हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का खास महत्व है. शरद पूर्णिमा को कोजोगार पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन विधि-विधान से व्रत रखा जाता है और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी का अवतरण हुआ था, और मां लक्ष्मी इस दिन धरती पर भ्रमण करती हैं. धन प्राप्ति के लिए यह दिन बेहद शुभ माना जाता है. इसलिए इस दिन व्रत रखा जाता है और माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की व्रत कथा.
शरद पूर्णिमा व्रत कथा
कहा जाता है कि किसी नगर में एक साहूकार रहता था, जिसकी दो बेटियां थीं. साहूकार की दोनों ही बेटियां पूर्णिमा के दिन व्रत रखती थी. बड़ी बेटी पूरे विधि-विधान से व्रत के नियमों का पालन करती थी, लेकिन छोटी बेटी नियमों का पालन सही से नहीं किया करती थी. सालों-साल ऐसा ही चलता रहा, और बेटियां जब बड़ी हुई तो पिता ने दोनों की शादी करा दी. शादी के बाद दोनों बहनों ने संतान को जन्म दिया, बड़ी बेटी की संतान तो एकदम स्वस्थ थी, लेकिन छोटी बेटी की संतान ने जन्म लेने के बाद तुरंत दम तोड़ दिया. छोटी बेटी के साथ ऐसा एक बार नहीं, कई बार हुआ.
बार- बार हो रही संतान की मौत से परेशान होकर छोटी बेटी ने एक ब्राह्मण को अपनी तकलीफ बताई और समाधान पूछा. ब्राह्मण ने छोटी बेटी से कुछ प्रश्न किए, इसके बाद ब्राह्मण ने कहा कि तुमने पूर्णिमा का व्रत तो रखा, लेकिन नियमों का पालन करने में बहुत लापरवाही बरती है. इसी का नतीजा है कि तुम्हें व्रत का फल नहीं मिल रहा है. ब्राह्मण की बात सुनने के बाद छोटी बेटी थोड़ी उदास हुई, लेकिन उसने मन ही मन ये ठान लिया कि वो अब से पूर्णिमा के सारे व्रत पूरे विधि-विधान से रखा करेगी.
लेकिन पूर्णिमा आने से पहले ही छोटी बेटी के साथ फिर से वही हुआ जो हर बार होता था, उसे संतान हुई लेकिन जन्म लेते ही उसकी मृत्यु हो गयी. उसने अपने बेटे का शव एक कपड़े से ढक कर एक पीढ़े पर रख दिया. इसके बाद उसने अपनी बड़ी बहन को घर बुलाया, और बड़ी बहन को उसी पीढ़े पर बैठने को कहा जिसपर बच्चे का शव रखा था. बड़ी बहन पीढे पर बैठने ही वाली थी, तभी उसके लहंगे का एक हिस्सा बच्चे से स्पर्श होता है और बच्चा जी उठता है और रोना शुरू कर देता है. ये देखकर बड़ी बहन घबरा जाती है और छोटी बहन को डांटते हुए कहती है कि उसपर अभी बच्चे की हत्या का कंलक लग जाता.
छोटी बहन बड़ी बहन का गुस्सा शांत कराती है और कहती है कि दीदी शांत हो जाओ, मेरा बच्चा मरा हुआ ही था. ये तो तुम्हारे स्पर्श से फिर से जीवित हो उठा है. दरअसल तुम जो पूर्णिमा का व्रत रखती हो, इस कारण तुम्हें वरदान प्राप्त है. व्रत तो मैंने भी रखा लेकिन तुम्हारी तरह नियमों का पालन नहीं किया. अब मैं भी शरद पूर्णिमा का व्रत पूरे नियमों से रखा करूंगी. इसके बाद से ये व्रत पूरे नगर में मशहूर हो गया. दोनों बहनों का यही किस्सा शरद पूर्णिमा व्रत कथा के तौर पर जाना जाने लगा.
लक्ष्मीनारायण पूजा विधि
इस दिन लक्ष्मीनारायण की पूजा पूरे विधि विधान से करनी चाहिए. रात में खीर बनाकर आसमान के नीचे रखें, माना जाता है कि चंद्रमा की चांदनी खीर पर पड़ने से खीर में औषधीय गुण आ जाते हैं, दूसरे दिन सुबह स्नान करके खीर का भोग अपने घर के मंदिर में लगाएं. इस खीर का प्रसाद कम से कम 3 ब्राह्मणों को बांटे. इसके बाद अपने परिवार में खीर का प्रसाद बांटें. मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से रोगों से छुटकारा मिलता है.
aajtak.in