कहा जाता है कि हर इंसान का जन्म किसी कारण और किसी मकसद से होता है. आचार्य चाणक्य के अनुसार, अगर किसी शख्स में ज्ञान और कोई गुण ना हो तो ऐसे शख्स धरती पर बोझ के समान ही हैं. चाणक्य कहते हैं कि ऐसे लोगों को जीने का कोई हक नहीं है. आइए बताते हैं कि आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में और किस तरह के लोगों को धरती का बोझ माना है.
मांसभक्षै: सुरापानै: मूर्खेश्चाऽक्षरवर्जिते:।
पशुभि: पुरुषाकारैर्भाराक्रान्ताऽस्ति मेदिनी।।
आचार्य चाणक्य ने अपने श्लोक के माध्यम से तीन लोगों को धरती का बोझ बताया है. चाणक्य कहते हैं कि जो लोग मांस खाते हैं, मदिरा-पान या किसी भी तरह का नशा करते हैं और जो मुर्ख हैं वे सभी इस धरती पर बोझ हैं. शास्त्रों के अनुसार, जीवन हत्या को महापाप माना गया है.
इसी तरह आचार्य चाणक्य ने जीव हत्या कर उनका भक्षण करना गलत माना है. जो लोग जीव की हत्या करते हैं उन्हें चाणक्य ने धरती का बोझ कहा है. चाणक्य कहते हैं कि इंसान को किसी भी जीव की हत्या करने का कोई हक नहीं है, जब तक वो जीव उसे नुकसान न पहुंचाए.
इसके अलावा आचार्य चाणक्य के मुताबिक, जो लोग शराब पीते हैं या किसी भी तरह का नशा करते हैं, तो ऐसे लोग भी समाज के लिए बोझ हैं, क्योंकि नशे की स्थिति में इंसान को सही-गलत पता नहीं होता है. ज्यादातर अपराध भी नशे की हालत में ही होते हैं, इसलिए इस तरह के लोग भी इस धरती पर एक बोझ के समान ही हैं.
वहीं, आचार्य चाणक्य ने मूर्ख शख्स को भी धरती का बोझ माना है, क्योंकि बेवकूफ शख्स परेशानियों को कम करने की बजाए बढ़ाता है. चाणक्य के मुताबिक, ऐसे लोग दिखन में इंसान की तरह होते हैं, लेकिन असल में पशु होते हैं. वे कहते हैं कि इस तरह के लोगों से ना तो घर-परिवार को और ना ही समाज को कोई लाभ होता है.
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