कोरोना वायरस से निपटने के लिए देश में लॉकडाउन लागू है. इसके कारण कई ऐसे मजदूर हैं जो अपने घरों से दूर दूसरे राज्य या शहर में फंसे हुए हैं. रेल और बस सेवा बंद होने के कारण ये मजदूर पैदल या साइकिल से ही अपने घर जाने को मजबूर हैं. ऐसे ही कई सारे मजदूर महाराष्ट्र के भिवंडी से नेपाल और उत्तर प्रदेश के लिए निकल पड़े हैं.
ये मजदूर अपनी पीठ पर बैग और पानी की बोतल के साथ अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हैं. भिवंडी के सैकड़ों मजदूर यूपी के अपने-अपने मूल स्थानों की ओर चलने लगे हैं. वे भिवंडी में बमुश्किल 8 फीट चौड़े और लंबे कमरे में रहने के लिए अब तक मजबूर थे. प्रत्येक कमरे में आठ से दस मजदूर रहते हैं. अब ना तो इनके पास काम है ना ही पैसा. इन्हें डर है कि अगर वे घर नहीं पहुंचे तो वे यहीं मर जाएंगे.
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नेपाल के हल्बूराम कहते हैं कि हमें सैलरी नहीं मिल रही है. शुरू में हमें थोड़ा राशन मिलता था, लेकिन अब वो भी नहीं मिलता. मैं कई वर्षों से भिवंडी में रह रहा, लेकिन लॉकडाउन के कारण हालात बदल गए हैं. शुरू में तो हम किराना स्टोर से उधारी में सामान लेते थे, लेकिन अब वे भी पैसा मांगने लगे हैं.
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हल्बूराम कहते हैं कि हमें अब यहां से जाने के अलावा कोई उपाय नहीं है. अगर हम यहां पर रुकेंगे तो बच नहीं पाएंगे. उन्होंने आगे कहा कि हम चलना शुरू कर दिए हैं और कामना करते हैं कि हम अपने-अपने घरों तक पहुंच जाएंगे. मेरा गांव भारत-नेपाल सीमा के पास है, जो यहां से करीब 1700 किमी दूर है. मैं देखूंगा अगर कोई गाड़ी मिलती है तो ठीक रहेगा, अगर ऐसा नहीं हुआ तो पैदल ही जाएंगे.
वहीं एक और मजदूर पालकनाथ राजभर साइकिल से वाराणसी जा रहे हैं, जो लगभग 1600 किलोमीटर की दूरी पर है. उन्होंने कहा कि जब तक हमारे पास पैसा था तब तक हम साथ रहे. अब हमने अपना सब कुछ खर्च कर दिया है, इसलिए अब हम अपने घरों के लिए निकल लिए हैं.
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छोटे से कमरे में रहना मुश्किल
10 बाई 10 फीट के छोटे से कमरे में करीब 8 से 10 मजदूर रहते हैं. लॉकडाउन से पहले दोपहर के समय आधे लोग इन कमरों में रुकते थे, जबकि कुछ काम करने के लिए निकल जाते थे. लॉकडाउन के कारण एकसाथ छोटे से कमरे के अंदर रहना मुश्किल है और कोई राशन नहीं बचा है, उन्हें डर था कि वे भुखमरी से मर जाएंगे.
भिवंडी के पॉवर लूम में काम करने वाले कई मजदूर 21 मार्च से बिना काम के रह रहे थे. उन्हें सैलरी नहीं दी गई. उनके पास कोई पैसा या भोजन नहीं बचा है, इसलिए उन्होंने अब यूपी के सुल्तानपुर की यात्रा शुरू कर दी है, जो यहां से लगभग 1450 किलोमीटर दूर है. मुंबई आगरा राजमार्ग पर मिले कृष्ण कुमार यादव और दशरथ यादव बताते हैं कि उनके मालिक ने उन्हें कारखाने में रहने के लिए कहा था, लेकिन अब खाना भी नहीं बचा था. वे अब साइकिल से सुल्तानपुर जा रहे हैं. इसके लिए उन्हें 1450 किमी का सफर तय करना होगा.
दिव्येश सिंह