Deepak Punia win gold in CWG:' केतली पहलवान' ने दिलाया गोल्ड, पहला दंगल जीतने पर मिले थे 5 रुपये

भारतीय पहलवानों ने 22वें कॉमनवेल्थ गेम्स में अपना दम दिखाते हुए जमकर मेडल बरसाए. इंग्लैंड के बर्मिंघम में खेले जा रहे कॉमनवेल्थ के एक ही दिन में भारतीय पहलवानों ने तीन गोल्ड समेत कुल 6 मेडल अपनी झोली में डाल लिए. इनमें बजरंग पूनिया, साक्षी मलिक और दीपक पूनिया ने गोल्ड पर कब्जा जमाया...

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Deepak punia (PTI) Deepak punia (PTI)

aajtak.in

  • बर्मिंघम,
  • 06 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 4:30 PM IST
  • कॉमनवेल्थ गेम्स में दीपक ने जीता गोल्ड मेडल
  • दीपक ने 4 साल की उम्र में पहलवानी शुरू की

Deepak Punia win gold in CWG: इंग्लैंड के बर्मिंघम में खेले जा रहे 22वें कॉमनवेल्थ गेम्स के एक ही दिन में भारतीय पहलवानों ने अपना दम दिखाते हुए जमकर मेडल बरसाए. एक ही दिन में तीन गोल्ड समेत कुल 6 मेडल अपनी झोली में डाल लिए. इनमें गोल्डन बॉय 'केतली पहलवान' ने भी सभी को अपना मुरीद बनाया.

आप सोच रहे होंगे कि यह केतली पहलवान कौन है. तो बता दें कि दीपक पूनिया को ही उनके गांव में केतली पहलवान कहा जाता है. गांव वालों ने दीपक को बचपन से ही केतली पहलवान बुलाना शुरू कर दिया था. इस नाम के पीछे भी एक अलग ही स्टोरी है.

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पाकिस्तानी रेसलर को हराकर दीपक ने गोल्ड जीता

बता दें कि शुक्रवार (5 अगस्त) को आखिर में दीपक पूनिया ने गोल्ड दिलाया था. उन्होंने फाइनल में पाकिस्तान के रेसलर को हराकर गोल्ड मेडल जीता. दीपक पूनिया ने 86 किग्रा. फ्री-स्टाइल कुश्ती में पाकिस्तान के मोहम्मद इनाम को 3-0 से मात दी. पूरे मैच में दीपक पूनिया हावी नज़र आए.

मैच में एक भी समय ऐसा नहीं लगा कि पाकिस्तानी रेसलर जरा भी दीपक पर हावी हुए हैं. बल्कि दीपक के दांव के आगे पाकिस्तानी रेसलर ही थके हुए नजर आए.

4 साल की उम्र में पहलवानी में दिखाई थी दिलचस्पी

बता दें कि दीपक को पहलवानी विरासत में मिली है. उनके पिता और दादा भी पहलवान थे और यही वजह थी कि महज 4 साल की उम्र से ही दीपक पहलवानी में दिलचस्पी लेने लगे थे. दीपक ने जब अपना पहला दंगल जीता था, तब उन्हें इनाम के तौर पर 5 रुपये मिले थे. हरियाणा के झज्जर जिले के छारा गांव में जन्मे दीपक का उस दंगल से कॉमनवेल्थ के गोल्ड तक का सफर कठिनाइयों से भरा रहा है.

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कॉमनवेल्थ गोल्ड तक का सफर आसान नहीं रहा

उनके पिता दीपक दूध बेचा करते थे, इसलिए परिवार में आर्थिक तंगी भी रहती थी. काफी कम उम्र में ही दीपक ने अपने चचेरे भाई सुनील कुमार के साथ मिलकर दंगल में भाग लेना शुरू कर दिया, ताकि दंगल में जीते पैसों से परिवार की मदद हो सके. जब उन्होंने पहला दंगल जीता तो उसके लिए उन्हें इनाम के तौर पर 5 रुपये दिए गए थे. भाई सुनील ने जब दंगल में दीपक की प्रतिभा को देखा तो 2015 में आगे की तैयारी के लिए उन्होंने उन्हें दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम भेजा.

छत्रसाल में सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त जैसे बड़े पहलवानों का गाइडेंस मिला. सुशील कुमार को दीपक 'गुरुजी' कहकर बुलाते थे. दो बार के ओलंपिक मेडलिस्ट सुशील ने ही दीपक को सेना में सिपाही की नौकरी करने से रोका और उन्हें कुश्ती पर ही ध्यान देने की सलाह दी.

...इसलिए दीपक को कहते थे केतली पहलवान

बहुत ही कम लोग जानते हैं कि दीपक को केतली पहलवान भी कहा जाता था. वह बचपन में पतले-दुबले थे, मगर उनमें काफी फुर्ती थी. इस वजह से उन्हें केतली पहलवान कहते थे. इसका खुलासा गांव वालों ने ही आजतक पर किया था. उन्होंने बताया था कि दीपक बचपन में बहुत ही पतले-दुबले थे, मगर उनमें काफी फुर्ती थी. इस वजह से उन्हें केतली पहलवान कहते थे.

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