आधुनिक भारत के निर्माता/ गणतंत्र दिवस विशेष
प्रधानमंत्री के रूप में अपने पूर्ण कार्यकाल की शुरुआत से ही राजीव गांधी ने आम आदमी के लिए 'जवाबदेह प्रशासन' को वक्त की जरूरत के रूप में चिन्हित किया. शुरू में ऐसा लगा कि वे मुद्दे के प्रबंधकीय समाधान के हक में हैं, जिसे दो नई पहलों के रूप में देखा जा सकता है—एक तो जब महाराष्ट्र में अहमदनगर के जिला कलेक्टर ने आम आदमी के आवेदनों को लेने और उनके निबटान के लिए एकल खिड़की की व्यवस्था शुरू की, दूसरा उन्होंने शिकायतों के निपटारे के लिए एक व्यवस्था बनाई जिसका आधार यह था कि सप्ताह में एक दिन कलेक्टर अपने वरिष्ठ अफसरों के साथ खुले में एक पेड़ के नीचे आम लोगों से मुखातिब होगा और उनकी समस्याओं का निवारण वहीं करने की कोशिश करेगा.
पर जब राजीव गांधी देश के दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों का बार-बार दौरा करने लगे तो यह जाहिर होने लगा कि यह कोई प्रबंधकीय नहीं, एक व्यवस्थागत समाधान था जो एक जवाबदेह प्रशासन खड़ा करने के लिए जरूरी था.
सालों बाद उन्होंने संसद के सामने कहा, ''मैं स्वीकार करता हूं कि उस वक्त गैरजवाबदेह प्रशासनों के समाधान के लिए हम प्रबंधकीय समाधानों की तलाश में थे. हम समस्याओं के समाधान के रूप में प्रक्रियाओं को सरल बनाने, शिकायत-निवारण व्यवस्था, एकल खिड़की मंजूरी, कंप्यूटरीकरण और उदारता की तरफ देख रहे थे. आगे बढऩे पर हमें लगा कि प्रबंधकीय समाधानों से काम नहीं चलेगा. जरूरत समूचे व्यवस्थागत समाधान की थी.''
(लेखक पूर्व सांसद हैं. उन्होंने रिमेंबरिंग राजीव किताब भी लिखी है)
मंजीत ठाकुर