हर घंटे में एक औरत को गंवानी पड़ रही अपनी जान, सामने आये चौकानें वाले आकड़ें

भारत की कुल जनसंख्या का 70 फीसदी सिर्फ बच्चें और महिलाएं हैं. जिनकी हालत बेहद चिंताजनक हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक 58.6 करोड़ औरतों में ज्यादतर की हालत देश के चिड़ियाघर में रह रहे जानवरों से भी बदतर है.

Advertisement
भारत में महिलाओं की आबादी कुल 58.6 करोड़ भारत में महिलाओं की आबादी कुल 58.6 करोड़

आनंद गुप्ता

  • नई दिल्ली,
  • 14 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 4:05 AM IST

भारत की कुल जनसंख्या का 70 फीसदी सिर्फ बच्चें और महिलाएं हैं. जिनकी हालत बेहद चिंताजनक हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक 58.6 करोड़ औरतों में ज्यादतर की हालत देश के चिड़ियाघर में रह रहे जानवरों से भी बदतर है. पर अभी तक देश के सोशल साइंटिस्ट इस बात का पता लगा पाने में लगभग असफल ही रहे हैं कि देश की आधी आबादी की ये हालत क्यों हैं?

कुपोषण से लेकर सामाजिक असमानता झेल रही महिलाओं के खिलाफ अपराधों में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही हैं और शायद ये बढ़ोत्तरी हमारे देश की आर्थिक विकास दर से भी से ज्यादा बड़ी बहस का विषय हैं. लिंग अनुपात और दहेज-हत्या की कहानी एक ही स्याही से लिखी जाती हैं. हां वाही स्याही जिसमें हमारे समाज की औरतों के प्रति नफरत का रंग घुला हुआ हैं.

Advertisement

लिंग अनुपात का सच
सरकार के पास आंकड़ों से खेलने वाले लाखों सिपाही मौजूद हैं जिनके सहारे वो हमें वहीं आकड़े दिखाती हैं जो उसका बचाव करते हैं. बात चाहे एफडीआई की हो या आर्थिक विकास के आकड़ों की, सरकार सिर्फ फीसदी में बात करती है. पर हमारे गणित के अध्यापक ने कहा था फीसदी में आधार संख्या (बेस नंबर) का हमेशा ध्यान रखना सारा खेल उसी का हैं. सरकार ने 2011 की जनगणना में कहा कि पिछले 10 सालों में लिंग अनुपात में सुधार हुआ है. बात भी सच हैं, 2001 में लिंग अनुपात 933 था जो 2011 में बढ़कर 943 हो गया. सरकार को ये भी बताना चाहिए था कि 1951 में यह आकंडा 946 था और 1901 में 972. अब आप पूरी कहानी जान सकते हैं बढ़त कहां और कितनी हुई.

Advertisement


काश सिर्फ गणित के खेल से देश की दो तिहती आबादी की हालत सुधारी जा सकती. बच्चों के लिंग अनुपात के आंकड़े चौकाने वाले हैं. जी हां 2011 की जनगणना कहती हैं कि 6 साल तक बच्चों में लिंग अनुपात, बीते सौ सालों में सबसे चिंताजनक स्थिति में हैं. मसलन 1951 में बच्चों में लिंग अनुपात 983 था जो 2001 में घटकर 927 हुआ और 2011 में न्यूनतम 919 हो गया.


हरियाणा और पंजाब में फसल भले ही लहलहाती हो पर नन्ही बच्चियों और बेबस औरतों के भाग्य में यहां हमेशा ही सूखा रहा हैं. इस बार भी देश में लिंग अनुपात के आकड़ों में निचले पायदान को लेकर पंजाब और हरियाणा में बड़ी जेद्दोजेहद देखने को मिली पर बाजी इस बार हरियाणा ने मारी. वहीँ जम्मू-कश्मीर में अब आतंकी मुठभेड़ें बीते दशक से भले ही कम हो गयी हों पर बच्चों में गिरता लिंग अनुपात उलझनों को और बढ़ाने वाला हैं. जहां बीते दशक में सबसे ज्यादा गिरावट आई हैं. जम्मू-कश्मीर में 2001 में 6 साल तक के बच्चों में लिंग अनुपात 941 था जो 2011 में गिरकर 859 हो गया.

औरतों के खिलाफ हिंसा
औरतें के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार प्रेमचंद के उपन्यास से लेकर समाज की कड़वी सच्चाई रही हैं. अगर बात सिर्फ बीते दशक की करें तो महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों में करीब 70 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई हैं जो शायद सरकार को छोड़ किसी के भी माथे पर सिकन लाने के लिए काफी हैं. बीते दशक की कहानी कहती है कि हर साल औसतन 8,000 औरतों को दहेज़ की कमी के कारण मार दिया जाता है. मतलब देश में हर घंटे में दहेज़ को लेकर कम से कम एक औरत को अपनी जान गवनीं पड़ रही है.

Advertisement

मुलायम सिंह यादव जो आज-कल आईपीएस अफसर को भी डपट देते हैं क्या प्रदेश में दहेज़ हत्या के बढ़ते मामलों में अपने सुपुत्र और सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यदाव को भी डांटेंगे? क्योकिं बीते दशक में भी हमेशा की तरह दहेज़-हत्या के सबसे ज्यादा मामले वहीँ सामने आएं हैं. बिहार सिर्फ उत्तर-प्रदेश का पडोसी ही नहीं बल्कि दहेज़-हत्या के मामलों में भी उसका पडोसी हैं.

प्रगति के इस दौर में जब हमारी मिसाईलों की जद में पूरा महाद्वीप आ रहा हैं, मीलों दूर मंगोलिया को हम आर्थिक सहायता दे रहे हैं, तब क्या हमारी सरकारों को देश और समाज के भीतर मौजूद इस कड़वी सच्चाई को से निपटने की योजनाएं नहीं बनानी चाहिए?

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement