Janmashtami 2023: जब श्रीकृष्ण की ये शर्त सुन रोने लगीं रुक्मिणी और सत्यभामा, राधा ने जीती बाजी

एक बार कृष्ण के जन्मादिवस का उत्सव मनाने के लिए बहुत सारी तैयारियां की गईं. लोग बड़ी संख्या में श्रीकृष्ण के महल में इकट्ठा हुए. लेकिन श्रीकृष्ण इस उत्सव में शामिल नहीं हुए क्योंकि उनके सिर में दर्द था. कृष्ण के दर्द को दूर करने के लिए कई वैध आए लेकिन श्रीकृष्ण ने कहा कि उनका दर्द सिर्फ एक तरीके से दूर हो सकता है जो सुनकर हर कोई चकित रह गया.

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जन्माष्टमी पर सुनें कृष्ण की ये दुर्लभ कहानी जन्माष्टमी पर सुनें कृष्ण की ये दुर्लभ कहानी

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:08 PM IST

आज देश भर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है. जन्माष्टमी भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. इस साल जन्माष्टमी की तिथि को लेकर लोग काफी असंमजस में रहे हैं.

आपको बता दें कि देव ज्योतिषी और महादेवी काली मंदिर, मंदाकिनी तट के महंत अश्वनी पांडे के मुताबिक 6 सितंबर यानी आज दोपहर 3 बजकर 39 मिनट से अष्टमी तिथि लग चुकी है जो 7 सितंबर को शाम 4 बजकर 16 मिनट तक रहेगी. यानी 6 सितंबर की रात अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग बनेगा. इसलिए शैव परंपरा के लोग आज कृष्ण जन्मोत्सव मनाएंगे और वैष्णव संप्रदाय में 7 सितंबर को जन्माष्टमी मनाई जाएगी.

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कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व श्रीकृष्ण के जन्म (धरती पर अवतरण) दिवस उत्सव के रूप में मनाया जाता है और इस दिन उनके बाल रूप की पूजा की जाती है.

जन्माष्टमी पर जरूर सुनें ये कहानी 

ईशा फाउंडेशन के संस्थापक और प्रमुख सद्गुरु ने अपने प्रवचनों में कई बार कृष्ण लीलाओं और उनसे जुड़ी कहानियों का जिक्र किया है. आज जन्माष्टमी पर हम आपको सद्गुरु की सुनाई ऐसी ही एक कहानी बता रहे हैं.

कृष्ण को हुआ सिर दर्द
एक बार कृष्ण के जन्मादिवस का उत्सव मनाने के लिए बहुत सारी तैयारियां की गईं. लोग बड़ी संख्या में श्रीकृष्ण के महल में इकट्ठा हुए. लेकिन श्रीकृष्ण इस उत्सव में शायद शामिल नहीं होना चाहते थे. वैसे तो वो हर उत्सव के लिए तैयार होते थे पर इस दिन किसी वजह से उनकी इच्छा नहीं थी.

इसके बाद रुक्मिणी श्रीकृष्ण के पास आईं और पूछने लगीं, 'नाथ, आपको क्या हो गया है? क्या बात है? आप उत्सव में शामिल क्यों नहीं हो रहे? कृष्ण बोले, 'मेरे सिर में दर्द है.'

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उनको वास्तव में सिरदर्द था या नहीं, ये तो नहीं पता लेकिन उन्होंने रुक्मिणी से कहा, 'ऐसा कोई जो मुझे वाकई में प्यार करता हो, वो अपने पैरों की धूल अगर मेरे सिर पर मल दे तो मैं ठीक हो जाऊंगा.'

दर्द को दूर करने के लिए कृष्ण ने रखी ये शर्त

रुक्मिणी बोली, 'हमें वैद्यों को बुलाना चाहिए'. इसके बाद वैद्य आए. उन्होंने श्रीकृष्ण को हर तरह की दवाईयां दीं. लेकिन कृष्ण बोले, 'नहीं, ये सब चीजें मुझ पर असर नहीं करेंगीं'. लोगों ने पूछा, 'तो हमें क्या करना चाहिए?' वहां बहुत सारे लोग इकट्ठा हो गए थे. सत्यभामा, नारदजी, हर कोई परेशान था कि आखिर कृष्ण को क्या हुआ है. कृष्ण को सिरदर्द है. हम उन्हें ठीक करने के लिए क्या करें'? कृष्ण बोले, 'कोई, जो मुझे वाकई में प्यार करता हो, वो अपने पैरों की धूल अगर मेरे सिर पर मल दे तो मैं ठीक हो जाऊंगा'.

शर्त सुन हर कोई हुआ हैरान

श्रीकृष्ण की ये बात सुनकर सत्यभामा बोली, 'ये क्या बात हुई? मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं पर ये नहीं हो सकता कि मैं अपने पैरों की धूल ले कर आपके सिर पर लगाऊं. हम ऐसा काम नहीं कर सकते.'

रुक्मिणी रोते हुए बोलीं. 'हम ऐसा कैसे कर सकते हैं. ये तो आपका अनादर होगा, अपमान होगा. हम ये नहीं कर सकते'. नारद भी पीछे हट गए. उन्होंने कहा, 'मैं ऐसा कुछ भी करना नहीं चाहता. आप स्वयं भगवान हैं. मुझे नहीं मालूम कि इसमें क्या रहस्य है. अगर मैं अपने पैरों की धूल आपके सिर पर रखूंगा तो हमेशा नर्क की आग में जलूंगा. मैं ऐसा कोई काम करना नहीं चाहता'.

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इसके बाद चारों ओर यह बात फैल गई. हर कोई हैरान था कि ऐसा कैसे हो सकता है. हम सब कृष्ण को बहुत प्यार करते हैं पर ऐसा कर के हम नर्क में जाना नहीं चाहते. उत्सव मनाने के लिए लोग कृष्ण का इंतजार कर रहे थे पर कृष्ण अपना सिरदर्द ले कर बैठे थे.

राधा ने ऐसे दूर किया कृष्ण का दर्द

फैलते-फैलते ये बात वृंदावन तक जा पहुंची. गोपियों को भी मालूम पड़ा कि कृष्ण को सिरदर्द है. इसके बाद राधा ने अपनी साड़ी का पल्लू (फाड़ कर) जमीन पर बिछा दिया और सब गोपियां उस पर नाचने लगीं.

उन्होंने फिर वो पल्लू नारद को दे कर कहा, 'इसे ले जाइए और कृष्ण के सिर पर बांध दीजिए'. नारद वो धूल भरा पल्लू लाए और उसे कृष्ण के सिर पर बांध दिया. इसके बाद कृष्ण का सिर दर्द तुरंत ठीक हो गया.

कृष्ण ने हमेशा कहा है कि उनके लिए भक्तों का सच्चा प्रेम ही सबसे कीमती चीज है. वे राजा थे और कई राजाओं ने उन्हें अपने राज्य भेंट किए पर उन्होंने वे नहीं लिए. उनके लिए सच्चा, निस्वार्थ और सरल प्रेम ही महत्वपूर्ण था.

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