दिल्ली नगर निगम (Municipal Corporation of Delhi) ने आम लोगों को फ्री में वर्ल्ड क्लास टॉयलेट की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए नायाब तरीका निकाला है. दिलचस्प बात यह है कि MCD ने भी इन टॉयलेट को बनाने और इनके मेंटेनेंस पर कुछ खर्च नहीं किया है. दरअसल, MCD ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में टॉयलेट बनाने और इनके मेंटेनेंस की जिम्मेदारी हिंदुस्तान एडवरटाइजिंग कंपनी को दे दिया है. इसके अलावा इस कंपनी को लाइसेंसिंग फीस (Licensing Fee) के रूप में MCD को 38 लाख रुपये हर महीने दे रही है. वहीं, कंपनी एडवरटाइजिंग के जरिए इन सब खर्चों को निकाल रही है.
ये टॉयलेट न सिर्फ फाइव स्टार होटल, एयरपोर्ट और मॉल में बने टॉयलेट की तर्ज पर बनाए गए हैं, बल्कि विदेशी टच के साथ बनाए गए हैं. ये वुमेन फ्रेंडली (Women Friendly), चाइल्ड फ्रेंडली (child friendly) और ओल्ड ऐज फ्रेंडली (old age friendly) होने के साथ ही दिव्यांग लोगों के लिए भी सहूलियत भरे हैं. यहां सैनिटरी पैड (sanitary pads) सिर्फ 5 रुपये में मिल रहे है और एंट्री फ्री है.
एक यूजर महिला ने बताया कि वो कई बार बाहर जाती हैं, पर टॉयलेट बहुत गंदे मिलते हैं, लेकिन इन टॉयलेट की साफ-सफाई और रखरखाव को देखकर मन करता है कि अपनी तरफ से कुछ पैसे दे दें. साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में RP Cell और एडवरटाइजिंग के डिप्टी कमिश्नर प्रेम शंकर झा ने कहा, 'मेंटेंनेंस को लेकर हम काफी गंभीर हैं. यही वजह है कि स्ट्रीट फर्नीचर मेंटेंनेंस वैन में जीपीएस लगा होगा, जो बताएगा कि कितनी जगहों से कूड़ा उठाया गया. टॉयलेट कितने साफ किया गए इसकी मासिक रिपोर्ट सबमिट होगी. पब्लिक के फीडबैक की भी सुविधा है.'
वर्ल्ड क्लास टॉयलेट को मेंटेंनेंस करने वाली कंपनी हिंदुस्तान एडवरटाइजिंग के चीफ एग्जीक्यूटिव अफसर रितेश के मुताबिक 38 लाख हर महीने MCD को लाइसेंसिंग फीस (Licensing Fee) के रूप में दिया जा रहा है. करीब 7 साल तक इन टॉयलेट का मेंटेनेंस करना है. बेंच डस्टबीन तो स्टील के हैं ही. पुलिस बूथ पर सभी हेल्पलाइन नंबर लिखे हैं. एडवरटाइजिंग पोल पर भी वर्टिकल गार्डनिंग की गई है. आपको बता दें कि कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) के दौरान ऐसे वर्ल्ड क्लास टॉयलेट बनाने का लक्ष्य रखा गया था. इसके लिए साल 2010 में टेंडर भी जारी किया गया था. इससे MCD को हर महीने 3-4लाख रुपये की आय हो जाती थी. साल 2017 में टेंडर खत्म होते ही पिछले साल ओपन टेंडर जारी किया गया, लेकिन बिडिंग होने पर 2 बार टेंडर को लेने कोई सामने नहीं आया.
हालांकि अब MCD को हर महीने करीब 38 लाख रुपये का रेवेन्यू आ रहा है. ऐसा कुछ बदलाव के कारण हुआ. एडवरटाइजर को हटाकर क्लस्टर मोड अपनाया गया और खुद ठेकेदार को इसके चलाने के लिए दिया. साउथ दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के एडवरटाइजिंग के क्लस्टर 1A ने इंडिया हैबिटेट सेंटर (India Habitat Centre) से निज़ामुद्दीन गोलचक्कर का जायजा लिया, तो पता लगा कि दयाल सिंह कॉलेज, लोधी कॉलोनी, नेहरू स्टेडियम, ग्रेटर कैलाश, हंसराज गुप्ता मार्ग और भीष्म पितामह मार्ग पर सड़क किनारे बने इन टॉयलेट का इस्तेमाल ज्यादातर पीसीआर वैन पर तैनात पुलिसकर्मी, कॉलेज गोइंग गर्ल्स और बाहर से आने वाले लोग कर रहे हैं.
राम किंकर सिंह