चाहे रीयल लाइफ हो या फिल्म, केरल में यातायात नियम तोड़ा तो खैर नहीं

केरल की खूनी सड़कों पर यातायात नियमों का सख्ती से पालन करवा कर परिवहन आयुक्त ऋषिराज सिंह बन गए लोगों के नए हीरो. बाकी राज्य भी सीख सकते हैं सबक.

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एम.जी. राधाकृष्णन

  • हैदराबाद,
  • 14 जनवरी 2014,
  • अपडेटेड 6:05 PM IST

अब तक की सबसे धांसू फिल्म शोले की अगर नए सिरे से केरल में शूटिंग हो और जय और वीरू हवा में लहराते बालों के साथ मस्ती में ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे गाना गाते हुए मोटरबाइक दौड़ा रहे हों तो शायद वे हवालात में पहुंच जाएंगे.

अमिताभ बच्चन हों या धर्मेंद्र, मोहनलाल या फिर ममूटी, 1 दिसंबर को केरल के कड़क मिजाज, घनी-मोटी मूंछों वाले सुपरकॉप ऋषिराज सिंह ने आदेश जारी कर दिया है कि केरल में फिल्म शूटिंग के दौरान कोई ऐक्टर बिना आइएसआइ प्रमाणित हेलमेट पहने दोपहिया वाहन दौड़ाता नजर आए तो उसे फौरन पकड़ लिया जाए.

सीबीआइ में थोड़े दिन बिताने के बाद राज्य में वापस लौटे केरल के इस परिवहन आयुक्त का यह सिर्फ एक आदेश भर है. मूंछों पर ताव देकर डंडा लहराते 52 वर्षीय ऋषिराज ने राज्य की सड़कों पर बेकाबू दौडऩे वाले वाहनों पर लगाम लगा दी है. ट्रैफिक मानदंडों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ाई करके उन्होंने सड़कों पर धुआंधार हो रहे हादसों और मौतों में खासी कमी लाने में कामयाबी पाई है.

मूल रूप से बीकानेर के रहने वाले केरल काडर के 1985 बैच के आइपीएस अधिकारी ऋषिराज खुद फिल्मों के दीवाने हैं. लेकिन केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड और उद्योग के दूसरे संगठनों को जब उन्होंने लिखकर इत्तला कि फिल्म या टीवी परदे पर किरदार हेलमेट पहनकर ही बाइक चलाते दिखाए जाएं या फिर गिरफ्तारी का जोखिम उठाएं तो इसके पीछे उनकी पुख्ता दलील थी: ''फिल्म की शूटिंग ही क्यों न हो, बाइक की सवारी तो असली है.

1988 के मोटर वाहन कानून की धारा 129 साफ-साफ कहती है कि बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन की सवारी गैरकानूनी है. मैं केरल में शोले की दोबारा शूटिंग जय और वीरू के माथे पर हेलमेट के बिना करने की इजाजत नहीं दूंगा. फिल्म वाले पहले ऐसे दृश्यों से बच जाते थे क्योंकि कानून का कड़ाई से पालन नहीं होता था.”

पिछले साल जुलाई में पद संभालने के तीन महीने के भीतर वे राज्यभर में 8,000 लाइसेंस रद्द कर चुके थे. इनमें शराब पीकर ड्राइविंग से लेकर बेहिसाब रफ्तार से वाहन दौड़ाने, हेलमेट और सीट बेल्ट न लगाने तक के मामले शामिल थे. उन्होंने 15,000 प्राइवेट, 5,000 सरकारी बसों और 16,000 ट्रकों को गति नियंत्रक लगाने पर भी मजबूर किया है.

शुरुआती विरोध के बावजूद नतीजे सबके सामने हैं. अचानक सड़क दुर्घटनाएं और उनमें मौत के आंकड़े 40 फीसदी तक घट गए हैं.

और जैसी कि उम्मीद थी, ऋषिराज के आदेश से मलयाली फिल्म इंडस्ट्री खफा है. कई डायरेक्टर इसे अपनी रचनात्मक आजादी पर हमला मान रहे हैं. राज्य फिल्म डायरेक्टर्स यूनियन के महासचिव बी. उन्नीकृष्णन का सवाल है, ''अगर किसी दृश्य में हत्यारा मौका-ए-वारदात से किसी की बाइक चुराकर भाग रहा हो तो क्या हमें पहले उसे हेलमेट की तलाश करते दिखाना होगा?”

उनके मुताबिक, ''ऋषिराज का कहना है कि पहले कानून का कड़ाई से पालन न होने की वजह से ऐसे दृश्य फिल्माए जाते थे. अब क्या वे उन फिल्मों में भी बाइक सवार के हेलमेट पहनने पर जोर देंगे जिनकी कहानी पहले के दौर की है?” यह सवाल उस वक्त उभरा जब मलयाली फिल्मों के सुपर स्टार मोहनलाल ने अपने ब्लॉग में ट्रैफिक नियमों का कड़ाई से पालन करवाकर कई जिंदगियां बचाने वाले असली हीरो के नाते ऋषिराज की सराहना की.

पर यह सुपरकॉप इन सवालों से बेफिक्र है. फरार्टेदार मलयाली बोलते हुए ऋषिराज कहते हैं, ''मैं भी फिल्मों का दीवाना हूं. लेकिन कोई रचनात्मक स्वतंत्रता इनसानी जिंदगी को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती.” दरअसल 2009 में फिल्म पाइरेसी के खिलाफ उनकी मुहिम की फिल्म इंडस्ट्री में काफी सराहना हुई थी. उनका कहना है कि वे मलयालम फिल्मों के विरोधी नहीं हैं, बल्कि उन्हें स्थानीय फिल्में अच्छी लगती हैं.

वे कहते हैं, ''मैं हर हफ्ते कम-से-कम दो मलयाली फिल्में देखता हूं. मलयाली सिनेमा जिंदगी के काफी करीब है. यहां तो सुपरस्टार मोहनलाल को भी घरेलू नौकरों का रोल निभाने से गुरेज नहीं. क्या आप सलमान खान से ऐसी उम्मीद कर सकते है? लेकिन मैं फिल्मों के जरिए लोगों को जानलेवा संदेश देने की इजाजत नहीं दे सकता. जब मैंने अपनी मुहिम शुरू की तो कई अभिभावकों ने मुझ्से पूछा कि परदे पर नियमों के उल्लंघन की इजाजत क्यों दी जाती है?”

उन्होंने पाया कि हॉलीवुड में टर्मिनेटर जैसी ऐक्शन मूवी में भी किसी ऐक्टर को बिना सीट बेल्ट लगाए कार चलाने की छूट नहीं दी जाती है. ''मैं सिर्फ एक मामले में नियमों से हटने की छूट दूंगा. बशर्ते किसी दृश्य में बिना हेलमेट के बाइक चलाते या बिना सीट बेल्ट लगाए कार चलाते हुए गंभीर दुर्घटना का शिकार होते दिखाया जाए.” इस मामले में धूम्रपान या मद्यपान के खिलाफ परदे पर वैधानिक चेतावनी जारी करने के उपाय कारगर नहीं होंगे. वे कहते हैं, ''धूम्रपान या मद्यपान से मौत काफी बाद में आती है जबकि बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के दुर्घटना में फौरन मौत होती है.”

ऋषिराज की कुछ साल पहले फिल्म इंडस्ट्री से एक और मुठभेड़ हुई थी. उन्होंने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड से सर्टिफिकेट प्राप्त जनातिपत्यम फिल्म के निर्माताओं के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया था क्योंकि उसमें एक वरिष्ठ आइपीएस अफसर को एक महिला कर्मचारी का बलात्कार करते दिखाया गया था.

ऋषिराज कहते हैं, ''सिर्फ बलात्कार ही नहीं दिखाया गया था बल्कि उस दौरान पीडि़त महिला अफसर का वह बैज नोच लेती है, जिस पर आइपीएस लिखा है और कुछ देर तक कैमरा उसी पर केंद्रित रहता है. मैंने अदालत से शिकायत की कि इस दृश्य से मेरा मनोबल गिरता है और मानसिक उत्पीडऩ होता है.”

कॉलेज के अध्यापक से पुलिस अफसर बने ऋषिराज अपने नए तौर-तरीकों से पहले भी सुर्खियां बटोरते रहे हैं. 2004 में आइजीपी (हाइवे पुलिस) पद पर उन्होंने हाइवे पर रिश्वत लेने वाले अफसरों को पकडऩे के लिए लुंगी पहने ट्रक ड्राइवर का वेश बना लिया था. फिल्म पाइरेसी के खिलाफ मुहिम के दौरान उन्होंने राज्य सरकार के करीबी एक बड़े पुलिस अधिकारी के स्टुडियो में छापा मारकर तूफान खड़ा कर दिया था. इंडस्ट्री के एक सूत्र का कहना है, ''उसके बाद फिल्मों की पाइरेसी का धंधा रुक गया.”

हाइवे पर दोबारा दस्तक देने को तैयार सुपरकॉप कहते हैं, ''मैं आपने काम के प्रति प्रतिबद्धता से ही प्रेरणा पाता हूं. सियासी नेताओं का दखल न हो तो नतीजे और बेहतर आएंगे.”  

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