ययाति, रावण और अमृत का कॉन्सेप्ट... जवान बने रहने और अमरता की अंधी दौड़ पौराणिक काल से जारी है

वैदिक युग का सबसे चर्चित आशीर्वाद आयुष्मान भव, चिरायु भव और चिरंजीवी भव है, जो आज भी हमारी आशीर्वाद परंपरा में शामिल है. पुराणों में कथा मिलती है कि ब्रह्ना ने जब पहले युगल मनु-शतरूपा को बनाया तो उन्होंने शतरूपा को वरदान दिया कि वह कभी बूढ़ी नहीं होगी और युवा रहेगी. हमेशा ही कौमार्य का अनुभव करेगी.

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एंटी एजिंग और अमरता का फितूर प्राचीनकाल से जारी है एंटी एजिंग और अमरता का फितूर प्राचीनकाल से जारी है

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 02 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 7:41 AM IST

अभिनेत्री शेफाली जरीवाला के निधन की आजकल चर्चा है. मौत की वजह बना कार्डिएक अरेस्ट का मामला जब और खुलकर सामने आया तो इस दुनिया से उनकी रुखसती और अधिक चर्चा में आ गई. सामने आया है कि शेफाली एंटी एजिंग पिल्स और इंजेक्शन लेती थीं. हालांकि ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है कि ये दवाइयां ही उनके लिए खतरनाक साबित हुईं, लेकिन उनकी अप्रत्याशित मौत ने पॉप की दुनिया के बादशाह रहे माइकल जैक्सन की मौत की भी याद दिला दी, जिन्होंने जवां और सुंदर दिखने के लिए अपने चेहरे की कई बार प्लास्टिक सर्जरी करवाई थी, उनका जीवन दवाइयों और इंजेक्शन पर निर्भर था और जब मौत हुई तब उनकी नाक की हड्डी वाली जगह खाली पाई गई.

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ऐसा कहा जाता है कि माइकल जैक्सन भी एंटी एंजिंग के केमिकल रिएक्शन का शिकार हुए थे.

सच में ये जीवन कितना अप्रत्याशित है ना. महाभारत में यक्ष युधिष्ठिर से पूछते हैं, 'किम आश्चर्यम्?' सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्ठिर जवाब देते हैं कि मनुष्य हर दिन किसी न किसी को मरते हुए देखता-सुनता है, लेकिन फिर भी यह सोचता है कि मेरी मृत्यु नहीं हो, मैं नहीं मर रहा, या फिर मैं नहीं मरूंगा और ये भी कि कुछ ऐसा हो जाए कि मैं न मरूं. मनुष्य मृत्यु से डरता है जो कि अटल सत्य है.

'काश कुछ ऐसा हो जाए कि मेरी मृत्यु न हो' मनुष्य के भीतर पनपे इसी विचार की पहली सीढ़ी है कि वह कभी बूढ़ा न हो. युधिष्ठिर के इसी जवाब में दुनिया भर में चल रही तमाम तरह की रिसर्च का सार छिपा हुआ है. एंटी एजिंग... यानी कुछ ऐसा हो जाए कि मनुष्य पर बढ़ती उम्र का असर न दिखे.

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हालांकि ऐसा नहीं है कि ये कोई इधर 10-20 साल की बात है या बीती कुछ सदी से ही इस पर काम होना शुरू हुआ है. मनुष्य जबसे पैदा हुआ लगभग तभी से उसने मौत को हराने के तरीके सोचना शुरू कर दिया था. ये आदिमानवों के सर्वाइवल के लिए जरूरी भी था और बहुत लंबा समय खुद को जिंदा बचाए रखने की चुनौती और संघर्ष में खप गया. इस पर जब विजय मिली, तब जाकर मनुष्य ने इसकी एक और सीढ़ी पर कदम रखा और वह अपनी उम्र के ही थम जाने पर विचार करने लगा.

पौराणिक काल से बनी हुई है चिरंजीवी होने की चाहत
ये कोई नई बात नहीं है, बल्कि इसके उदाहरण पौराणिक काल से ही मिलते हैं. चिरंजीवी होना पौराणिक काल से चर्चा में है. इसी चाहत के लिए अमृत की खोज का कॉन्सेप्ट सामने आता है, जो सबसे प्राचीन सिद्धांत है. अमृत यानी अमर बना देने वाला पेय. देवताओं और दानवों के बीच हुए कई युद्ध इसी अमृत की चाहत के लिए हुए. इसी तरह पुराणों में सात चिरंजीवी महापुरुषों का जिक्र है. कहते हैं कि इनमें से किसी-किसी का जन्म तो सतयुग के पहले चरण में हुआ और वह कलयुग के आखिरी चरण में आखिरी अवतार तक पृथ्वी पर मौजूद रहेंगे. दुर्वासा, परशुराम, हनुमान, बलि, वेदव्यास, कृपाचार्य आदि इनमें ही शामिल हैं.

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वैदिक युग का सबसे चर्चित आशीर्वाद आयुष्मान भव, चिरायु भव और चिरंजीवी भव है, जो आज भी हमारी आशीर्वाद परंपरा में शामिल है. पुराणों में कथा मिलती है कि ब्रह्ना ने जब पहले युगल मनु-शतरूपा को बनाया तो उन्होंने शतरूपा को वरदान दिया कि वह कभी बूढ़ी नहीं होगी और युवा रहेगी. हमेशा ही कौमार्य का अनुभव करेगी. पुराणों में ही द्रौपदी, कुंती, तारा, अहिल्या और मंदोदरी ऐसी पंच कन्याए हैं, जो कभी वृद्धा नहीं हुईं और इनका कौमार्य भी भंग नहीं हुआ. महाभारत में ही एक राजा ययाति की कथा आती है. जब शुक्राचार्य ने क्रोध में आकर उन्हें बूढ़े हो जाने का श्राप दिया, तब उन्होंने अपने एक बेटे से उसकी जवानी उधार मांग ली. लंबे समय तक जवानी को भोगते हुए जब वह ऊब गए, तब उन्होंने उसे अपने बेटे को वापस कर दिया.

महाभारत में ही भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था, भीष्म का शरीर तो बूढ़ा था, लेकिन उनके जीवन पर बुढ़ापे का असर नहीं था. वह भी चिरकाल तक यौवन भोगने में सक्षम थे, लेकिन उन्होंने एक शपथ के चलते विवाह नहीं किया. भगवान शिव की पूजा का सबसे बड़ा मंत्र जिसे महा मृत्युंजय मंत्र कहा जाता है, वह मृत्यु पर विजय की ही कामना का मंत्र है. वैदिक युग में कई यज्ञ विधान ऐसे हैं जो मृत्यु का संकट टालने वाले हैं और उम्र को बढ़ाने का फल देते हैं.

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यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद, महाभारत.

ऋषि च्यवन, जो बूढ़े से जवान बने थे

हरिवंश पुराण में ही ऋषि च्यवन की कथा आती है. रोग और जरा (बुढ़ापा) से कृषकाय (कमजोर) हुए उनके शरीर को अश्विनी कुमार, (जो देवताओं के वैद्य हैं) ठीक करते हैं. इसी कथा में पहली बार च्यवनप्राश बनाने की विधि दुनिया के सामने आती है और फॉर्मा कंपनियों के लिए च्यवनप्राश बनाना बहुत बड़ा कारोबार है. च्यवनप्राश का अर्थ ही है, खो चुके यौवन को लौटाने वाला औषधियों का मिला-जुला सत्व.

राजे-रजवाड़ों के जमाने में भी रानियां तमाम तरह के आयुर्वेदिक और घरेलू उपाय करती थीं ताकि उनकी त्वचा जवां रहे, बाल मजबूत और काले-घने रहें साथ ही वह स्फूर्ति का भी अनुभव करें. इसके लिए बालों को औषधियों के धुएं से सुखाना, चेहरे पर जायफल और सुपारी को घिस कर बनाए गए लेप लगाना. फलों के छिलकों से उबटन तैयार करना. चंदन, हल्दी, नीम के भी लेप का इस्तेमाल करना, ये सब बहुत प्राचीन काल से हो रहा है.

धरती के भीतर से भी जो सभ्यताएं निकली हैं, उनमें भी ऐसे कई प्रमाण मिले हैं जो बताते हैं कि आज से 4-5000 साल पहले भी 'एंटी एजिंग' की थेरेपी अपनाई जा रही थी.

...लेकिन मृत्यु अटल है

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लेकिन, आखिरी में क्या- मृत्यु तो अटल की अटल ही है, वह नहीं टाली जा सकती है और मौत आने से पहले जीवन को किसी न किसी रूप में वो कष्ट सहने ही हैं, जिनसे मौत की राह आसान होती है. इंसान इसी दो तरह की जुगत में लगातार लगा हुआ है. अव्वल तो मौत को हराया जा सके, और दूसरा वो तकलीफें न सहनी पड़ें जो जीवन भोगता है, जैसे कि बुढ़ापा, झुर्रियां और कमजोरी.

हालांकि एक तरफ पौराणिक कथाएं 'एंटी एजिंग' के तमाम उदाहरण रखती हैं और फिर इसकी व्याख्या भी करती हैं, जहां अंतिम निर्णय खुद मनुष्य के विवेक पर छोड़ा गया है. इस 'एंटी एजिंग' के हश्र को भी पौराणिक कथाओं में बहुत करीने से सामने रखा गया है. राजा ययाति की ही कथा में सामने आता है कि वह किस तरह जीवन चक्र को तोड़ रहे थे. एक समय ऐसा भी आता है कि जब ययाति यह देखते हैं कि वह खुद नवयुवक हैं और दिन-रात जब इच्छा हो वह जवानी का भोग कर रहे हैं, लेकिन एक रात वह अपने पुत्र की तेज उठने वाली खांसी से विचलित हो जाते हैं.

ययाति, जिसने जवानी तो पायी लेकिन एक खेद के साथ
असल में ययाति के बेटे पुरु ने सिर्फ अपनी जवानी ययाति को दी थी, लेकिन अपनी पूरी उम्र तो उसे जीनी ही थी. वह 20 वर्ष का बूढ़ा किसी तरह रेंगता-घिसटता हुआ पानी पीने की कोशिश कर रहा था. यह सब देखकर ययाति को बहुत ग्लानि हुई कि वह सिर्फ किसी और के हिस्से की जवानी ही नहीं भोग रहे हैं, बल्कि उसका जीवन भी भोग रहे हैं. फिर वह खुद को बहुत गिरा हुआ समझने लगते हैं और उनकी ये आत्म ग्लानि इतनी बड़ी हो जाती है कि ययाति को अपने आस-पास नृत्य कर रही नर्तकियां भी नहीं सुहाती.

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ये कहानी बताती है कि असली सुख जीवन को समय के अनुसार जीने में है, कोई अमृत, कोई औषधि, कोई दवा या च्यवनप्राश आपके भीतरी सुख को नहीं लौटा सकती है. यहीं पर आकर एंटी एजिंग की सारी विधियां फेल हो जाती हैं. गिरीश कर्नाड अपने प्रसिद्ध नाटक में लिखते हैं कि ययाति खुद को उस पिशाच की तरह समझने लगे जो अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए नवजातों के खून पीता था. वह खुद को परजीवी कीट की तरह मानने लगते हैं और यही इस नाटक का उनवान है. बल्कि यह पुराण कथा के इस प्रसंग का भी उनवान है, जो आम आदमी के विवेक पर अपना निर्णय छोड़ता है कि क्या अब भी वह अमर होना चाहता है? या सर्वशक्तिमान होने के परिभाषा क्या है? या फिर हजारों सालों तक नौजवान बने रहना कितना खतरनाक हो सकता है.

भीष्म के लिए भी श्राप बन गया था इच्छा मृत्यु का वरदान

भीष्म के ही चरित्र को करीब से देखें तो इच्छा मृत्यु के वरदान को वह श्राप समझने लगते हैं, क्योंकि परिवार की कलह को वह संभाल नहीं पा रहे हैं. बदलते समाज के परिवर्तन को वह स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, उन्होंने सिंहासन में अपने ही पिता की छवि देखने की शपथ भी ले रखी है, जो उनके जी का जंजाल बन जाती है. इन्हीं सब उधेड़बुन में एक दिन वह अपनी मां गंगा के पास पहुंचते हैं तो वह भी उलाहना देते हुए कहते हैं कि 'ध्यान रखो, तुम्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला है, इच्छा जीवन का नहीं. सब कुछ तुम्हारे अनुसार, तुम्हारी ही सोच के आधार पर नहीं हो सकता है. संसार की अपनी ही गति है. वह अच्छी है या बुरी, वह अपने ही अनुसार चलेगा.' सिंहासन पर न बैठने का, आजीवन ब्रह्मचारी रहने का निर्णय तुम्हारा अपना निर्णय था, तुम्हारी मर्जी थी, लेकिन सभी तुम्हारे बनाए आदर्श पर तो नहीं चल सकते हैं. इसलिए अब जो वरदान मिला है, उसे जब तक भोग सकते हो तब तक भोगो.

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रावण और कर्ण के उदाहरण

आनंद रामायण में एक प्रसंग बताता है कि रावण भी अपनी नाभि में अमृत होने और अपने असीम ज्ञान के कारण ऊब ही गया था और यही ऊबन उसका अहंकार बन गया था, इसलिए वह भी यह चाहता था कि कोई इस अमृत को सुखा दे और उसे मुक्त कर दे. श्रीराम ने उसे मारकर उसकी ही इच्छा का मान रखा. कर्ण अपने कवच से ऊब गया था, इसलिए उसने इसे दान करने में कोई संकोच नहीं किया. क्योंकि वह जानता था कि भले ही मित्रता के उपकार के कारण, लेकिन है तो वह अधर्म की ही ओर...

ये सारी कथाएं हमारे लिए ओपन एंडिंग की तरह हैं. यह हमारे सोच का दायरा बढ़ाती हैं और विवेक को जगाती हैं, ताकि हम जीवन को समझें, मृत्यु को भी समझें और जीवन से मृत्यु तक होने वाली यात्रा को भी समझें. यह यात्रा ही असल जीवन है. यह शरीर की यात्रा है और आत्मा की यात्रा तो इन सबसे परे है. इसलिए बुद्ध कहते हैं भवतु सब्ब मंगलम्... सभी का मंगल हो, सभी का कल्याण हो. सभी की रक्षा हो.

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