विज्ञान ही नहीं, धर्म से भी जुड़ा है चांद...इसलिए होती है करवाचौथ पर पूजा

भारता का मून मिशन चंद्रयान-3 आज शाम 5:30 से 6:30 के बीच चंद्रमा की सतह पर लैंड करने वाला है. भारत समेत पूरी दुनिया को चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैडिंग का बेसब्री से इंतजार है. केवल वैज्ञानिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी चांद महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. 

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प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 5:30 PM IST

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अंतरिक्ष में इतिहास रचने से अब कुछ ही कदम दूर है. भारत का मून मिशन चंद्रयान-3 आज शाम 5 बजकर 45 मिनट पर चांद की ओर बढ़ना शुरू करेगा और शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिग करेगा. 

लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग सफल रही तो रोवर प्रज्ञान उससे बाहर आएगा और वहां 500 मीटर तक के इलाके में चहलकदमी कर पानी और वहां के वातावरण के बारे में इसरो को बताएगा. आज लैंडिंग के साथ ही लैंडर विक्रम अपना काम शुरू कर देगा. चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. इस वजह से चंद्रयान-3 मिशन 14 दिनों तक चांद की सतह पर रिसर्च करेगा.

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वहीं, विज्ञान के साथ ही धार्मिक दृष्टि से भी चांद बेहद खास है. भारतीय संस्कृति, धर्म, ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. कवियों ने बेशुमार बार चांद पर कविताएं लिखीं और उसे अपनी कविताओं में जगह दी है. कवि, लेखक और प्रेमियों के लिए चांद एक प्रिय रूपक है.

क्या है चांद का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में चंद्रमा का बहुत महत्व है. यह सृष्टि, जीवन, भावनाओं, मनोदशा और मन के कई पहलुओं का दर्शाता करता है क्योंकि ये सभी किसी ना किसी रूप से चंद्रमा से जुड़े हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्रमा मानसिक और भावनात्मक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. आकार में बढ़ता हुआ प्रकाशित चंद्रमा शुभ माना जाता है जबकि ढलता हुआ चंद्रमा अच्छा नहीं माना जाता. चंद्रमा को उसकी स्थिति और आकार के आधार पर शुभ-अशुभ मानने की परंपरा है.

ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा पृथ्वी पर अपनी सकारात्मक ऊर्जा फैलाता है. यह अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु को प्रतिनिधित्व करता है. चंद्रमा सबसे तेज गति से चलने वाला ग्रह है इसलिए सवा दो दिन में एक राशि से दूसरी राशि में अपना स्थान बदल लेता है.

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ज्योतिष शास्त्र में चांद का महत्व

सूर्य और चंद्रमा के बगैर ज्योतिष शास्त्र अधूरा है. यह ज्योतिष में अहम स्थान रखता है. आपकी उम्र और मानसिक स्थिति पर इसका बहुत प्रभाव होता है. यह नौ ग्रहों में एक है. चंद्रमा कमजोर होने पर इसका स्वास्थ्य, मन और आयु पर असर जालता है. आयु के निर्धारण में इसकी अहम भूमिका होती है.  

पुराणों और वेदों में बताया गया है कि चांद की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें अपने सिर पर धारण कर लिया. समुद्र मंथन से निकलने की वजह से इसे मां लक्ष्मी और कुबेर का भाई माना जाता है. ब्रह्मा जी ने इन्हें बीज, औषधि, जल और ब्राह्मणों का राजा मनोनीत किया. इन्हें जल तत्व का देवता भी कहा जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ने इनके कुल में जन्म लिया था. इनकी प्रतिकूलता से व्यक्ति को मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राशिफल को ज्ञात करने के लिए व्यक्ति के चंद्र राशि को आधार माना जाता है. किसी व्यक्ति के जन्म के समय ये जिस राशि में स्थित होते हैं, उसे ही उस व्यक्ति की चंद्र राशि कहा जाता है. इनका स्वभाव शीतल है. 

हिंदू धर्म में ऐसे अनेक व्रत हैं जो शशांक यानी चांद के दर्शन पर पूरे होते हैं. करवाचौथ पर भी भारतीय स्त्रियां चांद को देखकर अपना निर्जला व्रत तोड़ती हैं. सूर्य प्रत्यक्ष नारायण हैं तो चंद्रमा राकेश यानी रात के ईश्वर हैं. चंद्रमा का प्रकाश सूर्य के समान तेजस्वी नहीं होता कि तारामंडल ही जगमगा हो उठे. 

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करवाचौथ का महत्व

सुहागिनों का सबसे अहम व्रत करवा चौथ हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है. इसमें सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं. साल 2023 में करवा चौथ का व्रत 1 नवंबर को रखा जाएगा.

करवा चौथ व्रत रखने की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है. जब पांडवों पर संकट के बादल मंडराए थे तो श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत पूजन किया था जिसके प्रभाव से पांडवों पर आई विपदा टल गई थी. मान्यता है जो सुहागिन स्त्री इस दिन अन्न-जल का त्याग कर व्रत रखती हैं उसके सुहाग पर कभी कोई आंच नहीं आती.

सिर्फ करवाचौथ ही नहीं बल्कि हिंदू धर्म में सकट चौथ, पूर्णिमा और कजरी तीज जैसे अनेक व्रत-त्योहारों में चांद की पूजा का विधान है.  

 

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