जानें, कैसे करें प्रार्थना, क्या है प्रार्थना के नियम?

ईश्वर से अपने मन और ह्रदय की बात कहना प्रार्थना है. प्रार्थना के माध्यम से व्यक्ति अपने या दूसरों की इच्छापूर्ति का प्रयास करता है. तंत्र, मंत्र, ध्यान और जप भी प्रार्थना का ही एक रूप हैं. प्रार्थना सूक्ष्म स्तर पर कार्य करती है और प्रकृति को तथा आपके मन को समस्याओं के अनुरूप ढाल देती है. कभी कभी बहुत सारे लोगों द्वारा की गयी प्रार्थना बहुत जल्दी परिणाम पैदा करती है. ऐसी दशा में प्रकृति में तेजी से परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं.

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पूजा के नियम पूजा के नियम

प्रज्ञा बाजपेयी

  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 11:45 AM IST

ईश्वर से अपने मन और ह्रदय की बात कहना प्रार्थना है. प्रार्थना के माध्यम से व्यक्ति अपने या दूसरों की इच्छापूर्ति का प्रयास करता है. तंत्र, मंत्र, ध्यान और जप भी प्रार्थना का ही एक रूप हैं. प्रार्थना सूक्ष्म स्तर पर कार्य करती है और प्रकृति को तथा आपके मन को समस्याओं के अनुरूप ढाल देती है. कभी कभी बहुत सारे लोगों द्वारा की गयी प्रार्थना बहुत जल्दी परिणाम पैदा करती है. ऐसी दशा में प्रकृति में तेजी से परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं.

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क्यों नहीं स्वीकृत होती प्रार्थना?

- व्यवसाय और लेन देन की तरह की प्रार्थना असफल होती है

- आहार और व्यवहार पर नियंत्रण न रखने से भी प्रार्थना अस्वीकृत होती है

- अपने माता और पिता का सम्मान न करने से भी प्रार्थना अस्वीकृत होती है

- अगर प्रार्थना से आपका नुक्सान हो सकता है तो भी प्रार्थना अस्वीकृत हो जाती है

- अतार्किक प्रार्थना भी अस्वीकृत होती ही है

क्या है प्रार्थना के नियम?

- सही तरीके से की गयी प्रार्थना जीवन में चमत्कारी बदलाव ला सकती है

- प्रार्थना सरल और साफ़ तरीके से की जानी चाहिए

- यह उसी तरीके से होनी चाहिए जैसे आप आसानी से कह सकते हों

- शांत वातावरण में , विशेषकर मध्य रात्रि में प्रार्थना जल्दी स्वीकृत होती है

- प्रार्थना एकांत में करें , और निश्चित समय पर करें तो ज्यादा अच्छा होगा

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- दूसरे के नुकसान के उद्देश्य से और अतार्किक प्रार्थना न करें

- अगर दूसरे के लिए प्रार्थना करनी हो तो पहले उस व्यक्ति का चिंतन करें , तब प्रार्थना की शुरुआत करें  

कैसे करें प्रार्थना?

- एकांत स्थान में बैठें

- अपनी रीढ़ की हड्डी को बिलकुल सीधा रखें

- पहले अपने ईष्ट, गुरु, या ईश्वर का ध्यान करें

- फिर जो प्रार्थना करनी है, करें

- अपनी प्रार्थना को गोपनीय रखें.

- बार बार, जब भी मौका मिले, अपनी प्रार्थना दोहराते रहें

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