जानें- क्या है पूजा में आरती का महत्व और नियम

हिंदू धर्म में पूजा में आरती का विशेष महत्व माना गया है. माना जाता है कि सच्चे मन और श्रृद्धा से की गई आरती बेहद कल्याणकारी होती है. आरती करने के कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करना चाहिए.

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आरती का महत्व आरती का महत्व

प्रज्ञा बाजपेयी

  • नई दिल्ली,
  • 27 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 8:25 AM IST

भगवान की पूजा से मन को शांति और आत्मा को तृप्ति मिलती है. पूजा-पाठ और साधना में इतनी शक्ति होती है कि ये सभी मनोकामना पूर्ण कर सकती है. सच्चे मन से की गई ईश्वर की आराधान चिंताओं को दूर कर एक असीम शांति का एहसास कराती है. लेकिन पूजा के दौरान ईश्वर की आराधना तब तक पूरी नहीं होती, जब तक भगवान की आरती ना की जाए. शास्त्रों में पूजा में आरती का खास महत्व बताया गया है. माना जाता है कि सच्चे मन और श्रृद्धा से की गई आरती बेहद कल्याणकारी होती है. आरती के दौरान गई जाने वाली स्तुति मन और वातावरण को शुद्ध और पवित्र कर देती है.

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आरती की महिमा-

अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन आरती कर लेता है, तो भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं. आरती का धार्मिक महत्व होने के साथ ही वैज्ञानिक महत्व भी है. रोज प्रात:काल सुर-ताल के साथ आरती करना सेहत के लिए भी लाभदायक है. गायन से शरीर का सिस्टम सक्रीय हो जाता है. इससे असीम ऊर्जा मिलती है. रक्त संचार संतुलित होता है. आरती की थाल में रुई, घी, कपूर, फूल, चंदन होता है. रुई शुद्घ कपास होता है. इसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती है. इसी प्रकार घी भी दूध का मूल तत्व होता है. कपूर और चंदन भी शुद्घ और सात्विक पदार्थ है. जब रुई के साथ घी और कपूर की बाती जलाई जाती है, तो एक अद्भुत सुगंध वातावरण में फैल जाती है. इससे आस-पास के वातावरण में मौजूद नकारत्मक उर्जा भाग जाती है और वातावरण में सकारात्मक उर्जा का संचार होने लगता है.

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आरती का महत्व-

- आरती के महत्व की चर्चा सर्वप्रथम "स्कन्द पुराण" में की गई है.  

- आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है.  

- किसी भी पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है.  

- आरती की प्रक्रिया में एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के सामने घुमाते हैं.  

- थाल में अलग-अलग वस्तुओं को रखने का अलग-अलग महत्व होता है.  

- लेकिन सबसे ज्यादा महत्व होता है आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति का. मान्यता है कि जितने भाव से आरती गाई जाती है, पूजा उतनी ही ज्यादा प्रभावशाली होती है.

आरती करने के नियम-

- बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती है.  

- हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है.  

- आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है.  

- अगर दीपक से आरती करें, तो ये पंचमुखी होना चाहिए.  

- इसके साथ पूजा के फूल और कुमकुम भी जरूर रखें.  

- आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके.  

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- आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए.

मनोकामना पूर्ति के लिए आरती-

- विष्णु जी की आरती में पीले फूल रखें.  

- देवी और हनुमान जी की आरती में लाल फूल रखें.

- शिव जी की आरती में फूल के साथ बेल पत्र भी रखें.  

- गणेश जी की आरती में दूर्वा जरूर रखें.  

- घर में की जाने वाली नियमित आरती में पीले फूल रखना ही उत्तम होगा.

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