Shani Ka Daan: आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाएंगे शनि, बस नियम से दान करें ये एक चीज

शनि के लिए समाज के निर्बल वर्ग और गरीब तबके को दान करना सर्वोत्तम होगा. इसके अलावा जो आपसे कमजोर हो उसे भी दान कर सकते हैं. जिनकी कुंडली में शनि लाभकारी हो, ऐसे लोग शनि सम्बन्धी दान न करें.

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आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाएंगे शनि, बस नियम से दान करें ये एक चीज आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाएंगे शनि, बस नियम से दान करें ये एक चीज

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 8:34 PM IST

Shani Ka Daan: शनि व्यक्ति के कर्म और उसके फल का स्वामी है. जीवन में हर कर्म के शुभ या अशुभ फल शनि ही प्रदान करता है. आमतौर पर शनि ही दंड देता है और व्यक्ति के दुःख का कारण बनता है. इसलिए आम लोगों में इसको लेकर भय व्याप्त है. लेकिन शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए जप, तप और दान करना हमेशा शुभ होता है. इसमें भी शनि पीड़ा को कम करने के लिए और गलतियों के प्रायश्चित करने के लिए दान करना सर्वोत्तम होता है. 

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शनि के दान के नियम क्या हैं?
शनि के लिए समाज के निर्बल वर्ग और गरीब तबके को दान करना सर्वोत्तम होगा. इसके अलावा जो आपसे कमजोर हो उसे भी दान कर सकते हैं. जिनकी कुंडली में शनि लाभकारी हो, ऐसे लोग शनि सम्बन्धी दान न करें. ये दान सूर्यास्त के बाद करें तो ज्यादा बेहतर होगा. दान अच्छी वस्तुओं का ही करें. पहले दान की वस्तु को रखकर शनि मंत्र का जाप करें. इसके बाद शनि देव से प्रार्थना करते हुये दान करें .

अशुभ प्रभावों से बचने के लिए क्या दान करें?
स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से मुक्ति के लिए छाया दान करना चाहिए. धन और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति के लिए शनिवार को काले वस्त्रों का दान करना चाहिए. दुर्घटनाओं से रक्षा के लिए शनिवार को काले चने या काली उरद की दाल का दान करना चाहिए. अपयश से बचाव के लिए और शनि की कृपा के लिए प्रकाश का दान करें. रोजगार की समस्याओं से छुटकारे के लिए लोहे की वस्तुओं का दान करें.

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हर समस्या का हल हैं शनि मंत्र

1. शनि बीज मंत्र
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।

2. सामान्य मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।

3. शनि महामंत्र
ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥

4. शनि का पौराणिक मंत्र
ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

5. शनि का वैदिक मंत्र
ऊँ शन्नोदेवीर-भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।

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