'देवभक्ति अपने ढंग से करो लेकिन देशभक्ति...', स्वामी चिदानंद सरस्वती का मौलानाओं को संदेश

प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ मेला शुरू हो रहा है लेकिन इस महाकुंभ से पहले आजतक ने प्रयागराज में धर्मसंसद का आयोजन किया जिसमें काशी विश्वनाथ धाम के महंत श्रीकांत शर्मा, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर महाराज और ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने देश में सनातन धर्म की स्थिति और वक्फ बोर्ड पर अपनी प्रतिक्रिया दी.

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आजतक धर्म संसद आजतक धर्म संसद

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 8:10 PM IST

प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ मेला शुरू हो रहा है जिसमें देश और विदेश से श्रद्धालु बड़े पैमाने पर गंगा-युमना और सरस्वती के तट पर जुट रहे हैं. इस महाकुंभ से पहले आजतक ने प्रयागराज में धर्मसंसद का आयोजन किया जिसमें काशी विश्वनाथ धाम के महंत श्रीकांत शर्मा, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर महाराज और ऋषिकेश परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने देश में सनातन धर्म की स्थिति, वक्फ बोर्ड समेत कई मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दी.

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कुंभ मेले की जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावे को लेकर देवकीनंदन ठाकुर ने कहा, 'हमारा देश धर्म के नाम पर बांटा गया. एक बड़ी जगह पर पाकिस्तान बना दिया गया और उसके बाद यहां वक्फ बोर्ड बना दिया गया. अब वो कह रहे हैं कि जहां कुंभ हो रहा है, वो हमारी जगह है.' 

वक्फ की जमीन बढ़ती गई

वो आगे कहते हैं, 'ऐसा वो कण बता दो जहां वो (प्रभु) नहीं है. वक्फ बोर्ड का अतिक्रमण हम देख रहे हैं. पहले उनके पास कुछ जमीन थी और आज 9 लाख एकड़ जमीन से ज्यादा है. हमें एक सनातन बोर्ड चाहिए. सरकारें क्या कर रही हैं. तिरुपति मंदिर से सरकार हर साल 500 करोड़ रुपये लेती है. इसी पैसे का इस्तेमाल गरीब बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की व्यवस्था में किया जा सकता है इसलिए एक सनातन बोर्ड की जरूरत है. सरकारों ने गुरुकुल खत्म कर दिए. हमारे भगवान को पशुओं की चर्बी का भोग लगाया गया. आने वाली पीढ़ी को सुरक्षित रखना चाहते हैं, मंदिरों को सुरक्षित चाहते हैं तो सनातन बोर्ड चाहिए.'

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धर्म युद्ध नहीं, योग है

स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने कार्यक्रम में कहा, 'धर्म युद्ध नहीं है. धर्म के लिए युद्ध हुआ लेकिन धर्म योग है. धर्म जोड़ता है. ये आजतक से कल-तक और आने वाली सदियों की यात्रा है. शाश्वत है. सूरज, चांद, तारें और नदियां रहेंगी, वैसे ही सनातन रहेगा.

'समस्या यहां आई कि सनातन सागर की तरह है जो महासागर बनने का आह्वान करता है. पंथ आए तो पंथ तालाब की तरह थे. नदियां सागर से मिलती हैं. सागर महासागर बनता है. छिन्नता कहां पर आई. कुछ सरकारों ने वोट बैंक की राजनीति के लिए खुद को बचाने के लिए ऐसे-ऐसे नेरेटिव गढ़े, नियम बनाए जो सबके लिए समान नहीं थे इसलिए संविधान की जरूरत पड़ी.'

'संविधान जहां सब समान सबका सम्मान, सनातन भी उसी संविधान की बात करता है. सनातन की धारा में जो बदलाव है, वो आता है जब समाज में कोई विकृति आती है वो उसके बदलने के लिए व्यवस्था बदलती है. युद्ध उपाय नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर स्वामी सच्चिदानंद ने कहा, भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री इस कुंभ को दिशा देने वाले महंत भी हैं, संत भी हैं. वह शासक और प्रशासक होते हुए खुद को साधक मानते हैं, सेवक मानते हैं और उपासक मानते हैं. वो दोनों का संगम है. नियम सबके लिए बराबर हों, समाधान बराबर हो.'

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वक्फ की असलियत से वाकिफ हों

चिदानंद सरस्वती कहते हैं कि वक्फ की बात आई तो देवकीनंदन ने प्रश्न उठाया. मैं कहना चाहूंगा कि वक्फ की वाकिफियत से वाकिफ होने का समय आ गया है. उन्हें जमीन का सही इस्तेमाल करना चाहिए. ये जमीन संस्कृति की चीज है, धर्म की चीज है और वो समाज की है. चंद मुट्ठी भर लोग अपनी मुट्ठी को ताने हुए हैं कि एक-एक इंच का हिसाब लेंगे. चंद मुट्ठी भर लोगों ने कब्जा किया हुआ है.

उन्होंने कहा, मैं मौलानाओं से कहना चाहता हूं कि जमीन के लिए अपना मोह छोड़ें. एक काबिल मुफ्ती ने मुझे बताया है कि उनके समाज के लोगों ने ही जमीन पर कब्जा किया हुआ है. मैं पूछना चाहता हूं कि उन्होंने कितने स्कूल बनाए, कितने अस्पताल बनाए, कितने लोगों का भला हुआ. तहरीर निकाल लीजिए आपको हैरानी होगी. 10 साल में देश में कितनी चीजें बदल गईं हैं. जो ईमानदार मुसलमान हैं, वो जानते हैं कि गलत हो रहा है लेकिन उन्हें बोलने नहीं दिया जाता. इसलिए योगी ने कहा बंटेंगे तो कटेंगे.

चिदानंद सरस्वती ने कहा कि समय आ गया है एक साथ होने का. ना हम कटेंगे, ना डरेंगे और ना डराएंगे. ये विचार है. जब-जब भारत बंटा तब-तब भारत कटा. कुछ लोगों ने उस सनातन परंपरा से नीचे उतरकर अपनी और सनातन की नाक कटाई. समय आ गया है. इसलिए वक्फ का वक्त आ गया है. वक्फ के मौलानाओं को सोचना होगा कि वो मुस्लिम समाज का भला कर रहे हैं या नहीं. मैं उलेमाओं से निवेदन करता हूं कि आइए मिलकर काम करें. इन सब छोटी-छोटी बातों से ऊपर उठें और साथ-साथ बैठकर बात करें. इबादत नहीं कर सकते एक-साथ लेकिन वतन और संस्कृति की हिफाजत तो कर सकते हैं. देव भक्ति अपने ढंग से करो लेकिन देशभक्ति साथ-साथ करो. 

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