अस्थि कलश फंस गया राष्ट्रवादियों के चंगुल में, फिर...

राष्ट्रवादी रंग से सराबोर अस्थि कलश को जब नदी की तरफ उछाला गया तो...उससे एक भ्रम का चक्रवात निकला, संशय का धुआं उठा और नेता जी चक्कर में पड़ गए कि उन्होंने जो विसर्जित किया वह क्या था, कहीं...!

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 अस्थि कलश यात्रा अस्थि कलश यात्रा

संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर

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  • 30 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 8:25 PM IST

आज नेताजी ने एक बड़े राज्य के नेताजी की अस्थि कलश यात्रा को हरी झंडी दिखानी थी. सारे जिले और मंडल स्तर के मुख्य पदाधिकारियों को मिलाकर कुल 2019 कार्यकर्ताओं को ही यात्रा में शामिल किया गया था. सारे छुट्टे कार्यकर्ता नेताजी को श्रृद्धांजलि देने के लिए मचल रहे थे. जैसे ही नेताजी की नजर हरी झंडी पर पड़ी, वे घोड़े की तरह बिदक गए और तमतमा कर बोले, 'इस झंडी से सांप्रदायिकता की बू आती है.

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हम धर्मनिरपेक्ष देश के जिम्मेदार पार्टी के नेता हैं. इस झंडे का रंग बदला जाए. फिर हम हरी झंडी दिखाएंगे. सॉरी झंडी दिखाएंगे.' सरकारी बाबू बोला, 'सर हमेशा झंडी हरी ही दिखाई जाती है.

इसका कलर नहीं बदल सकते.' नेता जी बोले, 'इस झंडी का कलर केसरी करो. तुम इस विभाग में नए आए हो क्या? तुम्हें हमारे सेक्रेटरी का आर्डर नहीं मिला?

जिसमें हमने कहलवाया है कि हम जिस चीज का भी उद्घाटन करें उसका रंग सैफ्रॉन होना चाहिए. पिछले हफ्ते आपने अखबार में देखा नहीं? हमने सैफ्रॉन टॉयलेटों का उद्घाटन किया? उससे पहले हम केसरी मुर्दाघाटों को जनता को समर्पित कर चुके हैं.   

नेताजी की कार और सोफे की सीट कवर भी केसरी रंग के थे. इनके चमचों ने तो सारी हदें पार कर दी थी. नेताजी का टॉयलेट पेपर रोल भी इसी रंग का बनवाया गया था.

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कोई भी देशभक्ति और राष्ट्रीयता का उत्कृष्ट परिचय देने में पीछे नहीं रहना चाहता था. एक ने तो उनका तांबे का पीकदान भी इसी राष्ट्रीय रंग में रंगने का प्रस्ताव दे डाला था. नेताजी का पीकदान अस्थि कलश के साथ-साथ चल रहा था. दोनों में अंतर करना मुश्किल था. 

नेताजी सबसे आगे अस्थि कलश लिए देश के विकास का नेतृत्व कर रहे थे. सभी चेले-चपाटे कलश को अपने हाथों में ले कृतार्थ होना चाहते थे. बीच-बीच में नेताजी को पान थूकने के लिए पीकदान पकड़ाया जाता तब चेलों में अस्थि कलश को लेने की होड़ मच जाती.

इस छीना-झपटी में कई बार पता नहीं चल पा रहा था कि कौन सा अस्थि कलश है और कौन सा पीकदान? लंबी यात्रा के बाद जैसे ही कलश टोली घाट पर पहुंचा, सीढ़ियों पर सफेद चादरें देख नेताजी आग-बबूले हो उठे.

किसी ने समझाया, सर पैरों की नीचे आ जाते इसलिए केसरी चादर नहीं लाए. अस्थि विसर्जन का मुहूर्त निकला जा रहा था. नेताजी के हाथ में कलश की जगह पीकदान था. अस्थि कलश नेताजी को दो पीकदान इधर फेंको की आवाजों की गड़बड़ी में नेताजी ने अस्थि कलश ही गंगा में प्रवाहित कर दिया. चारों ओर नेताजी के जयकारे लग रहे थे. 

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