Parivartini Ekadashi 2024: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. परिवर्तिनी एकादशी को पद्म एकादशी और जलझूलनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास के दौरान पाताल लोक में क्षीर निंद्रा में वास कर रहे भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते हैं इसी वजह से इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है.
परिवर्तिनी एकादशी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेता युग में राजा बलि राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था. उसने अपनी असाधारण भक्ति से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर लिया. राजा बलि राजा विमोचन के बेटे और भक्त प्रहलाद के पौत्र थे. वह हमेशा ब्राह्मणों की सेवा करते थे. अपने इस प्रकार के तप, विनम्र स्वभाव और पूजा से राजा बलि को कई प्रकार की शक्तियां प्राप्त हुई थी. अपनी शक्तियों के चलते उन्होंने इंद्र के देवलोक के साथ त्रिलोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया. जिसके बाद सभी देवता लोक विहीन हो गए और परेशान होकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने चले गए.
भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को उनका राज्य वापस दिलवाने के लिए वामन अवतार लिया. वे बौने ब्राह्मण के रूप में राजा बलि के पास गए और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का अनुरोध किया. गुरु शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी राजा बलि ने तीन पग भूमि भगवान विष्णु को देने का वचन दे दिया.
वचन मिलते ही भगवान विष्णु ने अपना आकार बढ़ना शुरू कर दिया और इतना बड़ा आकार कर लिया कि एक कदम में उन्होंने पूरी धरा नाप ली, दूसरे कदम में देवलोक को नाप लिया. अब उनके तीसरी कदम के लिए भूमि नहीं बची. तब अपने वचन के पक्के राजा बलि ने तीसरे कदम रखने के लिए उनके समक्ष अपना सिर पेश कर दिया.
वामन अवतार लिए भगवान विष्णु राजा बलि की वचनबद्धता और भक्ति से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल का राज्य दे दिया. इसके अलावा, राजा बलि को भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि चातुर्मास में उनका एक रूप क्षीरसागर में चयन करेगा और दूसरा रूप राजा बलि के पाताल लोक की रक्षा करेगा.
परिवर्तिनी एकादशी पूजन विधि (Parivartini Ekadashi Pujan Vidhi)
इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें. इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें. फिर पूरे घर को गंगाजल से शुद्ध करें और भगवान से सामने बैठकर ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाएं और भगवान विष्णु को पीला रंग का चंदन कोमा अक्षत लगाए.
भगवान विष्णु को पीले फूल की माला, तुलसी दल आदि चढ़ाएं. भगवान विष्णु को खीर का भोग लगाएं और भोग में तुलसी अवश्य डालें क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु के अति प्रिय है. उसके बाद घी का दीपक और धूप जलाकर भगवान विष्णु की एकादशी व्रत का पाठ करें. पाठ करने के बाद भगवान विष्णु के मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें और फिर कथा जरूर सुनें क्योंकि कथा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है.
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