डायरेक्टर कबीर खान अपनी फिल्म 83 को लेकर चर्चा में चल रहे हैं. टीम इंडिया की 1983 विश्व कप जीत पर आधारित इस फिल्म में रणवीर सिंह कपिल देव की भूमिका निभा रहे हैं. अपनी फिल्म के साथ ही साथ वे एनआरसी और सीएए कानून को लेकर देश भर में चल रहे प्रदर्शनों पर भी अपनी राय जाहिर कर चुके हैं. उन्होंने हाल ही में इंडिया टुडे के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है.
सुशांत मेहता ने कबीर से पूछा कि 'सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीएए को लेकर कोई स्टे नहीं होगा. आप इस मुद्दे पर पहले बोल चुके हैं. आपका जामिया और जेएनयू के साथ कनेक्शन भी है. आपको पता है कि दिल्ली में क्या हो रहा है. आपकी इस बारे में क्या राय है? इस बात को लेकर समाज में काफी ध्रुवीकरण भी हो चुका है.'
इस पर बात करते हुए कबीर खान ने कहा, 'आप सही कह रहे हैं और इसके चलते मैं काफी दुखी भी हूं. मैं कोई पॉलिटिकल एक्टिविस्ट नहीं हूं. मैं इन मुद्दों पर प्रतिक्रिया दे रहा हूं क्योंकि मेरी जामिया और जेएनयू से यादें जुड़ी हैं. मैं इस मामले में एक नॉर्मन सिटिजन की तरह की रिएक्ट करना चाहता हूं. तो मेरा रिएक्शन दो स्तर पर है.'
उन्होंने कहा कि 'जब आप सिटिजनशिप के बारे में बात करते हो, तो आपको ये देखना होगा कि भारत जैसे देश को, सेक्युलरिज्म ने देश को समृद्ध किया है. जब आप देश में सिटिजनशिप की बात धर्म के आधार पर करते हो तो ये हमारे संविधान के खिलाफ हो जाता है, ये भारत की आत्मा के खिलाफ हो जाता है. दूसरी समस्या ये है कि इस कानून से जुड़े प्रोटेस्ट्स को जिस तरीके से डील किया गया है. हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं. हर पांच साल में हम वोट डालकर एक प्रतिनिधि चुनते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हमें पांच सालों तक चुप ही बैठना है. ये एक गतिमान प्रोसेस है और इस दौरान अपनी ओपिनियन लोगों के सामने रखना, अपनी पसंद और नापसंद के बारे में बात करना भी लोगों का एक महत्वपूर्ण अधिकार है.'
कबीर ने कहा कि 'भारत के कई हिस्सों में लोग लगातार सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं. मुझे लगता है कि सरकार की ये जिम्मेदारी है कि वे लोगों तक पहुंचे और उनकी बात सुने. मुझे नहीं पता कि इस मामले में कैसे आगे बढ़ना है. लेकिन मैं जानता हूं कि कोई ना कोई तरीका होगा जिसके सहारे सड़कों पर उतरे लाखों लोगों की बैचेनी और परेशानियों को सुलझाने की कोशिश की जाएगी. अगर सीएए के साथ वाकई में कोई दिक्कत नहीं है तो सरकार को इस बारे में लोगों को कंफर्टेबल फील कराने की कोशिश करनी चाहिए. मुझे लगता है कि सरकार को ये देखना चाहिए कि इस मामले में अपने पक्ष को ऊपर रखने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है.'
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