दिल्ली से 80 किलोमीटर दूर गंगा किनारे बसे इस गांव के लिए कोई सड़क नहीं. जंगल और कच्चे रास्तों से गुजरते हुए भीतर पहुंच भी जाएं तो न बिजली मिलेगी, न पक्के घर. यहां बसे 122 परिवार उनके वंशज हैं, जिन्हें 80 के दशक में नसबंदी के बदले जमीन का वादा मिला था. बांग्ला बोलने वाले ये लोग अब बांग्लादेशी और हिंदुस्तानी पहचान के बीच पुराने केस की तरह 'मुल्तवी' पड़े हैं.