बीजेपी: आखिर “किससे” करें महासंपर्क?

दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने की तैयारी कर रही बीजेपी अपने 10.91 करोड़ सदस्यों में से सिर्फ तीन फीसदी से संपर्क कर सकी है. ऐसे में महासंपर्क अभियान की सफलता पर ही उठ रहे सवाल.

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बीजेपी के पहले सदस्य पीएम मोदी से महासंपर्क करते अमित शाह और अभियान से जुड़े पार्टी पदाधिकारीगण बीजेपी के पहले सदस्य पीएम मोदी से महासंपर्क करते अमित शाह और अभियान से जुड़े पार्टी पदाधिकारीगण

संतोष कुमार

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  • 07 सितंबर 2015,
  • अपडेटेड 4:38 PM IST

अब आपको समझ में आ गया कि महासंपर्क में एक घर पर कितना समय देना है?” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 मई को 7 रेसकोर्स स्थित अपने आधिकारिक निवास पर मिलने आए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह समेत महासंपर्क अभियान की टीम के सदस्यों को विदा करते हुए सुकून भरी मुस्कराहट के साथ यह सवाल पूछा तो सभी ने मंद मुस्कान के साथ हामी में सिर हिला दिए. दरअसल, यह प्रधानमंत्री का पार्टी को एक संदेश था जिस पर उन्होंने खुद अमल करके दिखाया था. बीजेपी के सबसे पहले सदस्य के नाते चंद मिनटों की औपचारिकता पूरी करने के बाद नाश्ते की मेज पर अंकुरित चने खाते-खिलाते हुए मोदी ने सभी नेताओं से उनके परिवार के बारे में चर्चा शुरू की जो राजनीति और देश तक पहुंच गई. हल्की-फुल्की बातों के साथ सरकार के कामकाज पर गंभीर चर्चा करते हुए डेढ़ घंटा कब बीत गया, पता ही नहीं चला. इसलिए जब आखिर में प्रधानमंत्री ने सवाल पूछा तो उसका मर्म शाह के सिपहसालारों को समझ आ चुका था.

लेकिन उस वक्त तक बीजेपी ने शायद ही यह सोचा था कि मोदी लहर के बाद बने नए सदस्यों का घर ढूंढना मुश्किल हो जाएगा. दरअसल, तकनीक पर सवार होकर जनाधार बढ़ाने की कवायद पार्टी को भारी पड़ रही है और अब उसने सदस्यता अभियान के पुराने तौर-तरीकों को ही महासंपर्क अभियान का नाम दे दिया है. अमित शाह ने 10 करोड़ सदस्य बनाने के लक्ष्य के साथ 1 नंवबर, 2014 को  महासदस्यता अभियान शुरू किया और अप्रैल 2015 तक पार्टी ने लक्ष्य पार करने का भरोसा जताते हुए दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी होने का दावा भी किया, लेकिन जब इस आंकड़े पर संदेह जताया जाने लगा तो पार्टी ने सभी सदस्यों से घर-घर जाकर संपर्क करने और उन्हें पार्टी की विचारधारा से जोडऩे के लिए प्रशिक्षण देने की तिहरी रणनीति बनाई.

... पर आंकड़ों में उलझ गई बीजेपी
लेकिन बीजेपी की इस रणनीति को उस समय झटका लगा जब सदस्यता अभियान में मिस्ड कॉल के जरिए जुड़े 10-11 करोड़ लोगों में से चार करोड़ का कोई अता-पता नहीं था. इनमें ज्यादातर ऐसे थे जिन्होंने मिस्ड कॉल तो दिया था, लेकिन एसएमएस के जरिए अपना नाम-पता पार्टी को नहीं भेजा था. महासंपर्क अभियान से जुड़े राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, “शुरुआत में 30 से 40 फीसदी आंकड़े नहीं मिल पा रहे थे, पर हमने पेशेवर लोगों को जोड़कर स्थिति को ठीक कर लिया है.” लेकिन वे जिस उत्तर प्रदेश के महासंपर्क अभियान की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, वहां भी 1.86 करोड़ सदस्यों में से सिर्फ 1.56 करोड़ नंबर सही मिले और दुरुस्त नाम-पता वाले सदस्यों की संख्या एक करोड़ मिली. हालांकि यूपी के एक वरिष्ठ नेता का दावा है कि राज्य में 50 लाख फॉर्म जमा हो चुके हैं और मिस्ड कॉल में भी प्रदेश बाकी राज्यों से आगे है.

बीजेपी जिस सदस्यता अभियान की कामयाबी पर कुलाचें भर रही थी, महासंपर्क अभियान की हकीकत से उसकी धड़कनें बढ़ गईं. सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी नेतृत्व को जब यह लगा कि आंकड़ों के गड़बड़झाले से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का उसका तमगा छिन सकता है तो पार्टी ने केंद्र में अपनी सत्ता का भरपूर इस्तेमाल किया. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, “हमें सदस्यों का पता ढूंढने में शासन से भी मदद मिली. मंत्रालय के जरिए मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों को मोबाइल नंबर देकर लोगों के पते निकलवाए.” मोबाइल कंपनियों से गैर-आधिकारिक तौर पर निजी जानकारी हासिल की और महासंपर्क का खाका भी टेलीकॉम सर्कल के हिसाब से बनाया. इसके अलावा पार्टी ने आइआइटी, आइआइएम से जुड़े पेशेवरों को भी इस काम में जोड़ा, जिन्होंने वेबसाइट खंगालीं और बीजेपी कार्यालय से हर उस नंबर पर फोन किए जिसका नाम-पता रिकॉर्ड में नहीं था. इसके बावजूद बीजेपी चार करोड़ में से महज 1.20 करोड़ लोगों को ढूंढ पाई. इस अभियान से हाल ही में जुड़े पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम जाजू कहते हैं, “आज हमारे पास 8-9 करोड़ का स्पष्ट डाटा आ गया है, बाकी तीन करोड़ के आसपास ऐसे आंकड़े हैं जिन्हें तलाशने में थोड़ी दिक्कत आ रही है.”

आखिर क्या है देरी की वजह
महासंपर्क अभियान की मियाद 31 जुलाई को खत्म हो चुकी है, लेकिन अभी यह पूरा होता नहीं दिख रहा. पार्टी ने सबसे पहले अपने सक्रिय कार्यकर्ताओं से इस अभियान की शुरुआत की, जिन्होंने सक्रिय सदस्य बनने के लिए जरूरी 100 साधारण सदस्य बनाने के मापदंड को पूरा किया था. लेकिन यहां भी पार्टी को दिक्कतों को सामना करना पड़ा. दरअसल, बीजेपी ने आम चुनाव में जीत के बाद उत्साह में लोगों को सदस्य बनाने की बड़ी मुहिम छेड़ दी. इसके तहत गली, नुक्कड़, चौराहों, ट्रेन, बस आदि सभी जगहों पर लोगों से मिस्ड कॉल करवाना शुरू कर दिया गया. जैसा कि बीजेपी के एक जिला स्तर के कार्यकर्ता का कहना है, “हमने कैंप लगाए तो वहां आसपास के राज्यों से आने वाले लोग भी थे, जिनसे मिस्ड कॉल करवाया लेकिन तकनीकी वजहों से एसएमएस आने में देरी होती थी. वह आंकड़ा संबंधित प्रदेश में जमा हो गया और अब महासंपर्क के लिए मिला तो पता चला कि यह नंबर किसी दूसरे राज्य का है.” कई कार्यकर्ताओं के पास नाम-नंबर दोनों थे, लेकिन पता चला, उस जगह पर फलां नाम का कोई व्यक्ति ही नहीं है. डाकघरों के पिन कोड से भी कुछ जगहों पर डाटा मिक्स हो गए. जैसा कि जाजू खुद बताते हैं कि कुछ जगहों के नाम से भी भ्रम की स्थिति बनी, मसलन-औरंगाबाद बिहार और महाराष्ट्र, दोनों जगह है. पंजाब-हरियाणा का डाटा भी पिन कोड की वजह से मिक्स हो गया.

बीजेपी भले देरी के लिए तकनीकी वजहों को जिम्मेदार मान रही है, लेकिन बुनियादी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की दलील कुछ और ही है. सदस्यता अभियान की शुरुआत में बीजेपी के पक्ष में माहौल अच्छा था, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव की हार से स्थिति बदल गई. इसके अलावा कार्यकर्ताओं से लगातार काम लेने की वजह से भी थकावट की स्थिति है. बीजेपी ने सदस्यता के फौरन बाद महासंपर्क और फिर महाप्रशिक्षण शिविर लगाने का काम शुरू कर दिया. महासंपर्क से जुड़ीं बीजेपी महासचिव सरोज पांडेय कहती हैं, “महासदस्यता के लक्ष्य को हासिल करने के बाद महासंपर्क का कार्य प्रगति पर है. लेकिन यह सच है कि इसमें कुछ विलंब हुआ है.” वे बताती हैं कि देरी की वजह संगठनात्मक कार्यों के साथ-साथ कुछ राज्यों के चुनाव और इस अभियान के साथ ही प्रशिक्षण वर्ग की शुरुआत भी है. सरोज दावा करती हैं कि यह लक्ष्य सौ फीसदी पूरा होगा.

ऐसे तो लगेंगे छह साल!

बीजेपी भले आंकड़ों को दुरुस्त करने और महासंपर्क का लक्ष्य हासिल करने का दावा कर रही हो, लेकिन निर्धारित समय सीमा खत्म होने के बावजूद पार्टी 10.91 करोड़ में सिर्फ 40 लाख लोगों तक पहुंच पाई है. पार्टी ने सितंबर तक की नई समय सीमा तय की है. लेकिन इंडिया टुडे को मिले आंकड़े बताते हैं कि मौजूदा स्थिति में पार्टी एक दिन में औसतन 45-50 हजार लोगों तक ही पहुंच पा रही है. यह स्थिति तब है जब बीजेपी के नेता यह दावा कर रहे हैं कि अब यह अभियान रफ्तार पकड़ चुका है. अगर बीजेपी के इस प्रदर्शन को भी पैमाना मान लिया जाए तो भी उसे अपने सभी सदस्यों के घरों तक पहुंचने में छह साल और लग जाएंगे. यूपी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, “पार्टी ने शुरुआत में थोड़ी चूक कर दी. अगर सदस्यता अभियान के साथ ही डाटा राज्य इकाइयों से साझा किया जाता तो इतनी समस्या नहीं आती. एकमुश्त डाटा मिलने से कार्यकर्ताओं पर भी बोझ बढ़ा है और बहुत सारे नंबर अब नहीं मिल रहे.”
पार्टी भी इस मुश्किल को समझने लगी है. केंद्रीय नेतृत्व की की ओर से सभी राज्य इकाइयों को निर्देश दे दिया गया है कि जब तक लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता, किसी को विश्राम नहीं दिया जाएगा. लेकिन इस अभियान की सफलता को लेकर बीजेपी ने बचाओ की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. सदस्यता अभियान के आंकड़ों की जिम्मेदारी संभाल रहे बीजेपी महासचिव अरुण सिंह महासंपर्क में देरी के सवाल को ही खारिज करते हैं. वे कहते हैं, “संगठन में सक्रिय सदस्यता की एक प्रक्रिया है और 100 सदस्य बनाने वाले ही इस श्रेणी में आते हैं. सौ सदस्य बनाकर उसे एक फॉर्म में भरकर मंडल स्तर पर जमा करना होता है और जिला स्तर पर दो पदाधिकारी उसे सत्यापित करते हैं तभी कोई सक्रिय सदस्य बनता है. कुल मिलाकर ऐसे कार्यकर्ताओं की संक्चया 6.5-7 लाख है. यानी नवंबर 2014 से अप्रैल 2015 तक करीब 6-7 करोड़ सदस्यों से संपर्क हो चुका है और इस महासंपर्क अभियान को आप पुनरू संपर्क स्थापित करने की प्रक्रिया कह सकते हैं.” मौजूदा अभियान में देरी के सवाल पर उनकी दलील है, “हमने सदस्यता अभियान को पहली बार वैज्ञानिक और सुव्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाया. लेकिन महासंपर्क अभियान में भी मिस्ड कॉल देना है, इसको लेकर कुछ लोगों को भ्रम हो गया. लिहाजा मिस्ड कॉल उतनी संख्या में नहीं आ पाए, जितनी संख्या में फॉर्म इकट्ठे हुए हैं.”

जनाधार बढ़ाने का “वर्गीकरण” फॉर्मूला
अमित शाह ने हाल ही में बेंगलुरू में कहा था कि महासंपर्क अभियान में बीजेपी सभी 10 करोड़ सदस्यों तक पहुंचेगी और उन्हें पार्टी के विजन के बारे में बताएगी. यही नहीं, बीजेपी के पास इन सभी सदस्यों का डाटा होगा. लेकिन सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने अब उन सदस्यों तक ही पहुंचने की रणनीति बनाई है जिन तक पहुंचना सहज हो पाएगा क्योंकि तमाम कसरतों के बावजूद उसके पास अभी तक सभी सदस्यों के बारे में मुकम्मल जानकारी उपलब्ध नहीं है. पार्टी ने अब सदस्यों का वर्गीकरण करने का फॉर्मूला अपनाया है. यानी सक्रिय सदस्यों के अलावा एक श्रेणी संपर्क हो चुके सदस्यों की और जिन तक पहुंच पाना संभव नहीं हो पा रहा, उन्हें अलग श्रेणी में रखा जाएगा. लेकिन बीजेपी उन नंबरों को अपने डाटा से बाहर नहीं करेगी जिन तक वह नहीं पहुंच पा रही. पांडेय कहती हैं, “बीजेपी का नंबर डायल करने वाला हर सदस्य हमारी विचारधारा से प्रभावित होकर आया है इसलिए वह हमारे साथ जुड़ा रहेगा.” यानी यह श्रेणी बीजेपी के लिए मतदाता के बाद मनदाता वाली होगी, जिन्हें तकनीकी वजहों से बीजेपी अपना कार्यकर्ता नहीं बना पा रही.

लेकिन शाह पार्टी का जनाधार बढ़ाने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अलग-अलग प्रयोग भी कर रहे हैं. सदस्यता अभियान में सात राज्यों&महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार और राजस्थान ने एक करोड़ से ज्यादा का लक्ष्य हासिल किया और अब महासंपर्क के लिए इन राज्यों में अलग से एक केंद्रीय पदाधिकारी को तैनात किया गया है. इसके अलावा शाह ने सदस्यता अभियान के समय सात राज्यों&तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, असम, ओडिसा और पश्चिम बंगाल पर फोकस किया था जहां सदस्यों की संख्या बढ़ी है. लेकिन महासंपर्क की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है. सक्रिय सदस्यों की संख्या में इजाफा करने के लिए पार्टी उन लोगों को भी सक्रिय सदस्य की सूची में शामिल करने जा रही है जो किसी खास क्षेत्र में दक्षता रखते हैं और अपनी सेवा देने के लिए कुछ समय दे सकते हैं. इसलिए 6-7 लाख सक्रिय सदस्यों के अलावा इतनी ही संख्या में नए सदस्यों को जोड़कर 15 लाख लोगों का महाप्रशिक्षण अभियान शुरू हो चुका है. सितंबर में हर रोज 500 प्रशिक्षण शिविर आयोजित होंगे.

नए प्रयोगों से बीजेपी की सदस्यता तीन करोड़ से बढ़कर 10 करोड़ के पार पहुंच गई है. लेकिन महासंपर्क अभियान को पैमाना बनाया जाए तो यह संख्या 6-7 करोड़ के आसपास ही रहेगी. ऐसे में क्या बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का रिकॉर्ड कायम रख पाएगी?

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