Margashirsha Purnima 2021: 18 या 19 दिसंबर? मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत की तिथि को लेकर दूर करें कंफ्यूजन

Margashirsha Purnima 2021: हिन्दू धर्म में पवित्र माने गए मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से पूर्व जन्मों के पापों से भी मुक्ति मिल जाती है. इस बार पूर्णिमा 2 दिन यानी 18 और 19 दिसंबर को है, जिसकी वजह से कंफ्यूजन है कि किस दिन पूजा, व्रत और स्नान करना है.

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Margashirsha Purnima 2021 Margashirsha Purnima 2021

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 17 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST
  • 18 और 19 दिसंबर को मार्गशीर्ष पूर्णिमा
  • इस शाम को दिखेगा पूर्णिमा का चांद

Margashirsha Purnima 2021 Date and Time: मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा की दो तिथियां होने की वजह से जातकों में कंफ्यूजन है. वैसे पूर्णिमा तिथि 18 दिसंबर से प्रारंभ हो रही है, जो 19 दिसंबर तक रहेगी. 19 दिसंबर को उदयातिथि में पूर्णिमा आने से इस दिन स्नान-दान करना शुभ माना जा रहा है, हालांकि, पूर्णिमा का चांद 18 दिसंबर की शाम को ही दिखाई देगा.   

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मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि (Margashirsh Purnima 2021 Tithi)
मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि का आरंभ 18 दिसंबर को सुबह 07 बजकर 24 मिनट से हो रहा है, जो 19 दिसंबर, रविवार की सुबह 10 बजकर 05 मिनट पर खत्म हो जाएगी.  ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि चंद्रोदय 18 दिसंबर की शाम को हो रहा है, जिसके कारण पूर्णिमा का व्रत इस दिन ही रखा जाएगा. वहीं, 19 दिसंबर की सुबह स्नान-दान करना शुभ रहेगा. 

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर व्रत और पूजा से भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है. इस दिन  तुलसी की जड़ की मिट्टी से पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करना चाहिए. कहते हैं कि इस दिन किये जाने वाले दान का फल अन्य पूर्णिमा की तुलना में 32 गुना अधिक मिलता है, इसलिए इसे बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है.  मार्गशीर्ष पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण की पूजा व कथा भी कही जाती है. 

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पूर्णिमा के दिन ऐसे करें स्नान और ध्यान (Full moon december 2021)
मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर भगवान नारायण की पूजा का विधान है. इस दिन सुबह उठकर भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. स्नान के बाद सफेद कपड़े पहनें और फिर आचमन करें. इसके बाद ऊँ नमोः नारायण कहकर आह्वान करें तथा आसन, गंध और पुष्प आदि भगवान को अर्पित करें. पूजा स्थल पर वेदी बनाएं और हवन के लिए उसमे अग्नि जलाएं. इसके बाद हवन में तेल, घी और बूरा आदि की आहुति दें. रात्रि को भगवान नारायण की मूर्ति के पास ही शयन करें. व्रत के दूसरे दिन जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराएं.  दान-दक्षिणा देकर उन्हें विदा करें.

 

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