से जुड़ी कर्ज की दरों का विकल्प चुनने के बाद इस श्रेणी के ऋणधारकों से ली जाने वाली फाइनल दर नए कर्ज पर लगने वाले ब्याज दर के एकदम समान होगी.''
महत्वपूर्ण तथ्य
मौजूदा व्यवस्था—मार्जिनल कास्ट ऑफ फंड बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर)—के तहत एक पुनर्निर्धारण (रिसेट) अवधि होती है जो घर के कर्ज में आम तौर पर एक साल की होती है.
इसका मतलब है कि ऋणधारक की ओर से किया जाने वाला भुगतान केवल वार्षिक आधार पर संशोधित किया जाता है. लेकिन नई व्यवस्था में आरबीआइ ने बैंकों से कहा है कि वे हर महीने में कम से कम एक बार ब्याज दर को रिसेट करें. इससे ऋणधारक के लिए अपनी ईएमआइ के प्रबंधन में समस्या हो सकती है.
इंडिया लेंड्स के संस्थापक और सीईओ गौरव चोपड़ा कहते हैं, ''उस स्थिति में जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो ऋणधारक के लिए कर्ज मासिक भुगतान भी बढ़ जाएगा.'' लेकिन माइमनीमंत्रा के एमडी राज खोसला कहते हैं, ''बाहरी बेंचमार्कों से कर्ज का जुड़ाव मौजूदा और नए ऋणधारक दोनों के लिए फायदेमंद होगा क्योंकि ब्याज दर की संगणना के लिए लागत के घटकों के बारे में ज्यादा पारदर्शिता आएगी.''
संध्या द्विवेदी