सेना की जरूरतों और बजटीए आवंटन में गहरे फर्क से देश की सेना की तैयारियों पर गंभीर सवाल हैं. भारत का रक्षा बजट फिलहाल जीडीपी का महज 1.6 प्रतिशत है, जो 1962 में चीन के साथ जंग के बाद सबसे कम है और जानकार इसे खराब संकेत बता रहे हैं.
खासकर तब जब विश्लेषक उस वक्त के फलक से अशुभ समानताएं देख रहे हैं जिसमें 1962 की सरहदी जंग में चीनी सेना ने साजोसामान की कमी से पस्त भारतीय सेना को धूल चटा दी थी. चीन का 175 अरब डॉलर का सैन्य बजट भारत के 45 अरब डॉलर के बजट का तिगुना है.
फर्क की खाईं
जरूरतः सेना ने 125 योजनाओं के लिए 37,121 करोड़ रु. मांगे.
मिलाः सेना को मिले 21,338 करोड़ रु. सारा पैसा मौजूदा दायित्वों की पूर्ति में खर्च हुआ.
फर्कः 15,783 रु. की कमी.
7,110 करोड़ रु. की जरूरत है नई योजनाओं के लिए, जो फाइनल होने वाली हैं.
बजटीय प्रावधान का अभाव, मनमानी प्राथमिकताएं और सिकुड़ते पूंजी बजट के चलते सेना के आधुनिकीकरण के प्रजेक्ट लड़खड़ा रहे हैं.
पूंजी का मामला
सेना को पूंजी बजट का आवंटन तेजी से घटता जा रहा है.
पेंशन का बोझ
सेवानिवृत्त सैनिकों को पंशन-भत्ते पिछले सात साल में चार गुना बढ़ गए हैं. 01 अप्रैल 2017 तक पेंशनर्श की 2,970,383 संख्या थी.
वाइसचीफ आर्मी स्टाफ ले. जनरल शरतचंद ने कहा, दो मोर्चों पर जंग की आशंका वास्तविक है. यह महत्वपूर्ण है कि हम इस पर सचेत हैं और फौज के आधुनिकीकरण और कमियां दूर करने पर ध्यान दे रहे हैं. मौजूदा बजट इन जरूरतों को पूरा करने के लिहाज से मामूली हैं.
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संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर