जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 पर केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंगलवार को सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को सभी याचिकाओं का जवाब देने के लिए 28 दिन का समय दिया. अनुच्छेद 370 से जुड़े मामले पर 14 नवंबर को सुनवाई होगी. साथ ही सुप्रीम कोर्ट में अब इस मसले से जुड़ी कोई नई याचिका दाखिल नहीं की जाएगी. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में पाबंदियों को लेकर 16 अक्टूबर को सुनवाई होगी.
गौरतलब है कि 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश बन जाएगा और लद्दाख भी अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ को यह मामला भेज दिया था. जस्टिस रमन्ना की अध्यक्षता वाली इस संविधान पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत हैं.
पुनर्गठन की सुनवाई पर SC की टिप्पणी
12.40 PM: सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 की याचिका के अलावा जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन को लेकर भी सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में कहा गया कि 31 अक्टूबर को पुनर्गठन लागू होगा, अगर सुनवाई नहीं होती है तो परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपके पक्ष में फैसला करते हैं तो हम घड़ी को वापस ला सकते हैं और सबकुछ बहाल भी कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में कामकाज सही सुचारु रूप से चल रहा है. ऐसे में कानून व्यवस्था और नागरिक सेवाओं को लेकर सभी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट की बजाय वहीं दाखिल की जाएं. सरकार ने कहा कि दिन में तो जम्मू कश्मीर में कहीं भी आवाजाही पर किसी भी तरह की कोई पाबंदी नहीं है.
11.40 PM: सुनवाई के दौरान एमएल शर्मा ने अपनी बात कहनी चाही तो जस्टिस एसके कौल ने कहा कि आपका इससे कोई लेना देना नहीं है, सबसे जल्दी याचिका डालने का मतलब ये नहीं कि आपको सुना जाएगा. जस्टिस रमन्ना ने इस दौरान कहा कि केंद्र-राज्य को अभी कुछ समय मिलना चाहिए.
11.30 PM: सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है. इस दौरान कश्मीर बार एसोसिएशन ने कहा कि वह इसके अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ अलग याचिका डालना चाहते हैं, जिसपर जस्टिस रमन्ना ने कहा कि अगर हर कोई याचिका दायर करेगा तो यहां पर एक लाख याचिकाएं हो जाएंगी. हमारे पास इतना समय नहीं है. किसी भी याचिका को अलग से नहीं सुना जाएगा.
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने केंद्र सरकार की ओर से चार हफ्तों का समय मांगा जिसपर वह सभी याचिकाओं का जवाब दे सकें. अदालत में उन्होंने कहा कि यहां बहुत-सी याचिकाएं हैं जिनका जवाब देना है. इसके अलावा सॉलिसिटर जनरल ने भी राज्य सरकार की ओर से जवाब देने के लिए 4 हफ्ते का समय मांगा. हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने उसका विरोध किया.
संविधान पीठ अनुच्छेद 370 के खिलाफ दायर 12 लोगों की याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इन याचिकाओं को मोहम्मद युसुफ तारीगामी, रिफत आरा बट, मनोहर लाल शर्मा, फारुख अहमद डार, शकीर शबीर, सोएब कुरैशी, मोहम्मद अकबर लोन, इंदर सलीम उर्फ इंदर जी टिक्कू, राधा कुमार, शाह फैजल, मुजफ्फर इकबाल खान, जम्मू कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस ने दायर किया है.
370 हटाने को असंवैधानिक घोषित करने की मांग
अपनी याचिकाओं में याचिकर्ताओं ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आदेश और अनुच्छेद 370 हटाने की प्रक्रिया को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है. इन 12 याचिकाओं के अलावा संविधान पीठ जम्मू-कश्मीर में लगाई गई पाबंदियों के खिलाफ दायर 7 याचिकाओं पर भी सुनवाई कर सकती है. इनमें कश्मीर में मीडिया पर पाबंदी, बच्चों को हिरासत में लेना आदि याचिकाएं शामिल हैं.
5 अगस्त को हटाया गया था अनुच्छेद 370
मोदी सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला लिया था. संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प सदन में पेश किया. उन्होंने कहा था कि कश्मीर में लागू धारा 370 में सिर्फ खंड-1 रहेगा, बाकी प्रावधानों को हटा दिया जाएगा. इसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आदेश जारी करके 370 को हटा दिया था. इसके साथ ही राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया था. जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश और लद्दाख को केंद्र शासित क्षेत्र बनाने का फैसला लिया गया था.
अचानक फोर्स की तैनाती, नेताओं को किया गया नजरबंद
अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से पहले घाटी में अचानक लगभग 40 हजार अतिरिक्त सुरक्षाबलों की तैनाती कर दी गई थी. इसके साथ ही घाटी के बड़े नेताओं को नजरबंद किया गया. अभी भी पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत कई नेता नजरबंद हैं. घाटी में संचार के सारे साधन ठप कर दिए गए थे, जो अब चालू हो गए हैं.
संजय शर्मा