यहां सबसे बड़े और भारी फुटबॉल से होता है मैच, 126 साल पुरानी परंपरा

क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा और भारी फुटबॉल कहां खेला जाता है. आप को जानकर आश्चर्य होगा कि इस फुटबाल का आयोजन राजस्थान के टोंक जिले के देवली के आवां गांव में होता है. इसे देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग दूर-दूर से आते हैं.

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सबसे बड़ा और भारी फुटबॉल सबसे बड़ा और भारी फुटबॉल

शरत कुमार / अमित रायकवार

  • जयपुर,
  • 15 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 4:19 PM IST

क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा और भारी फुटबॉल कहां खेला जाता है. आप को जानकर आश्चर्य होगा कि इस फुटबाल का आयोजन राजस्थान के टोंक जिले के देवली के आवां गांव में होता है. इसे देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग दूर-दूर से आते हैं. टोंक जिले के देवली उपखंड़ के आवां गांव में रियासत काल से चले आ रहे शौर्य और पराक्रम के इस अद्भुत खेल को दड़ा कहा जाता है. इस खेल में खिलाड़ियों की सीमा तय नही रहती है. 5 फीट रेडियस का 80 किलों के यह दड़ा फुटबाल भविष्यवाणी, वीरता और आपसी भाईचारे का प्रतीक माना जाता है.

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126 साल पहले शुरू हुआ यह खेल
126 साल पहले शुरू हुआ यह दड़ा मकरसंक्रांति के दिन खेला जाता है. इस रोमांचक खेल का नतीजा मान्यता के अनुसार अकाल या सुकाल का फैसला करता है. बोरियों के टाट और रस्सी से बने इस 80 किलो के फुटबॉल नुमा दड़ा खेल की शुरुआत आवां रियासत के पूर्व जागीरदार जयेंद्र सिंह ने पांव लगाकर की. जैसे ही फुटबॉल नुमा दड़ा गढ़ के सामने स्थित गोपाल चौक में लाया गया परंपरा के अनुसारक पुरा गांव और दूर-दराज से आए लाखों लोग दड़े पर पिल पड़े और दड़े को रियासत काल से ही बने गोल पोस्ट की ओर ले जाने की जोर आजमाइश में लग गए.

इस खेल को पैरों से खेला जाता है
मान्यता के अनुसार अगर बढ़ा दो ही दरवाजे की तरफ जाता है तो सुख समृद्धि और अच्छी बरसात होने का इशारा करता है वही अगर यह बड़ा अखनिया दरवाजे की ओर जाता है तो अकाल पड़ना माना जाता है. अगर दड़ा दोनों ही दरवाजों की और न जाकर बीच में ही रहा जाता है तो मध्यम वर्ष होना मान लिया जाता है. तीन घंटे तक चले इस खेल का निर्णय मध्यम वर्ष होने की तरफ इशारा करता है यानी इस बार न ही अकाल होगा और न ही सुकाल. गौरतलब है कि इस खेल की शुरुआत उनियारा रियासत के रावराजा सरदार सिंह ने सेना में सैनिकों की भर्ती के लिए की थी. जो भी ग्रामीण इस खेल को पूरे जोशो खरोश से खेलता था उसे सेना में भर्ती कर लिया जाता था. अब दूसरी बड़ी मान्यता ये भी है कि क्षेत्र के बारह पुरा गांव सहित छोटे-बड़े गांवों के 36 कोम के हजारों लोगों द्वारा इस खेल को खेले जाने से उनमें सौहार्द और भाईचारा भी बना रहता है.

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दड़े को पानी में भिगोया जाता है
आंवा रियासत के पूर्व जागीरदार जयेन्द्र सिंह नें बताया की दड़े का निर्माण बोरियों के टाट के बीच में बड़ा पत्थर रखकर उसे रस्सियों से बांध दिया जाता था और खेल शुरू होने के एक दिन पहले दड़े को पानी में भिगो दिया जाता है जिस से उसका वजन लगभग 70 से 80 किलो का हो जाता है. इतने भारी दड़े को केवल पैरों से ही खेला जाता है.

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