हमारे परिवार के जिन पूर्वजों का देहांत हो चुका है उन्हें हम पितृ मानते हैं. जब तक किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका जन्म नहीं हो जाता वह सूक्ष्म लोक में रहता है. ऐसा माना जाता है कि इन पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवार के लोगों को मिलता रहता है.
पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर अपने लोगों पर ध्यान देते हैं और आशीर्वाद देकर उनकी समस्याएं दूर करते हैं. पितृपक्ष में हम लोग अपने पितरों को याद करते हैं और उनकी याद में दान धर्म का पालन करते हैं. इस बार पितृपक्ष 24 सितंबर से शुरू होकर 08 अक्टूबर तक रहेगा.
पितृपक्ष में किस तरह के कार्य और प्रक्रियाओं का पालन करते हैं?
- पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करते हैं.
- यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है.
- जल में काला तिल मिलाया जाता है.
- जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है.
- उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है.
- इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं.कौन पितरों के लिए जल अर्पण या श्राद्ध कर सकता है?
- घर का वरिष्ठ पुरुष सदस्य नित्य तर्पण कर सकता है.
- उसके अभाव में घर को कोई भी पुरुष सदस्य कर सकता है.
- पौत्र और नाती को भी तर्पण और श्राद्ध का अधिकार होता है.
- वर्तमान में स्त्रियां भी तर्पण और श्राद्ध कर सकती हैं.
- सिर्फ इतना ध्यान रखें कि पितृपक्ष की सावधानियों का पालन करें.
पितृपक्ष में किन किन सावधानियों का पालन करना चाहिए?
- इस अवधि में दोनों वेला स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए.
- कुतप वेला में पितरों को तर्पण दें. इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व है.
- तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है. इनके साथ तर्पण करना अदभुत परिणाम देता है.
- जो कोई भी पितृपक्ष का पालन करता है उसे इस अवधि में केवल एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए.
- पितृपक्ष में सात्विक आहार खाएं , प्याज लहसुन, मांस मदिरा से परहेज करें.
- जहां तक संभव हो दूध का प्रयोग कम से कम करें.
- पितरों को हल्की सुगंध वाले सफ़ेद पुष्प अर्पित करने चाहिए , तीखी सुगंध वाले फूल वर्जित हैं.
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को तर्पण और पिंड दान करना चाहिए.
- पितृपक्ष में नित्य भगवदगीता का पाठ करें.
- कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए.
प्रज्ञा बाजपेयी